जुलाई 27, 2018

भूख है तो सब्र कर ( राक्षस कह रहा ) डॉ लोक सेतिया

   भूख है तो सब्र कर ( राक्षस कह रहा ) डॉ लोक सेतिया 

फिर दुष्यंत कुमार की बात।  भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ , आजकल संसद में ज़ेरे बहस है मुद्दआ। यही होता है रोटी से खेलना , कौन लोग हैं जो देश से हर दिन इतना खाते हैं जिससे लाखों लोगों का पेट भर सकता है। मुझे अपशब्द उपयोग करना पसंद नहीं है मगर जब उनको लाज नहीं आती खुद पर करोड़ों रूपये बर्बाद करते तो देवता नहीं कह सकता। बार बार गंगभाट और रहीम का वार्तालाप याद आता है दो दोहों में सवाल जवाब है। ज़रा पढ़ कर समझना। 
 
गंगभाट :-
 
सिखियो कहां नवाब जू ऐसी देनी दैन , ज्यौं ज्यौं कर ऊंचे करों त्यों त्यों नीचे नैन। 
 
( अर्थात , रहीम जो इक रियासत के नवाब थे हर सहायता मांगने वाले की सहायता किया करते थे , मगर गंगभाट जो इक कवि थे उन्होंने देखा दान देते समय रहीम अपनी नज़रें झुका लिया करते हैं , आंख मिलाकर सहायता नहीं देते मांगने वाले को। पूछा ये क्या ढंग हुआ भला बताओ तो सही। 
 
रहीम :-
 
देनहार कोऊ और है देत रहत दिन रैन , लोग भरम मोपे करें याते नीचे नैन। 
 
( अर्थात , देने वाला तो कोई और है ऊपर वाला देता रहता है दिन रात मुझे , मैं तो माध्यम हूं उसकी दात को आगे देने को , लोग सोचते हैं रहीम देता है यही सोचकर शर्म से मेरी नज़रें झुकी रहती हैं )
 
वो अपनी रियासत के मालिक थे , हमारे नेता तो किरायेदार हैं और रखवाली करने को बनाये गए हैं , फिर भी बेशर्मी से दावे करते हैं मैंने ये दिया वो दिया है। पत्थर पर अपना नाम लिखवाते हैं , बताओ क्या अपनी कमाई से इक धेला भी दिया है। हर दिन खुद पर रहने आने जाने ऐशो आराम पर करोड़ों खर्च करना गुनाह है अपराध है पाप है अगर आप किसी भी धर्म को मानते हैं। धर्म दंगे करना नहीं सिखाता कोई भी , हर धर्म भलाई करने और सहायता करने को कहता है। 

देवता कौन होते हैं , माना जाता है हमारे देश में करोड़ों देवी देवता थे। अर्थात जो लोग यहां रहते थे औरों को देते थे इसलिए देवता थे। 

राक्षस कौन होते हैं , जो सब से छीन कर सभी तहस नहस करते थे और उनकी भूख तब भी नहीं मिटती थी वो राक्षसी स्वभाव था। 

राजनेता कोई मसीहा नहीं होते हैं , इनको सत्ता खुद शासन करने को चाहिए देश सेवा और जनता की सेवा बिना किसी पद पर आसीन हुए करते रहे हैं लोकनायक और बापू कहलाये जो। 

आपके इश्तिहार को देखें या असलियत को :-

अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार , घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तिहार। 

इस सिरे से उस सिरे तक सब शरीके जुर्म हैं , आदमी या तो ज़मानत पर रिहा है या फरार। 

ये दिल्ली की बेरहमी की बात नहीं जो कल की खबर है और जिस पर संसद में पक्ष विपक्ष भिड़े हैं। देश की आधी आबादी की हालत यही है मगर आप को बुलेट ट्रैन की ज़रूरत है। अपने लिए हर जगह भवन की ज़रूरत है। कल पाकिस्तान में जीतने के बाद इमरान खान ने जो कहा हमारे देश के नेता भी जानते हैं मगर कभी नहीं कहते। जब देश में गुरबत है भूख है तो मुझे प्रधानमंत्री बनकर महलनुमा आवास में नहीं रहना कोई छोटी जगह देखूंगा और प्रधानमंत्री आवास और बाकी राजयपालों के भवन को या जनता के लिए स्कूल अस्पताल बनाने को उपयोग करूंगा या उनको होटल रसोर्ट बनाकर कर उनकी आमदनी जनता पर खर्च की जाएगी। दुश्मन से भी अच्छी बात सीखी जा सकती है। उन्होंने ये भी कहा चीन ने कैसे करोड़ों लोगों को गरीबी से मुक्त करवाया और कैसे भ्र्ष्टाचार पर अंकुश लगाया उनसे सबक लेंगे। चार साल पहले गरीबी और भ्र्ष्टाचार मिटाने की बात कर सरकार बनाई थी मगर अभी तक किया केवल एक ही काम है। जैसे भी हो हर राज्य में अपने दल की सरकार बनवाते जाना , देश के गरीब भूखों की याद रहती कैसे। केवल अपने संगठन से जुड़े लोगों को मुख्यमंत्री मनोनीत करना राष्ट्रपति उप राष्ट्रपति बनवाना किस सोच को बताता है। जो लोकपाल की बात थी उसका क्या हुआ। अब कहते हैं कांग्रेस मुक्त भारत हुआ अब विपक्षी दल मुक्त भारत बनाना है। कितना गंभीर असंवैधानिक कार्य करने की बात है। 
 

 


कोई टिप्पणी नहीं: