जून 29, 2019

कुआं मेंढक खुद को समंदर समझना ( सच केवल सच ) भाग एक - डॉ लोक सेतिया

       कुआं मेंढक खुद को समंदर समझना ( सच केवल सच ) 

                          भाग एक -    डॉ लोक सेतिया 

 अपनी हैसियत को लेकर मुगालते में रहने वाले लोग भी होते हैं। बात चाहे किसी भी समाज की हो ऐसे लोग मिलते हैं जो जतलाते हैं अगर दुनिया कायम है तो उन्हीं के दम से है। किसी और की क्यों खुद अपनी बात करता हूं मैं क्या हूं कुछ भी नहीं मुझसे पहले कितने डॉक्टर भी और लेखक भी हुए हैं जिनके सामने मेरी कोई बिसात ही नहीं है साहित्य की दुनिया के समंदर में मेरा अस्तित्व किसी कतरे से भी कम है न होने जैसा। कई लोग हुए हैं अभी भी होंगे जिनको लगता है हिंदी साहित्य की शान उनसे है जबकि हिंदी ही नहीं अन्य भी भारतीय भाषाओं का साहित्य बहुत समृद्ध रहा है। जिनको किसी और भाषा का साहित्य उच्च कोटि का लगता है उन्हों भारतीय ग्रंथों को समझा तो क्या पढ़ा ही नहीं है। महाभारत जैसा काव्य ग्रंथ रामायण जैसा दुनिया में कहीं नहीं मिलेगा , गीता की संक्षेप की बात और सार की बात अनुपम है तो गुरु ग्रंथसाहिब किसी भी अन्य धर्म से अलग अपनी मिसाल है तभी उसको प्रकट गुरु समझने को कहा गया है। टैगोर का लिखा साहित्य अभी सारा छप नहीं सका है ग़ालिब मीर कबीर रहीम रसखान और रूहानियत के कवि खय्याम से लेकर लंबी सुचि है हम बस उनकी रचनाओं को जानते हैं थोड़ा बहुत। फिर भी हैं जो आज खुद को समझते हैं साहित्य के हस्ताक्षर हैं। बात किसी और की करनी है मगर मगर पहले अपने भीतर झांकना उचित था और मुझे ये स्वीकार करने में रत्ती भर संकोच नहीं है कि मैं कुछ भी नहीं हूं इक तिनके से कम हैसियत है जो तेज़ आंधी की बात क्या ज़रा सी हवा भी उड़ाकर जिधर चाहे ले जा सकती है। अब आगे आजकल की बात। 

मोदी को लेकर बड़ा शोर है उन्होंने देश की शान बढ़ाई है जैसे उनसे पहले देश बेनाम था और उसकी अपनी कोई पहचान नहीं थी कोई विरासत नहीं थी। ये इस महान देश की महत्ता महान परंपरा विरासत को भूलना है। ठीक जैसे कुछ लोग आज़ादी को गांधी जी की उपलब्धि समझते हैं जबकि गांधी इक चेहरा थे विचारधारा का जो अहिंसक तरीके से देश की लड़ाई लड़ रहे थे और करोड़ों लोगों को अपने साथ खड़ा करने का काम कर दिखाया था मगर साथ ही कितने ही और भगत सिंह बोस जैसे भी लोग अपनी अपनी तरह से आज़ादी की जंग में शामिल थे। बर्तानिया सरकार के साथ समझौता या संधि होने से सारा श्रेय उनको नहीं दिया जा सकता है और अभी भी देश की जनता उनको महानायक मानती है गांधी नेहरू के योगदान को समझ कर भी उनकी कुर्बानी को याद रखते हैं दिल से आदर से। कुछ लगाव है जो आज भी उनके नाम से ही हमारा खून दौड़ने लगता है इक भावना का संचार करता है देशभक्ति का जज़्बा पैदा करता है। हज़ारों साल का अपना गौरवशाली इतिहास है और जाने कितने शासक हुए हैं जिनका योगदान कोई भूल नहीं सकता है। वो चाहे कोई मुस्लिम शासक हों या सिक्ख राजा उन्होंने हिंदुस्तान को सभी धर्म के लोगों को जोड़ने और उनका कल्याण करने तथा न्याय का आदर्श स्थापित करने का कार्य ईमानदारी और निष्पक्षता से किया ताकि हर कोई खुद को सुरक्षित महसूस कर सके। विश्व के देशों से पहले हमारा देश बेहद समृद्ध रहा है आर्थिक रूप से भी और ज्ञान विज्ञान को लेकर भी हम दुनिया को ज्ञान बांटने का काम करते रहे हैं। 

