अगस्त 09, 2018

जिएं तो जिएं कैसे ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया

         जिएं तो जिएं कैसे ( आलेख ) डॉ लोक सेतिया 

      जीने को कुछ बातें ज़रूरी हैं। महात्मा विदुर बताते हैं , स्वास्थ्य तन मन , अपनी आमदनी से गुज़र बसर करना , निडर होकर रहना , अपने देश में रहना। सुखी जीवन को यही चार बातें ज़रूरी हैं। दो और बातें भी साथ हों तो सोने पर सुहागा , अच्छा परिवार विशेषकर जीवन साथी और आज्ञाकारी संतान , सबसे आखिर में सबसे महत्वपूर्ण अच्छे और सच्चे लोगों से मेल जोल रखना। थोड़ा ध्यान से पढ़ना क्या इस से बढ़कर कुछ होता है। मगर अधिकतर आजकल केवल तन के स्वास्थ्य और धन की बहुलता पर सब केंद्रित हैं। मगर सच तो ये है कि धन ही सब से अधिक महत्वपूर्ण हो गया है और हैरानी की बात है कि जितना अधिक धन उतनी अधिक समस्याएं भी बढ़ती जाती हैं। तन मन को रोगी बनाकर धन हासिल करते हैं फिर उस धन से तन मन को निरोग करने को जतन करते हैं। बाहरी ख़ुशी है सब के पास दिखाने को भीतर से सब चिंता डर परेशानी में अपने ही जाल में फंसे हैं। वो कहानी आज भी सच है हाऊ मच लैंड ए मैन नीड्स , आदमी को कितनी ज़मीन चाहिए , जी नहीं दो गज़ भी नहीं मिली कुए यार में बादशाह बहादुर शाह ज़फर तक को। सबक सीखने को बहुत हैं सीखता कौन है। दार्शनिकता की नहीं केवल स्वस्थ्य की ही बात करते हैं आज अन्यथा विषय से भटक सकते हैं जिस तरह उपदेशक बात को कहीं से कहीं ले जाते हैं मगर बात अर्थहीन हो जाती है लोग सुनते हैं तो सुनने को ही। चलो स्वस्थ्य जीवन की बात करते हैं।

           मन स्वस्थ्य होना आवश्यक है और उसे विचार से चिंतन मनन से और अध्यन से ही किया जा सकता है। मंदिर मस्जिद जाने से भी नहीं , बल्कि मंदिर मस्जिद जाते हैं मन की स्वछता के बगैर तो जाकर कुछ भी नहीं मिलता है। तन की चिंता रहती है , स्वस्थ्य रहने को केवल व्यायाम योग काफी नहीं हैं , योग तो सभी आयु में और अधकचरे ज्ञान से और भी गलत है जो आजकल होने लगा है। सैर की अहमियत सब जानते हैं मगर सैर करने का भी तरीका होता है। अच्छे वातावरण में चुप चाप और मौसम के अनुसार सुविधजनक कपड़े पहन कर सैर की जानी चाहिए। अधिकतर लोग सही ढंग से ये भी नहीं करते हैं। आपको दिल की बिमारी मधुमेह या मोटापा और जोड़ों के दर्द ही रोग लगते हैं जिनसे बचना चाहते हैं। खान पान और जीवन शैली से गुर्दा जिगर और कैंसर तक दबे पांव किसे कब जकड़ लेते हैं कोई नहीं जनता। सब से बड़ी मूर्खता हम नियमित स्वास्थ्य की जांच नहीं करवाते और यथासंभव अच्छे क्वालिफाइड डॉक्टर से बचते हैं क्योंकि वो भी अब आपके स्वास्थ्य से अधिक अपने आर्थिक हित को ध्यान रखते हैं और अनावश्यक जांच आदि और दवाएं लिखते हैं जिनसे ज़रूरत नहीं होने पर नुकसान भी होते हैं। ईमानदारी का अभाव हर जगह है , नेता अधिकारी शिक्षक व्यौपारी सब अपने कमाई किसी भी तरह अधिक करने को अनुचित धन अपनाते हैं। क्या ये काम खतरनाक रोग नहीं है जो देश समाज को बर्बाद कर रहा है। अपने स्वार्थ में अंधे होकर हम कितने अमानवीय कार्य करते हैं। कहने को बड़े बड़े अस्पताल हैं मगर वास्तविक सुविधा और प्रशिक्षित लोग कम होते हैं। कभी नीम हकीम खतरा ऐ जान कहते थे आजकल नीम हकीम भी फल फूल रहे हैं और हम खुद जाते हैं उनके पास कितनी बार सरकारी विभाग छापे मारता है और झोला छाप कुछ दिन बाद लोगों की ज़िंदगी से खिलवाड़ करता दिखता है। बड़े बड़े अस्पतालों में भी नर्सिंग होम में यही और ढंग से होता है। आपके पास बचने को कोई तरीका नहीं है क्योंकि सरकार को अच्छी स्वास्थ्य सेवाओं और अच्छी शिक्षा की कोई चिंता नहीं है।

                       हवा में ज़हर , हर चीज़ में मिलावट और आयुर्वेद या देसी चिकित्स्या के नाम पर केवल साबुन शैम्पू गोरे रंग की क्रीम और वज़न बढ़ाने कम करने के धंधे आपको और गुमराह कर रहे हैं। कम लोग जानते हैं कोई समस्या हो तो क्या करें किस के पास जाएं। दो चीज़ें ज़रूरी है , पहली हमारी शिक्षा में जीवन की वास्तविक कठिनाइयों की जानकारी शामिल करना और दूसरी आपके पास कोई एक सही चिकित्स्क सलाहकार होना फॅमिली डॉक्टर की तरह जो आपको कुछ फीस लेकर सही मार्गदर्शन दे सकता हो। मगर इक कटु सत्य ये है कि हम ऐसी बेहद मूल्यवान राय की कदर नहीं करते और मुफ्त में मिली सलाह से भटकते रहते हैं बिना ये जाने कि जिसने आपको बिना फीस लिए किसी के पास भेजा है उसका इस में अपना स्वार्थ भी होता है। सब से ज़रूरी है अपनी तंदरुस्ती की कीमत समझना जो बेहद कीमती है। 
 

 

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