आबरू तार तार खबरों में ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
आबरू तार तार ख़बरों मेंआदमी शर्मसार ख़बरों में ।
शहर बिकने चला खरीदोगे
लो पढ़ो इश्तिहार ख़बरों में ।
नींद क्या चैन तक गवा बैठे
लोग सब बेकरार ख़बरों में ।
देख सरकार सो गई शायद
मच रही लूट मार ख़बरों में ।
आमने सामने नहीं लड़ते
कर रहे आर पार ख़बरों में ।
झूठ को सच बना दिया ऐसे
दोहरा बार बार ख़बरों में ।
नासमझ कौन रह गया "तनहा"
सब लगें होशियार ख़बरों में ।
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