अप्रैल 08, 2013

सुन ज़माने बात दिल की खुद बताना चाहता हूं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

     सुन ज़माने बात दिल की खुद बताना चाहता हूं ( ग़ज़ल ) 

                          डॉ लोक सेतिया "तनहा"

सुन ज़माने बात दिल की खुद बताना चाहता हूं
पौंछकर आंसू सभी , अब मुस्कुराना चाहता हूं ।

ज़िंदगी भर आपने समझा मुझे अपना नहीं पर
गैर होकर आपको अपना बनाना चाहता हूं ।

दोस्तों की बेवफ़ाई भूल कर फिर आ गया हूं
बेरहम दुनिया को फिर से आज़माना चाहता हूं ।

किस तरफ जाना तुझे ,अब रास्ते तक पूछते हैं
बस यही कहता हूं उनको इक ठिकाना चाहता हूं ।

आप मत देना सहारा ,जब कभी गिरने लगूं मैं
टूट जाऊं ,बोझ खुद इतना उठाना चाहता हूं ।

आपसे कैसा छिपाना ,जानता सारा ज़माना
सोचता हूं आज लेकिन क्यों दिखाना चाहता हूं ।

नाचते सब लोग "तनहा" तान मेरी पर यहां हैं
आज कठपुतली बना तुमको नचाना चाहता हूं । 
 

 

1 टिप्पणी:

सुनीता अग्रवाल "नेह" ने कहा…

बेरहम दुनिया को फिर से आज़माना चाहता हूं !
अच्छी ग़ज़ल ।