अगस्त 10, 2018

भीख भिखारी और भिक्षा ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया

       भीख भिखारी और भिक्षा ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया 

      भीख की महिमा , भिखारी सारी दुनिया , मोबाइल वाले भिखारी , भिक्षा सरचार्ज , ये सभी मेरी 2003 में लिखी और छप चुकी रचनाएं हैं। आज की रचना उसी विषय पर है मगर नई लिख रहा हूं पुरानी याद आ रही हैं। सरकार अगर पुरानी योजनाओं को नाम बदल चला सकती है तो थोड़ा अधिकार मुझे भी मिल सकता है पिछली बातों को दोहराने का। शुरुआत जनाब जाँनिसार अख़्तर जी की इक ग़ज़ल से की जाये तो कैसा हो। पहले उनकी ग़ज़ल का आखिरी शेर लिखता रहा हूं आज मुक़्क़मल ग़ज़ल पेश है :-

ज़िन्दगी ये तो नहीं तुझ को सँवारा ही न हो , कुछ न कुछ हमने तेरा क़र्ज़ उतारा ही न हो। 

कूए-क़ातिल की बड़ी धूम है चल कर देखें , क्या खबर कूच-ए-दिलबर से प्यारा ही न हो। 

                                   ( कूए-क़ातिल = क़ातिल की गली )

दिल को छू जाती है यूँ रात की आवाज़ कभी , चौंक उठता हूँ कहीं तूने पुकारा ही न हो। 

कभी पलकों पे चमकती है जो अश्कों की लकीर , सोचता हूँ तेरे आँचल का किनारा ही न हो। 

शर्म आती है कि उस शहर में हैं हम कि जहाँ , न मिले भीख तो लाखों का गुज़ारा ही न हो। 

        शर्म उनको मगर नहीं आती। दिल्ली की बात है कल ही उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया है अब दिल्ली में भीख मांगना अपराध नहीं होगा। शायर ने ये बात लगता है बॉम्बे को जो अब मुंबई है सोच कर कही होगी। मगर शायरी की खासियत यही है सभी जगह हाल वही मिलता है। एक लाख लोग बताये जा रहे हैं जो बेबसी में देश की राजधानी में भीख मांगकर गुज़ारा करते हैं। सरकार को चिंता है मुमकिन है जो बात 15 साल पहले इक मज़ाक लगती थी आज सच हो जाये। हुआ यूं कि इक अख़बार में एक भिखारी को मोबाइल फोन पर बात करते दिखाती तस्वीर छपी थी और तब भी शाइनिंग इंडिया की धूम थी। तब भी कोई आईएएस अधिकारी सत्येंद्र दुबे कत्ल किया गया था सच बोलने की खातिर , भ्र्ष्टाचार की बात पीएएमओ को लिखने के बाद। परसों फिर कुछ लोग राफेल की बात पर सच समझना चाहते थे। आपको लगेगा ये किधर की बात किधर जा रही है , मगर नहीं ये भी भीख की ही बात है। सरकार जनता को अधिकार भी खैरात की तरह देती है मगर अपने खास लोगों को भागीदार बनाकर करोड़ों रक्षा सौदे में उपहार की तरह देती है। ये जो बिक चुके हैं टीवी चैनल वाले अख़बार मीडिया वाले विज्ञापन की भीख पर जीते हैं। तेज़ चलने की बात कहने को है अपाहिज हैं बिना सरकारी बैसाखियों के दो कदम भी नहीं चलते हैं। बिक गये हैं बेचते हैं खबरें भी और झूठ को सच का लेबल लगाकर भी , खबर के साथ साथ किसी की फोटो देख समझना खरीदार वही है और उसी का सब बिकता है ये तो बिचौलिए दुकानदार हैं। टीवी अख़बार वालों को राजनीति को छोड़ देश की कोई खबर खबर नहीं लगती , मोबाइल हाथ में देकर फोटो लिया और खबर बन गई। आजकल भी देश की वास्तविकता को दरकिनार कर वायरल विडिओ की बातें करते हैं। सरकार भी आजकल सब स्मार्ट फोन या ऐप्स पर करती है तो मुमकिन है भिखारियों को भी आधार कार्ड और ऐप्स से जोड़ा जाये। भीख भिक्षा और भिखारी शोध का विषय हैं। आओ भीख की महिमा सुनते हैं। 

