नाम पर तहज़ीब के बेहूदगी है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
नाम पर तहज़ीब के , बेहूदगी हैरौशनी समझे जिसे सब , तीरगी है ।
सांस लेना तक हुआ मुश्किल यहां पर
इस तरह जीना भी , कोई ज़िंदगी है ।
सब कहीं आते नज़र हमको वही हैं
आग उनके इश्क की ऐसी लगी है ।
कह दिया कैसे नहीं कोई किसी का
तोड़ दिल देती तुम्हारी दिल्लगी है ।
पौंछते हैं हाथ से आंसू किसी के
और हो जाती हमारी बंदगी है ।
सब हसीनों की अदाओं पर हैं मरते
भा गई मुझको तुम्हारी सादगी है ।
मयकदा सारा हमें "तनहा" पिला दो
आज फिर से प्यास पीने की जगी है ।
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