अक्टूबर 06, 2025

POST : 2027 लौटना गुज़रे हुए वक़्त में ( संस्मरण ) डॉ लोक सेतिया

          लौटना गुज़रे हुए वक़्त में ( संस्मरण ) डॉ लोक सेतिया 

 

अपनी इक ग़ज़ल से बात शुरू करने का मकसद है कितने लोग रह गए छूट गए पहले उनकी याद ज़रूरी है । 

         हर मोड़ पर लिखा था आगे नहीं है जाना ( ग़ज़ल ) 

            (  डॉ लोक सेतिया "तनहा" )   


हर मोड़ पर लिखा था आगे नहीं है जाना
कोई कभी हिदायत ये आज तक न माना ।

मझधार से बचाकर अब ले चलो किनारे
पतवार छूटती है तुम नाखुदा बचाना ।

कब मांगते हैं चांदी कब मांगते हैं सोना
रहने को झोंपड़ी हो दो वक़्त का हो खाना ।

अब वो ग़ज़ल सुनाओ जो दर्द सब भुला दे
खुशियाँ कहाँ मिलेंगी ये राज़ अब बताना ।

ये ज़िन्दगी से पूछा हम जा कहाँ रहे हैं
किस दिन कहीं बनेगा अपना भी आशियाना ।

मुश्किल कभी लगें जब ये ज़िन्दगी की राहें
मंज़िल को याद रखना मत राह भूल जाना ।

हर कारवां से कोई ये कह रहा है "तनहा"
पीछे जो रह गए हैं उनको था साथ लाना । 

     
( नाख़ुदा = नाविक ,  मांझी , केवट , कर्णधार )


 
आदमी की कुछ ऐसी ही फितरत है वर्तमान से नज़रें नहीं मिलाता भविष्य को लेकर आशंकित रहता है और हमेशा बीते हुए पलों को वापस बुलाना चाहता है ।  गीत याद आया है याद न जाये बीते दिनों की , जाके न आये जो दिन , दिल क्यूं बुलाये , उन्हें दिल क्यों बुलाये । दिन जो पखेरू होते पिंजरे में मैं रख लेता , पालता उनको जतन से  , मोती के दाने देता , सीने से रहता लगाये । दिल एक मंदिर फ़िल्म का ये गीत कॉलेज के समय कितनी बार गाया और सुना होगा । करीब महीने भर से अपने कॉलेज के एलुमनाई मीट का सभी ने बेसब्री से इंतज़ार किया शायद यही कारण रहा होगा वापस लौटने की दिलों की छुपी चाहत जिसे हक़ीक़त में सच करना संभव नहीं कुछ घंटे वर्तमान से चुराकर अतीत में जीने की आरज़ू दिल की । कभी सोचा है हम बचपन से युवा अवस्था से उम्र के साथ कितने मित्रता या अन्य संबंधों को अपनी तथाकथित व्यस्तताओं के कारण निभाना भूल जाते हैं , गांव शहर क्या सामने रहने वाले लोगों तक से मिलने बात करने की कोई कोशिश ही नहीं करते , कभी सोचते हैं पहल कोई और करे या फिर आजकल व्हाट्सएप्प संदेश ही काफी लगता है रिश्ते कायम रकने को । फिर भी ऐसे में हम सभी पचास साल से अधिक समय गुज़र जाने के बाद अपने कॉलेज की पुराने छात्रों की मिलन की बेला की सभा को लेकर कितने उत्सुक थे , कारण वही बीती हुई यादों को ताज़ा कर जीवन में नई ऊर्जा का संचार करना उन पलों में वापस लौटने की ख़्वाहिश । 
 
