सितंबर 12, 2025

POST : 2014 राजनेता ( व्यंग्य - कविता ) डॉ लोक सेतिया

          राजनेता (  व्यंग्य -  कविता  ) डॉ लोक सेतिया 

दफ़्न रूह की आवाज़ कर गया 
जी रहा मगर इक शख़्स मर गया ।  
 
ऐतबार उसका ,  क्या करें भला 
और कुछ कहा , कुछ और कर गया ।  
 
मांगता सदा , ख़ैरात वोट की 
जीत कर न जाने फिर किधर गया ।  
 
रहनुमा बनाकर भूल हमने की 
देश लूटकर घर बार भर गया । 
 
क्या नशा चढ़ा सत्ता जो मिल गई 
ज़ुल्म की हदों से , है गुज़र गया । 
 
बेचने लगा अपना इमान तक 
देख कर उसे शैतान डर गया । 
 
मैं ग़ुलाम हूं  , सरकार आप हैं 
कह के बात ' तनहा ' ख़ुद मुकर गया ।  
 

 
  

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

बहुत खूब व्यंग्यपूर्ण 👍👌