अप्रैल 04, 2013

मुस्कुराने से लोग जलते हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

मुस्कुराने से लोग जलते हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

मुस्कुराने से लोग जलते हैं
फूल- कलियां तभी मसलते हैं ।

बंद कर सामने का दरवाज़ा
छिप के पीछे से खुद निकलते हैं ।

दर्द  अपने नहीं , पराये हैं
दर्द औरों के दिल में पलते हैं ।

दूर सब राजनीति से रहना
राह चिकनी, सभी फिसलते हैं ।

वक़्त को जो नहीं समझ पाते
उम्र भर लोग हाथ मलते हैं ।

एक दिन चढ़ पहाड़ पर देखा
वो भी नीचे की ओर ढलते हैं ।

खोखले हो चुके बहुत "तनहा"
लोग सिक्कों से अब उछलते हैं । 
 
 

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