जनाज़े पे मेरे तुम्हें भी है आना ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
जनाज़े पे मेरे तुम्हें भी है आनानहीं भूल जाना ये वादा निभाना ।
लगे प्यार करने यकीनन किसी को
कहां उनको आता था आंसू बहाना ।
तुम्हें राज़ की बात कहने लगे हैं
कहीं सुन न ले आज ज़ालिम ज़माना ।
बनाकर नई राह चलते रहे हैं
नहीं आबशारों का कोई ठिकाना ।
हमें देखना गांव अपना वही था
यहां सब नया है, नहीं कुछ पुराना ।
उन्हें घर बुलाते, थी हसरत हमारी
कसम दे गये, अब हमें मत बुलाना ।
मिले ज़िंदगी गर किसी रोज़ "तनहा"
मनाकर के लाना , हमें भी मिलाना ।
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