सुन ज़माने बात दिल की खुद बताना चाहता हूं ( ग़ज़ल )
डॉ लोक सेतिया "तनहा"
सुन ज़माने बात दिल की खुद बताना चाहता हूंपौंछकर आंसू सभी , अब मुस्कुराना चाहता हूं ।
ज़िंदगी भर आपने समझा मुझे अपना नहीं पर
गैर होकर आपको अपना बनाना चाहता हूं ।
दोस्तों की बेवफ़ाई भूल कर फिर आ गया हूं
बेरहम दुनिया को फिर से आज़माना चाहता हूं ।
किस तरफ जाना तुझे ,अब रास्ते तक पूछते हैं
बस यही कहता हूं उनको इक ठिकाना चाहता हूं ।
आप मत देना सहारा ,जब कभी गिरने लगूं मैं
टूट जाऊं ,बोझ खुद इतना उठाना चाहता हूं ।
आपसे कैसा छिपाना ,जानता सारा ज़माना
सोचता हूं आज लेकिन क्यों दिखाना चाहता हूं ।
नाचते सब लोग "तनहा" तान मेरी पर यहां हैं
आज कठपुतली बना तुमको नचाना चाहता हूं ।
1 टिप्पणी:
बेरहम दुनिया को फिर से आज़माना चाहता हूं !
अच्छी ग़ज़ल ।
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