तीरगी कह गई राज़ की बात है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
तीरगी कह गई राज़ की बात हैबेवफ़ा वो नहीं चांदनी रात है।
लब रहे चुप मगर बात होती रही
इस तरह भी हुई इक मुलाकात है।
झूठ भाता नहीं , प्यार सच से हुआ
मुझ में शायद छुपा एक सुकरात है।
आज ख़त में उसे लिख दिया बस यही
आंसुओं की यहां आज बरसात है।
हर जुमेरात करनी मुलाकात थी
आ भी जाओ कि आई जुमेरात है।
भूल जाना नहीं डालियो तुम मुझे
कह रहा शाख से टूटता पात है।
तुम मिले क्या मुझे , मिल गई ज़िंदगी
दिल में "तनहा" यही आज जज़्बात है।
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