लोग जब मुहब्बत पर ऐतबार कर लेते ( ग़ज़ल )
डॉ लोक सेतिया "तनहा"
लोग जब मुहब्बत पर ऐतबार कर लेते
साथ जीने मरने का तब करार कर लेते ।
इश्क में किसी को अपना कभी बना लेते
इस तरह खिज़ाओं को खुद बहार कर लेते ।
नाख़ुदा नहीं होते हर किसी की किस्मत में
हौसला किया होता, आप पार कर लेते ।
लौटकर भी आना है ,आपको यहां वापस
आप कह गए होते , इंतज़ार कर लेते ।
प्यार के बिना लगती ज़िंदगी नहीं प्यारी
इश्क जब है हो जाता ,जां निसार लेते ।
हम भला कहें कैसे ,हम हुए तेरे आशिक
नाम मजनुओं में कैसे शुमार कर लेते ।
एक बार ख़त लिखकर , इक जुर्म किया "तनहा"
गर जवाब मिल जाता , बार बार कर लेते ।
साथ जीने मरने का तब करार कर लेते ।
इश्क में किसी को अपना कभी बना लेते
इस तरह खिज़ाओं को खुद बहार कर लेते ।
नाख़ुदा नहीं होते हर किसी की किस्मत में
हौसला किया होता, आप पार कर लेते ।
लौटकर भी आना है ,आपको यहां वापस
आप कह गए होते , इंतज़ार कर लेते ।
प्यार के बिना लगती ज़िंदगी नहीं प्यारी
इश्क जब है हो जाता ,जां निसार लेते ।
हम भला कहें कैसे ,हम हुए तेरे आशिक
नाम मजनुओं में कैसे शुमार कर लेते ।
एक बार ख़त लिखकर , इक जुर्म किया "तनहा"
गर जवाब मिल जाता , बार बार कर लेते ।
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