फ़रवरी 03, 2013

आंखें ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया

आंखें ( नज़्म ) डॉ  लोक सेतिया

बादलों सी बरसती  हैं आंखें 
बेसबब छलकती हैं आंखें।

गांव का घर छूट गया जो
देखने को तरसती हैं आंखें।

जुबां से नहीं जब कहा जाता
बात तब भी करती हैं आंखें।

मौसम पहाड़ों का होता जैसे
ऐसे कभी बदलती हैं आंखें।

नज़र के सामने आ जाये जब
बिन काजल संवरती हैं आंखें।

गज़ब ढाती हैं हम पर जब 
और भी तब चमकती हैं आंखें।

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