जून 08, 2024

POST : 1838 सर ऊंचा आबरू लुटवा ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

          सर ऊंचा आबरू लुटवा ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

देश की हालत को देखते हैं नेटफ़्लिक्स पर हीरामंडी को देखते हैं लगता है इक जैसे हैं चमक दमक से लेकर बिकने तक सत्ता की खातिर कुछ भी करने को बदन से आत्मा तक का सौदा खुलेआम होता है । दुश्मनी से दोस्ती तक भरोसा नहीं कब कौन किस किरदार में दिखाई देने लगे । शान से जिस्मफ़रोशी के बाज़ार में राजे रजवाड़े जागीरदार जाते हैं किसी की आबरू लूटने में अपनी उतरवा आते हैं । जिसकी आवाज़ किसी को सुनाई नहीं देती वो चमाटा ख़ुशी ख़ुशी खाते हैं । ठीक ऐसे में किसी कमज़ोर महिला ने किसी ताकतवर महिला को थप्पड़ लगाया है इक पुराना सबक याद आया है , यही ज़ुबान तख़्त पे बिठाती है यही किसी को इक दिन सूली पर चढ़ाती है । मालूम नहीं किसलिए पुरानी कहावतें अपने आप याद आने लगी हैं जिनको कब का भुलाए बैठे थे । आशिक़ लाख कोशिश करता है दिल टूटने पर महबूबा को भुलाने की मगर शाम ढलते ही उसकी याद सताने लगती है ऐसा ही इक गीत पता नहीं कैसे इक दोस्त ने हंसी मज़ाक़ में मेरी पहचान बना दी । मुझे भी कुछ दोस्त किसी गीत को सुनकर या कोई फ़िल्म पुरानी देखकर बहुत याद आते हैं , वापस सही विषय पर लौट आते हैं । मुल्तानी कहावत है ढठी हाई खोते तूं ते लड़ी हाई कुंभार नाल । हिंदी में अनुवाद है कि गधे पर बैठ कर सफ़र कर रही थी अचानक गधे ने गिरा दिया तो पत्नी अपने पति कुंभार से झगड़ने लगी ।थप्पड़ भी किसी ने खाया है लेकिन दोषी कोई और था जो उसका मालिक जैसा है गुस्सा उस पर निकालना था निकला किसी पर । करे कोई भरे कोई वाली बात है बस किसी इक से नारज़गी ने कितने बेकसूर लोगों को गुस्सा झेलना पड़ा है चुनावी नतीजों का ये सार समझा कोई भी नहीं बल्कि जिस की ऊट - पटांग बातों से जनता को ऐतराज़ था उसे अभी भी अपनी गलती का एहसास नहीं वो आज भी कुछ दिन चुप रहकर फिर अपने पुराने किरादर में आने लगा है । इंसान की फ़ितरत बदलती नहीं अक़्सर गिरगिट की तरह रंग बदलना जाता नहीं है मज़बूर है झूठ का पुजारी है सच उसको भाता नहीं है । इक कहावत है ऊंचाई से गिर कर दोबारा ऊपर जा सकता है नज़रों से गिर गया जो फिर दिल उसको अपनाता नहीं है ।  
 
कथा कहानियों कहावतों कल्पनाओं से निकलते है खुली हवा में ज़माने से मिलते हैं । आपने मुझे मारा ठीक है लेकिन इतना बताओ गुस्से में पिटाई की या कोई मज़ाक़ था । जवाब मिला गुस्सा हैं तुम पर सुनकर कहने लगे फिर ठीक है क्योंकि मुझे मज़ाक पसंद नहीं , लेकिन आपकी तो आदत है सभी का उपहास करते हैं तो कहने लगे बादशाह लोग मज़ाक़ ही करते हैं उनको कुछ और करना नहीं आता जब तब ये उनका विशेष अधिकार है । राजा नंगा है कहना हमेशा गुनाह रहा है किसी को मुझे आप नंगे हो चुके हैं कभी नहीं कहना चाहिए । जैसे मैंने पिछले शासक का उपहास किया था कि कोई रेन कोट पहन कर नहाते थे जो कोई दाग़ नहीं लगा उन पर अन्यथा सत्ता के हम्माम में नंगा कौन नहीं हमने सभी दाग़दार लोगों को अपने साबुन से चमकदार सफ़ेद ही नहीं बना दिया बल्कि काला धन सफेद धन का भेदभाव मिटा दिया । जिस ने हाथ नहीं मिलाया उसका हाथ ही कटवा दिया , नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली कहावत सुनते थे हमने उस का आंकड़ा लाखों करोड़ तक क्या उस से भी आगे पहुंचा दिया । कोठेवाली की रोज़ सुहागरात होती है सत्ता की कुछ ऐसी बात होती है खुद को नहीं अपना सर्वस्व बेच कर भी हम शर्मिंदा नहीं हैं अपने धंधे को हमने कभी बुरा नहीं समझा बदनाम होना कोई आसान बात नहीं है । शरीफ़ लोगों को दुनिया भुला देती है जैसे हमको लगा था महात्मा गांधी को कोई नहीं जानता लेकिन हिटलर को दुनिया चाहे भी तो भुला नहीं पाएगी । कभी तन्हाइयों में यूं हमारी याद आएगी । ये बिजली राख कर जाएगी तेरे प्यार की दुनिया , ना फिर तू जी सकेगा और ना तुझको मौत आएगी । जिनको बात करने का सलीका नहीं आता है महफ़िल में रौनक है उनकी और जिनकी सूरत ऐसी जैसे कैक्टस का चेहरा , दिखाई देते हैं आईनाख़ाने में ।
 
नीरज श्रीवस्तवा आभाकाम

                        

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

किसी की आबरू...अपनी उतरवा आते हैं👌👍 थप्पड़ कांड...नाराज़गी का परिणाम है... बढ़िया आलेख