अगस्त 22, 2018

शुरुआत की जिसने बताओ ( बेबात की बात ) डॉ लोक सेतिया

  शुरुआत की जिसने बताओ ( बेबात की बात ) डॉ लोक सेतिया 

 सरकार ने व्हाट्सएप्प वालों से कहा है पहला संदेश किसने भेजा इसको तलाश करने का उपाय करो। क्या पहला पत्थर किसने मारा वही गुनहगार है उसके बाद जो लोग आंखें बंद कर संदेश को आगे भेजते रहे वो बेचारे नासमझ भोले भाले लोग थे। कोई गाली बकता है तो आप उसकी गाली का विरोध नहीं करते और लोगों को गाली बकने लगते हैं। गाली देना गलत नहीं है गलती उसकी है जिसने उस गाली का अविष्कार किया था। अगर यही बात है तो शराबी को कोई सज़ा क्यों मिले सज़ा तो सरकार को मिलनी चाहिए जो अपनी कमाई की खातिर शराब बनाने और बेचने को ही नहीं शराबखाना खुलवाने को लाइसेंस देती है। सरकार की बातों से अक्सर लगता है अपने कर्तव्य को नहीं पालन करने का ठीकरा किसी और पर फोड़ना चाहती है। खुद नेता लोग क्या करते है। 

       इस दौरे सियासत का इतना सा फ़साना है , बस्ती भी जलानी है मातम भी मनाना है।

 आप जब कहते हैं झूठ बोलते हैं जनाब तो पहले आपको बताना होगा मुझसे पहले सबसे पहला झूठ जिसने बोला था उसका पता लगाओ , असली गुनहगार वही है। भीड़ ने आगजनी की किसी को मारा पीटा या जान से मार दिया तो पुलिस को पहली तीली जलाने वाले को पकड़ोगे या माचिस बनाने वाले को। कोई पुल गिर गया तो पकड़ना उस नेता को होगा जिसने उसकी नींव रखी थी , यूं भी नेता नींव रखते हैं और भूल जाते हैं , हमारे मुख्यमंत्री जी बिना कोई विमान बिना कोई लाइसेंस मिले हवाई अड्डे का उदघाटन करते हैं। कल जो भी अंजाम होगा कसूरवार वही होगा जिसने शुरुआत की थी बगैर साधन उपलब्ध करवाए मुहूर्त करने का।


   आप ये मत पूछो ये जो सोशल मीडिया को अपने राजनीतिक इस्तेमाल को दुरूपयोग करने की शुरुआत किस ने की थी , नाम आएगा तुम्हारा ये कहानी फिर सही। दिल के लुटने का सबब पूछो न सब के सामने। राज़ की बात है राज़ ही रहने दो , सारे राज़ खुलने लगे तो अंजाम क्या होगा खुदा जाने। हमको किसके ग़म ने मारा ये कहानी फिर सही। इक और गीत आपको पसंद आएगा। ये ज़ुल्फ़ अगर खुल के बिखर जाये तो अच्छा , इस रात की तकदीर संवर जाये तो अच्छा। वैसे तो तुम्हीं ने मुझे बर्बाद किया है , इल्ज़ाम किसी और के सर जाये तो अच्छा। आपको यूं भी हर बात का दोष पहले वाले शासकों को मढ़ना पसंद है। आपने भी देश की जनता के साथ कोई वफ़ा तो नहीं की है फिर भी बेवफाई की सज़ा कोई और पाए तो क्या बुरा है।

     नफरत की शुरुआत किसने की थी , हिंसा की शुरुआत गांधी ने की थी या गोडसे ने इसकी बात मत पूछो , बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी। शायद उस राज्य को भी तलाश करना मुश्किल नहीं जहां से नफरत की तथाकथित प्रयोगशाला शुरू की गई थी। राख में दबी पड़ी हैं कितनी ही चिंगारियां , हवा मत दो वर्ना शोला बनकर कहीं अपने ही दामन को न जला बैठो। सरकार और पुलिस को अपराध को रोकना है केवल मुखबिर से सुराग देने की साज़िश नहीं करनी है ताकि जब ज़रूरत हो उसे भी उपयोग किया जा सके। अपनी हर नाकामी के लिए किसी दूसरे को दोष देना किसी काम का नहीं। काम करना ज़रूरी है जो सरकार काम करने में असफल रहती है उसे रहने का हक नहीं होता है।

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