जून 26, 2019

लंबी ख़ामोशी से पहले कहना है ( फ़लसफ़ा ज़िंदगी का ) डॉ लोक सेतिया

       लंबी ख़ामोशी से पहले कहना है ( फ़लसफ़ा ज़िंदगी का ) 

                                डॉ लोक सेतिया 

  अभी नहीं अभी तो कुछ कहा ही नहीं चुप होने की बात नहीं कहो ख़ामोश होने से पहले मुझे कुछ दिल की बात कहने दो। फ़ोन पर चेतावनी मिलती रहती है आजकल सोच समझ का कुछ कहना सरकार संदेश भेजती है बताने को कानूनी भाषा जो समझ नहीं आती किसी को फोन का उपयोग सोच समझ कर करें सरकार की नापसंद की बात पर अंजाम भुगतने को तैयार रहना। लिखा जो भी हो मतलब निकलता यही है। सब लोग भी डराते हैं क्या मुझे डर नहीं लगता , अब क्या कहूं डर किस बात का है। डर यही है कि किसी दिन हमेशा को खामोश होना ही है उस से पहले जो चाहता हूं कह तो लूं। अभी तो कुछ भी नहीं कह पाया अच्छी तरह से बस हर दिन अल्फ़ाज़ निकलते हैं फुसफुसाहट बनकर रह जाते हैं आवाज़ बनकर सुनाई नहीं देते बहरे समाज को निज़ाम को। सच बताऊं फिर आज सोचा था नहीं लिखा जाएगा नहीं बोला जाएगा जो कहना है अल्फ़ाज़ मिलते ही नहीं है बस यूं की कागज़ काले करने से फायदा क्या है। आज बताऊं मुझे क्या लिखना बाक़ी है क्या है जो कहना है कह नहीं पाया कहा नहीं जाता या कोई भी दिखाई नहीं देता जिस से कहूं जो सुने भी और समझे भी। अभी तलक किसी को मेरी कही बात समझ आती नहीं है कहता हूं जो समझते हैं सब लोग उसके उलट ही अर्थ निकाल कर। सुबह सैर पर जाता हूं यूं ही कोई गीत सुन कर गुनगुनाता रहता हूं अच्छा लगता है चैन मिलता है दिल को राहत भी। आज नहीं लिखने की बात थी फिर मन में ऐसे में अचानक फैज़ अहमद फैज़ की नज़्म इक़बाल बानो की गाई हुई सुनकर याद आया अभी मकसद पूरा कहां हुआ है अधूरा है कुछ लिखना रह गया है कुछ है जो कहना है लंबी ख़ामोशी से पहले। 

    न मैं फैज़ बन सकता हूं न मुझे ग़ालिब होना है दुष्यंत कुमार भी नहीं होना मुमकिन। थोड़ा थोड़ा सब है मुझ में मिला हुआ नानक भी कबीर भी रहीम भी रसखान भी। फैज़ की तरह आरज़ू है देखने की उस दिन को जिसका वादा है। जब सब ताज उछाले जाएंगे सब तख़्त गिराए जाएंगे और राज करेगी आम जनता जो तुम भी हो और मैं भी हूं। मेरा कहा मानोगे यही गीत नज़्म रोज़ सुना करो सीने में इक आग जलती रहेगी जो दुष्यंत कुमार कहते हैं हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए। जाँनिसार की याद आई ऐसे में , जल गया अपना नशेमन  तो कोई बात नहीं , देखना है कि  अब आग किधर लगती है। सारी दुनिया में गरीबों का लहू बहता है हर ज़मीं मुझको मेरे खून से तर लगती है। ये सब अपनी अपनी मशाल जलाकर दे गए हैं हम सब को। ऐसी मशाल जो बुझती नहीं लाख बुझाने की कोशिश करे कोई हाक़िम। बहुत कोशिशें की गईं नहीं बुझा पाए उनकी शमां को , नहीं रोक पाए उनकी आवाज़ को बंद करने को किसी कैदखाने की ऊंची दीवार से भी। ज़फ़र का दर्द अपनी ज़मीन से बिछुड़ कर भी छिपाया नहीं जा सका आज भी याद है , लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दयार में। रूह तक जाती है टीस बनकर उनकी ग़ज़ल की बात। 

मुझे लिखना है या कि बनाना है इक प्यार का जहां इक शहर मुहब्बत का जिस में किसी को किसी से बैर नहीं हो कोई नफरत नहीं करे किसी से अदावत की कोई बात नहीं हो। यही चाहा है कोई महल नहीं धन दौलत की चाहत नहीं कोई शोहरत की आरज़ू भी नहीं बस थोड़ा प्यार अपनापन हमदर्दी का ज़रा सा स्पर्श मिल जाये। कुछ पल को जीने को ज़िंदगी की ज़रूरत है उसके बाद मौत से तो इश्क़ करना ही है। कौन जाने जन्नत की चाह में मर के भी दोजख़ ही नसीब हो , ये माना ये दुनिया मेरी चाहत की दुनिया नहीं है पराई पराई सी है। फिर भी मुझे यहीं इसी में तलाश करनी है कोई दुनिया अपनी भी हो जो। अब भी रुख्सत होने से पहले कोई इक गीत कोई ग़ज़ल कोई नग्मा कोई कहानी मुहब्बत की कहनी है जो जाने के बाद इक दिया बनकर कोई चिराग़ बन कर उजाला करे हमेशा हमेशा को। शायद इतने घने अंधकार में जुगनू की तरह टिमटिमाता हुआ मेरा थोड़ा सा वजूद इक उम्मीद बनकर किसी को रास्ता दिखलाता रहे। आपकी नफरत की जंग की भेदभाव की दुनिया से थोड़ा छुटकारा मिल जाता तो लिख लेता अपना गीत दोस्ती मुहब्बत प्यार का। इसी बहाने की गीत भी गाता गुनगुनाता चलूं आपको सुनाता हुआ।  पर जो लिखना रह गया है बाकी है उस का इंतज़ार करना ज़रूर शायद थोड़ा विलंब से फिर भी होगा यादगार ऐसा दिल कहता है। 

 गीत प्यार का गुनगुनाऊं ( गीत ) डॉ  लोक सेतिया

गीत प्यार का गुनगुनाऊं कैसे।

लोग पूछते हैं तुम्हारी बातें
याद कौन रखता हमारी बातें
आसमां पे तुमने बसाया है घर
मैं तुम्हें ज़मीं पर बुलाऊं कैसे।
गीत प्यार का ......................

खुद से खुद को जब दूर करना चाहा
और ग़म से घबरा के मरना चाहा
मौत ने मुझे किस तरह ठुकराया
आज वो कहानी सुनाऊं कैसे।
गीत प्यार का ........................

छोड़ कर मुझे लोग धीरे धीरे
चल दिए कहीं और धीरे धीरे
साथ साथ चलने के वादे भूले
रूठ कर चले जब मनाऊं कैसे।
गीत प्यार का .....................

कब वफ़ा निभाई यहां दुनिया ने
हर रस्म उठाई यहां दुनिया ने
जिस्म भी हुआ और दिल भी घायल
ज़ख्म आज सारे दिखाऊं कैसे।
गीत प्यार का गुनगुनाऊं कैसे।
    


 


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