अब बात 4 अक्टूबर 2025 संजीवनी संगम - 2025 , बाबा मस्तनाथ आयुर्वेदिक कॉलेज अस्थल बाहर रोहतक में आयोजित कार्यक्रम की । जैसा सोचा था उस से भी बढ़कर शानदार आयोजन ही नहीं बल्कि उस से अधिक महत्वपूर्ण आयोजक मंडली के सभी सदस्यों के साथ संसथान और वहां शिक्षा प्राप्त कर रहे नवयुवकों युवतियों का आत्मीयता पूर्वक व्यवहार अभिभूत कर गया सभी को । भौतिकता की बात छोड़ भावनात्मक स्नेह का एहसास कोई कभी भूल नहीं सकता है वो भी ऐसे लोगों से जिनसे हमारी कोई जान पहचान ही नहीं थी शायद बाद में भी उनके चेहरे धुंधली याद में रह जाएंगे नाम नहीं मालूम हैं । आपने अपने घर परिवार समाज में कितने समारोह देखे होंगे लेकिन कभी ऐसा शायद अनुभव किया होगा जैसा उस दिन छह से आठ घंटों में सभी को अनुभव हुआ होगा । अपने कॉलेज की प्रगति शानदार प्रदर्शन से लेकर अपने सहपाठियों से मिलकर जो ख़ुशी मिली उनका वर्णन नहीं किया जा सकता , मंच आपका स्वागत कर रहा था आपको आमंत्रित कर आपकी उन्नति को जानकर गौरान्वित था । जिस तरह से हर महमान को अतिविशेष आदरणीय होने का आभास हुआ क्या कभी किसी अन्य जगह हुआ होगा , कभी नहीं । एक दिन साथ रहकर हमने कितनी भूली बिसरी बातों को ताज़ा किया क्या क्या नया जाना समझा जो ज़िंदगी में हासिल करना आसान नहीं होता है ।  
 
सब जानते हैं कि जब हम कॉलेज में पढ़ते थे शायद ही लगता होगा कि सभी कुछ शानदार है बल्कि सदा महसूस हुआ करता था काश कुछ अच्छा आधुनिक होता । लेकिन आज लगता है उस सादगीपूर्ण जीवन की खुशियां कितनी अनमोल थी जिनको फिर नहीं पाया जा सकता है , लगता है मन में इक अनुभूति रहती है कि हमने ही उस सवर्णिम काल को समझने में देरी कर दी ।  बड़ी देर बाद समझ आया कि वास्तविक ज़िंदगी की चाहत दोस्ती और निस्वार्थ प्यार संबंध से आपस में सहयोग त्याग की भावनाएं उस वक़्त के साथ जाने कहीं खो गई हैं । आपने कभी गांव का जीवन जिया है तो समझ आएगा सालों बाद अपने गांव जाने पर सभी कुछ बदला हुआ दिखाई देता है यहां तक कि रहने वाले लोग भी अलग होते हैं तब भी उन गलियों की उस धरती की कोई महक आपको महसूस होती है । कुछ आधुनिक नवीन निर्मित हुआ होता है तो कहीं कोई पुरानी ईमारत जर्जर नज़र आती है , आपको उसे देख कर उदास नहीं होना चाहिए बल्कि सोचना चाहिए कि ईंट पत्थर से बढ़कर हम सभी में जो भावनाएं थीं कैसे आज भी कायम हैं । दार्शनिकता की बात की जाये तो आपको दिखाई देता है इक दिन हमको भी मिट्टी में मिलना ही है । क्या आपको नहीं लगता कि उस जगह की मुहब्बत की अनुभूतियां अभी पहले सी ही हैं । आज इतना ही कुछ तस्वीरें देख सकते हैं , सबसे सुंदर छवि कॉलेज की शुरुआत की पहले बैच की छात्रा रही 1958 बैच की डॉ जयंत वीर कौर तनेजा जी की सभा में मंच पर उपस्थिति को कहना चाहता हूं । 
 


 




1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

सुंदर तस्वीरें लिए हुए सार्थक लेख...पुराने दोस्तों से मिलना वाक़ई सुखद अहसास होता है