           ये बात सभी धर्म के ग्रंथ एक समान कहते हैं कि जिसके पास धन दौलत , सुख सुविधा सब कुछ है मगर उसको तब भी और अधिक पाने की लालसा रहती है वो सब से दरिद्र है। आप जिनको बहुत महान समझते हैं वे भी क्या ऐसे ही नहीं हैं। उनको अपने काम से सब मिलता है , नाम-पैसा-शोहरत , फिर भी उनकी दौलत की हवस है कि मिटती ही नहीं। विज्ञापन देने का काम करते हैं , पीतल को सोना बताते हैं , अपनी पैसे की हवस पूरी करने को। हम तब भी उनको भगवान बता रहे हैं। ईश्वर तो सब को सब कुछ देता है , कभी मांगता नहीं , उसको कुछ भी नहीं चाहिये।  इन कलयुगी भगवानों को जितना भी मिल जाये इनको थोड़ा लगता है। ये जब समाज सेवा भी किया करते हैं तो खुद अपनी जेब से कौड़ी ख़र्च नहीं किया करते , यहां भी इनके चाहने वाले उल्लू बनते हैं। उल्लू मत बनाना कह कर खुद उल्लू सीधा कर लेते हैं अपना। देश के नेता हों या प्रशासन के अधिकारी ये सारे भी इसी कतार में शामिल हैं। देश की गरीब जनता इनकी दाता है और ये लाखों करोड़ों की संपत्ति पास होने के बाद भी उसके भिखारी। ये लोग भीख भी मांग कर नहीं मिले तो छीन कर ले लिया करते हैं , इनको भीख पाकर भी देने वाले को दुआ देना नहीं आता। हर भिखारी मानता है कि भीख लेना उसके हक है , भीख लेकर ख़ाने में उनको कोई शर्म नहीं आती। वेतन जितना भी हो रिश्वत की भीख बिना उनका पेट भरता ही नहीं। ये भीख मज़बूरी में पेट की आग बुझाने को नहीं लेते , कोठी कार , फार्महाउस बनाने को लेते हैं। ये जो भीख लेते हैं उसको भीख न कह कर कुछ और नाम दे देते हैं।

                    भीख भी हर किसी को नहीं मिला करती , उसी को मिलती है जिसे भीख मांगने का हुनर आता हो। ये गुर जिसने भी सीख लिया वो कहीं भी चला जाये अपना जुगाड़ कर ही लेता है। भीख और भ्र्ष्टाचार दोनों की समान राशि है , बताते हैं कि रिश्वत की शुरुआत ऐसे ही हुई थी। पहले पहले अफ्सर -बाबू किसी का कोई काम करने के बाद ईनाम मांगा करते थे , धीरे धीरे ये उनकी आदत बन गई और वह काम करने से पहले दाम तय करने लगे जो बाद में छीन कर लिया जाने पर भ्र्ष्टाचार कहलाने लगा। आज देश में सब से बड़ा कारोबार यही है , तमाम बड़े लोग किसी न किसी रूप में भीख पा रहे हैं।  जिनको हम समझते हैं देश के सब से अमीर लोग हैं उनको भी सरकारी सबसिडी की भीख चहिये नहीं तो वो रहीस रह नहीं सकते। आजकल भीख मांगने वाले भी सम्मान के पात्र समझे जाते हैं , जिसे देखो वही इस धंधे में शामिल होना चाहता है। भीख नोटों की ही नहीं होती , वोटों की भी मांगी जाती है , वोट जनता का एकमात्र अधिकार है वो भी नेता खैरात में देने को कहते हैं , वोट पाने के हकदार बन कर नहीं। कई साल से देश की सरकार तक समर्थन की भीख से ही चल रही है। देश की मलिक जनता को जीने की बुनियादी सुविधाओं की भी भीख मांगनी पड़ रही है , मगर नेता-अफ्सर सभी को नहीं देते , अपनों अपनों को देना पसंद करते हैं। अफ्सर मंत्री से मलाईदार पोस्टिंग की भीख मांगता है तो मंत्री जी मुख्य मंत्री जी से विभाग की। हर राज्य का मुख्य मंत्री केंद्र की सरकार के सामने कटोरा लिये खड़ा रहता है। राजनीति और प्रशासन जिंदा ही भीख के लेन देन पर है। विश्व बैंक और आई एम एफ के सामने कितनी सरकारें भिखारी बन ख़ड़ी रहती हैं। इनको भीख किसी दूसरे नाम से मिलती है जो देखने में भीख नहीं लगती। मगर जिस तरह गिड़गिड़ा कर ये भीख मांगते हैं उस से सड़क के भिखारी तक शर्मसार हो जाएं। सच तो ये है कि सड़क वाले भिखारी भीख अधिकार से और शान से मांगते हैं , उनको पता है लोग भीख अपने स्वार्थ के लिये देते हैं , बदले में पुण्य मिलेगा ये सोच कर। बड़े बड़े शहरों में रोक लगा दी गई थी , सड़क पर भीख मांगने पर , जो पुलिस वाले खुद सड़क पर खड़े होकर भीख लिया करते वो  जुर्माना करते थे  उन पर जो भीख दे रहा होता है।  भिखारी पर नहीं होता जुर्माना। मतलब यही है कि भीख मांगना नहीं देना अपराध है। देश की तमाम जनता इस कानून के कटघरे में खड़ी नज़र आती है , इस युग में किसी पर दया करना कोई छोटा अपराध नहीं है।

