सभी को हुस्न से होती मुहब्बत है ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
सभी को , हुस्न से होती मुहब्बत हैहसीं कितनी हसीनों की शिकायत है ।
भला दुनिया उन्हें कब याद रखती है
कहानी बन चुकी जिनकी हक़ीकत है ।
है गुज़री इस तरह कुछ ज़िंदगी अपनी
हमें जीना भी लगता इक मुसीबत है ।
उन्हें आया नहीं बस दोस्ती करना
किसी से भी नहीं बेशक अदावत है ।
वो आकर खुद तुम्हारा हाल पूछें जब
सुनाना तुम तुम्हारी क्या हिकायत है ।
हमें लगती है बेमतलब हमेशा से
नहीं सीखी कभी हमने सियासत है ।
वहीं दावत ,जहां मातम यहां "तनहा"
हमारे शहर की अपनी रिवायत है ।
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