सभी का जिसका कोई नहीं था ( कविता ) डॉ लोक सेतिया
पार्क में सैर करते करतेहुई थी उससे जान पहचान
मिल जाता था अक्सर सुबह शाम
उसके होटों पे खिली रहती थी
बहुत ही प्यारी सी इक मुस्कान ।
बातें बहुत अच्छी सुनाता था हमेशा
अपने सभी हैं चाहते उसको
हमें बस यही था बताता हमेशा
साथ साथ चलते राह लगती थी प्यारी
रहता भी वो मुस्कुराता हमेशा ।
घर का कभी कभी दोस्तों का
कभी ज़िक्र नातों रिश्तों का
जब भी करता बहुत खुश होता
मुहब्बत के भी था किस्से सुनाता
खूबसूरत दुनिया से वो था आता ।
सुना जब नहीं अब रहा बीच अपने
करने थे पूरे उसे ख्वाब कितने
पूछ कर किसी से उसका ठिकाना
गए जब वहां तभी सबने जाना
नहीं कोई उसका सारी दुनिया में
बातें सब उसकी थी कुछ झूठे सपने ।
हमें नज़र आएंगे जब जब भी मेले
नहीं साथ होगा कोई बस हम अकेले
हम भी उसकी बातें दोहराया करेंगे
कहानी उसी की सुनाया करेंगे ।
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