अप्रैल 16, 2013

करें प्यार सब लोग खुद ज़िंदगी से ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

करें प्यार सब लोग खुद ज़िंदगी से ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

करें प्यार सब लोग खुद ज़िंदगी से
हुए आप अपने से क्यों अजनबी से।

कभी गुफ़्तगू आप अपने से करना
मिले एक दिन आदमी आदमी से।

खरीदो कि बेचो , है बाज़ार दिल का
मगर सब से मिलना यहां, बेदिली से।

हमें और पीछे धकेले गये सब
शुरूआत फिर फिर हुई आखिरी से।

बताओ तुम्हें और क्या चाहिए अब
यही , लोग कहने लगे बेरुखी से।

कहीं और जाकर ठिकाना बना लो
यही , रौशनी ने कहा तीरगी से।

पड़े जाम खाली सभी आज "तनहा"
बुझाओ अभी प्यास को तशनगी से।

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