कई विदेशी अंग्रेजी शासकों ने हमारे इस बेहद समृद्ध भंडार को दरकिनार कर अपनी शिक्षा और नीतियों को लादने का काम किया और हमारे कुछ लोग जो शासक वर्ग और अभिजात वर्ग से थे उनकी चाल को समझने में नाकाम रहे और देश को गुलामी की जंज़ीरों में जकड़े जाता देख किनारे खड़े रहे। उनको अपने लिए पैसा तमगे उपाधियां और ख़िताब इतने भाए कि उनकी आंखें ही नहीं सोच भी कुछ भी नहीं देख रही थी। ऐसे लोगों की गलतियों और स्वार्थ से देश दो सौ साल गुलाम रहा है। मगर हमने इक़बाल की बात को शायद नहीं समझा है कि कुछ बात है जो हस्ती मिटती नहीं हमारी बरसों रहा है दुश्मन दौरे जहां हमारा। आज कुछ लोग शायद अपने स्वार्थ में अंधे होकर ऐसा शोर करते हैं जैसे किसी एक नेता के आने से देश का परिचय विश्व से हुआ है। हम नहीं समझते राजनीति का खेल हमेशा से सत्ता और ताकत और लूट का तरीका रहा है जो भी देश हमसे दोस्ती के रिश्ते रखते हैं उनका खुद का मतलब होता है कोई आर्थिक या वैश्विक राजनीति से जुड़ा स्वार्थ छुपा होता है। जो भी देश आगे बढ़ते हैं अपने दम पर लगन से महनत से बढ़ते है किसी और देश से खैरात लेकर नहीं। खैरात पाने वालों का अंजाम सामने है पड़ोसी देश को देख सकते हैं , जब तक मतलब था ज़रूरत थी उपयोग करना था उसको कितना कुछ दिया और जब मतलब के नहीं समझते तो मझधार में छोड़ते हुए समय नहीं लगाया है। 

   केवल बातों को भाषण को सुनकर किसी को महान मत समझना ऐसा शेख चिल्ली होने को कितने हो सकते हैं वास्तविक नायक कहने में नहीं कर दिखाने में यकीन करते हैं। ध्यान से समझोगे तो उनकी कही बात वास्तविकता में सच नज़र नहीं आती है। लेकिन हम जिन टीवी अख़बार वालों से प्रभावित हो जाते हैं वो खुद क्या हैं अपने खुद को सबसे बेहतर हैं का खुद ही तमगा देते हैं। कहते हैं हमारे चाहने वाले सबसे बढ़कर हैं जब कि उनकी इसी बात को नापसंद करने वाले उनसे परेशान हैं उनको नहीं खबर। कई लोग ऐसे होते है जिनको खुद को बाज़ार में ऊंचे दाम बेचना आता है और आपके सामने हैं कोई योग की दुकानदारी करता है कोई किसी खेल को पैसा बनाने का जरिया तो कोई अभिनय को शोहरत दौलत पाने का माध्यम बना नज़र आता है उनसे बड़ा कोई नहीं हुआ है मगर ये छल है और उनसे अधिक काबिल लोगों को किनारे करने भूल जाने का काम है। 
 
                   ( अभी विषय अधूरा है बाकी बात अगली पोस्ट पर )

 

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