आंखें ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया
बादलों सी बरसती हैं आंखेंबेसबब छलकती हैं आंखें ।
गांव का घर छूट गया जो
देखने को तरसती हैं आंखें ।
जुबां से नहीं जब कहा जाता
बात तब भी करती हैं आंखें ।
मौसम पहाड़ों का होता जैसे
ऐसे कभी बदलती हैं आंखें ।
नज़र के सामने आ जाये जब
बिन काजल संवरती हैं आंखें ।
गज़ब ढाती हैं हम पर जब
और भी तब चमकती हैं आंखें ।
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