अप्रैल 16, 2013

POST : 329 करें प्यार सब लोग खुद ज़िंदगी से ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

करें प्यार सब लोग खुद ज़िंदगी से ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

करें प्यार सब लोग खुद ज़िंदगी से
हुए आप अपने से क्यों अजनबी से ।

कभी गुफ़्तगू आप अपने से करना
मिले एक दिन आदमी आदमी से ।

खरीदो कि बेचो , है बाज़ार दिल का
मगर सब से मिलना यहां, बेदिली से ।

हमें और पीछे धकेले गये सब
शुरूआत फिर फिर हुई आखिरी से ।

बताओ तुम्हें और क्या चाहिए अब
यही , लोग कहने लगे बेरुखी से ।

कहीं और जाकर ठिकाना बना लो
यही , रौशनी ने कहा तीरगी से ।

पड़े जाम खाली सभी आज "तनहा"
बुझाओ अभी प्यास को तशनगी से । 
 

 

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