सब पराये हैं ज़िंदगी ( नज़्म ) डॉ लोक सेतिया
देख आये हैं ज़िंदगीसब पराये हैं ज़िंदगी ।
किसी ने पुकारा नहीं
बिन बुलाये हैं ज़िंदगी ।
खिज़ा के मौसम में हम
फूल लाये हैं ज़िंदगी ।
अपने क्या बेगाने तक
आज़माये हैं ज़िंदगी ।
दर्द वाले नग्में हमने
गुनगुनाये हैं ज़िंदगी ।
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