मुस्कुराने से लोग जलते हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
मुस्कुराने से लोग जलते हैंफूल- कलियां तभी मसलते हैं ।
बंद कर सामने का दरवाज़ा
छिप के पीछे से खुद निकलते हैं ।
दर्द अपने नहीं , पराये हैं
दर्द औरों के दिल में पलते हैं ।
दूर सब राजनीति से रहना
राह चिकनी, सभी फिसलते हैं ।
वक़्त को जो नहीं समझ पाते
उम्र भर लोग हाथ मलते हैं ।
एक दिन चढ़ पहाड़ पर देखा
वो भी नीचे की ओर ढलते हैं ।
खोखले हो चुके बहुत "तनहा"
लोग सिक्कों से अब उछलते हैं ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें