दिसंबर 22, 2012

रुक नहीं सकता जिसे बहना है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

रुक नहीं सकता जिसे बहना है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

रुक नहीं सकता जिसे बहना है
एक दरिया का यही कहना है ।

मान बैठे लोग क्यों कमज़ोरी
लाज औरत का रहा गहना है ।

क्या यही दस्तूर दुनिया का है
पास होना दूर कुछ रहना है ।

बांट कर खुशियां ज़माने भर को
ग़म को अपने आप ही सहना है ।

बिन मुखौटे अब नहीं रह सकते
कल उतारा आज फिर पहना है ।

साथ दोनों रात दिन रहते हैं
क्या गरीबी भूख की बहना है ।

ज़िंदगी "तनहा" बुलाता तुझको
आज इक दीवार को ढहना है । 
 

 

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