        दाता एक राम है भिखारी सारी दुनिया। धर्म की दुकानों पर भीख को दान कहते हैं गरीब लोग उपदेश सुनते हैं जितना है उसी में खुश रहो अपने गुरु जी से जो खुद कतनी आमदनी कितने डेरे कितने हर शहर में सतसंग घर बनवाता जाता है बदले में दो रूपये का बिस्कुट का पैकेट एक रूपये में खरीद कर खुश हो जाता है। ये सस्ता माल जो कंपनी बेचती है कभी घाटे में नहीं रहती। दान की और भीख की महिमा का सार यही है कि कई गुणा वापस मिलता है , भीख देने वाले को दुआओं की ज़रूरत होती है। आखिर में इक राज़ की बात बताता हूं। हम लोग स्वर्ग नर्क की चिंता करते मर जाएंगे मगर जब कभी ऊपर पहुंचेंगे तो समझेंगे सच क्या है। भगवान ने सब को जी हां सभी को एक ही जगह एक साथ एक समान रखा हुआ है। वहां न कोई जन्नत है न कोई दोखज है , न कोई अपना अपना धर्म ही है। ये सब इसी धरती पर खुद इंसानों ने बनाया हुआ है। अब आपकी मर्ज़ी है चाहो नर्क में रहो या स्वर्ग का आनंद लो।  लूटने वाले मज़े लूट रहे हैं और हम मूर्ख लोग मंदिर मस्जिद के झगड़े में नर्क भोग रहे हैं। भगवान को हमारी सहायता की ज़रूरत नहीं है , भगवान को नहीं खतरा किसी और को है।  भगवान को पहचान लोगे तो शैतान का खेल खत्म हो जायेगा , शैतान कोई और नहीं है खुद हमारे भीतर छुपा बैठा है।  आपको याद है बनवास में भी माता सीता जी के पास रावण भिक्षा मांगने आया था , जंगल में खुद कंद मूल खाते थे मगर दर पर आये को भीख देनी ज़रूरी थी। राम जी पत्नी की बात मानते थे इसलिए सोने का हिरण लाने चले गये थे। अनादिकाल से भिक्षा भिक्षुक की कथाएं चली आ रही हैं। भीख देने को अब आयकर विभाग नियम बना सकता है। नकद कितनी और कितनी भीख आयकर मुक्त और भीख देने पर कितनी छूट। इक घटना याद आई।

              इक दुकानदार का हिसाब किताब सही मिला आयकर अधिकारी हैरान हुए। उनसे कहा सेठ जी सुबह से छापे डालने में लगे मिला नहीं कुछ भी। भूख लगी है आप खाना ही मंगवा कर खिला देते।  सेठ जी बोले क्यों नहीं ऐसा तो पुण्य का काम है। पांच सौ रूपये तब बड़ी रकम थी , नौकर को देकर सभी अधिकारीयों के लिए होटल से अच्छा खाना लाने को कहा। नौकर के जाने के बाद मुनीम जी ने पूछा सेठ जी ये पांच सौ किस खाते में लिखने हैं। सेठ जी ने बताया खर्च खाते में डाल दो और लिख देना भिखारियों को खाना खिलाया। आयकर विभाग वालों को ठीक से समझ आ गया कि हिसाब बिल्कुल ठीक कैसे है।

 


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