नवंबर 20, 2016

हम्माम में सभी नंगे हैं ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

        हम्माम में सभी नंगे हैं ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

  देश की राजनीति निर्वस्त्र हो गई है , कोई परदा बचा नहीं है , सभी कपड़े पहने हुए हैं फिर भी नंगे नज़र आ रहे हैं। एक एक कर सब की असलियत सामने आ गई है , जिनकी अभी छुपी हुई है वो भी घबरा रहे हैं , जाने कब उनकी भी बारी आ जाये। सफेद रंग की समस्या यही है उसको पहन भीतर से सब बाहर झांकता लगता है। सफेद रंग अब सादगी का नहीं आडंबर का प्रतीक बन गया है। बाहर से हर कोई सफेद अंदर से सभी काले हैं , सफेदपोश लोग ही काले धंधे करते हैं। बचपन में इक अध्यापक जिनका नाम शास्त्री जी था , चकाचक सफेद धोती कुर्ता पहनते थे , उनको बच्चों ने सफेद नाग नाम दे रखा था। क्योंकि उनका स्वभाव था हर किसी को डस लेते थे मौका मिलते ही। उनकी फुंकार दूर से सुनाई दिया करती थी , उन जैसे कितने नाग आजकल सरकारी दफ्तरों में विराजमान हैं। मान्यता है कि जहां भी कोई खज़ाना दबा होता है वहां ही नाग भी मिलते ही हैं , नाग को कितनी बार दूध पिलाओ वो अपना नहीं बनता , डसने की आदत रहती ही है। हमारे पड़ोसी देश की भी यही आदत रही है। जिनको सांप को वश में करना आता है वही सत्ता पर काबिज़ होकर नागों को अपने इशारों पर नचाने का खेल खेलते हैं। राजनीति और प्रशासन सांप नेवले का सहमति का प्रयोजित धंधा है। उनके खेल तमाशे पर तालियां बजती हैं पैसा बरसता है।

                   सांप और नेवला इक दूजे की जान के दुश्मन हैं , मगर मदारी उन दोनों को वश में कर अपना तमाशा दिखाता है। संसद और विधानसभाओं में बहुमत को इसी तरह काबू किया जाता है , यही नये दौर की गठबंधन की राजनीति कहलाती है। इस को पशुप्रेमी मेनका गांधी भी नहीं रोक सकती। इक प्रधानमंत्री ने इक दल को इसी तरह वश में किया था बहुमत साबित करने को , आत्मा की आवाज़ पर भी इसी कारण मत दिया गया था कभी। लोग नंगे होने के बाद भी शर्मसार नहीं हुआ करते , नाचते रहते हैं नचाने वालों के इशारों पर। बस एक बार बेशर्मी करने से समस्या हल हो जाती है , नंगई वरदान बन जाती है। वस्त्रों की उपयोगिकता खत्म हो जाती है। नंगा होना इक समाजवाद है , सभी एक जैसे लगते हैं , कोई खूबसूरत लगता है न बदसूरत। सब बराबर हो जाते हैं , अमीर गरीब का भेद दिखाई नहीं देता।

                        फिल्म वाले टीवी वाले विज्ञापन का कारोबार वाले , नग्नता का व्योपार करते हैं , बेचते हैं अपना और अपने समाज का नंगापन पैसे की चाहत का। बदन को इस तरह ढकना कि नग्नता और छलकती दिखाई दे , उसको सौंदर्य प्रतियोगिता कहा जाता है। सुंदरता तन ढकने की कला में ही है , पूर्ण नग्नता आकर्षित नहीं करती कभी। किसी पेन के विज्ञापन में बच्चा कहता है , सब कुछ दिखता है , तब सब समझते हैं कि हम सारे ही नंगे हैं। नंगा होने में हास्य रस ढूंढ सकते हैं। विद्रूप हास्य।