जून 11, 2019

तब की बात है ( चिंतन ) डॉ लोक सेतिया

           तब की बात है ( चिंतन ) डॉ लोक सेतिया 

         कब की बात है अब की नहीं तब की बात है। जब हम नहीं थे जब तुम नहीं थे ग़ज़ब की बात है। पिछले पांच साल से इतिहास की तलाशी लेने खंगालने और उसको बदल कर परिभाषित करने का चलन देख कर लगता है भविष्य को करने की नहीं वर्तमान को संवरने की नहीं बीते कल कहानी सुनने सुनाने पर ध्यान अटका हुआ है। मुझे याद है इक अख़बार के संपादक हर दिन अपने संपादकीय लेख में घुमा फिरा कर बात उसी वक़्त पर ले आते थे , जब मैं वज़ीर था। मालूम नहीं किस सरकार में उनकी वज़ारत कितने समय तक रही लेकिन शायद उनको किसी हसीन ख्वाब की तरह उसी में जीना आनंद देता था। बहुत लोग अपने पूर्वजों की कहानियां उनकी सफलता के किस्से उनकी शोहरत की  बातें सभी को सुनाते बताया करते हैं जब उनका आज का वर्तमान खुद उनको कमतर लगता है। सरकार या कोई दल राजनीति में अपने मकसद के लिए विपक्षी दल की सालों पुरानी बातों को दोहरा कर फायदा उठाने का काम करें तो अलग बात है लेकिन हम सभी किसलिए आज की बात इस दल की सरकार की काम की बात को छोड़ उनकी बातें करें जो कितने सालों पहले दुनिया से ही चले गए हैं। चलो ज़रा अलग ढंग से चर्चा करते हैं।

     सोचो क्या इस तरह से सोचने से जीवन में आगे बढ़ सकते हैं। कोई इसी बात पर विलाप करता रहे कि काश बाहरवीं में उस साल फेल नहीं होता तो तब कोई और ही बन गया होता। उस शहर को छोड़ता नहीं तो आज जाने कहां पहुंच गया होता। नौकरी नहीं करता तो कारोबार कर खूब कमाई कर सकता था अथवा नौकरी मिल जाती तो आज सेवानिवृत होकर चैन से पेंशन लेकर मज़े से रहता। ये सब सोच कर अपनी गलतियों या गलत साबित हुए फैसलों की विवेचना कर सबक नहीं लेते बस उसका विलाप करते हैं किसी और को अपने वर्तमान का दोषी ठहराते हैं। जो हैं होकर खुश नहीं जो नहीं बने सोचते हैं काश होते इसको मानसिक असहजता कहते हैं कि जब जो करना था नहीं किया और जो किया बाद में सोचना ये करना नहीं था। मगर जो पिछले समय के इतिहास और घटनाओं से अच्छी तरह वाकिफ़ नहीं बस सुनी सुनाई बातों से कुछ भी मान लेते हैं और यकीन से घोषणा करते हैं तब अमुक नेता को अमुक पद मिलना चाहिए था। कोई उनसे सवाल करे आज जिसको आप समझते हैं केवल उसी को किसी पद पर होना चाहिए मुमकिन है पचास साल बाद आपकी ही तरह कुछ लोग इसकी चर्चा करें कि किसी और को पद मिलता तो देश का अच्छा होता। मगर क्या कोई पिछले घटे हुए घटनाकर्म को बदल सकता है। ये आज के लोग आप हम या जिनको अधिकार है उनका निर्णय है जिस को चाहा पद पर बिठाया है।

    कुछ साल पहले महिलाएं यही सोचती थी कि काश वो औरत नहीं पुरुष होती तो अपने पति भाई या पिता से बेहतर कर सकती थी। ये आसान रास्ता था मगर आजकल महिलाएं लड़कियां जो चाहती हैं हौंसले से कर गुज़रती हैं बाद में पछताती नहीं हैं। घर से कोई पढ़ लिख जाता है तो कोई पढ़ाई लिखाई को बेकार समझता है कुछ और कारोबार करता है और पढ़ लिख कर भविष्य बनाने वाले से अधिक आमदनी करने लगता है। कभी जिसको लगता था मेरा पति अनपढ़ है अमीर बन जाने पर शिक्षित की पत्नी को तंज करती है देखो मेरे वो आपके वाले से बढ़कर हैं। पैसा पास होना इक मापदंड बन गया है जबकि बज़ुर्ग समझाते थे ज्ञान का धन कोई चुरा नहीं सकता है धन दौलत कभी कम कभी अधिक हो सकते हैं कारोबार आमदनी भी कभी आकाश से पाताल को पहुंच सकती हैं मगर शिक्षा आपके पास हमेशा सुरक्षित रहती है। जाने क्यों लोग अपने रिश्तों को इस तरह मापते तोलते हैं बड़ा ओहदा छोटा पद या धन दौलत की कमी अधिकता की बात से। हीनभावना का शिकार हो जाते है या अहंकार करने लगते हैं , कोई आपसे किस तरह से निभाता है कितना अच्छा है या खराब है इसको नहीं देखते बस रईस से करीब होकर खुश होते हैं जो वास्तविक ख़ुशी नहीं होती है।

    कहते हैं कि जो खानदानी रईस होते हैं उनका सलीका उनका ढंग शिष्टाचार वाला होता है। उनको अपनी अमीरी का दिखावा करना नहीं पसंद होता और न ही अमीरी जाने से उनका तौर तरीका बदलता है। जो किसी को अपनी अमीरी का दिखावा करने को कहते हैं भाई हम तो इस हाल में कभी नहीं रह सकते जाने कैसे लोग बिना बड़ी कार और सुख सुविधा रह लेते हैं। कहने को बेशक किसी को शुभचिंतक बनकर कहते हैं मगर क्या ऐसे लोग किसी अपने की पैसे की कमी देख कर हाथ बढ़ाते हैं , नहीं हर्गिज़ नहीं बल्कि तब अगर लगे किसी की विवशता में सहायता देनी पड़ेगी तो करीब ही नहीं आते हैं। साफ बात ये है कि आपको ज़रूरत है बताने पर जो आपको उधार नहीं देते जब लगता है आपके पास बहुत है तो खुद कहते हैं जब मर्ज़ी बताना आपके लिए सब हाज़िर है। अच्छा बुरा वक़्त जीवन में आता है आपको सबक सिखाता है। कब की बात है जब की बात है तब की बात है को छोड़ जान लेना चाहिए वक़्त वक़्त की बात है।


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