बात पूछो न हम अदीबों की ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"
बात पूछो न हम अदीबों कीखाक उड़ जाएगी उमीदों की।
मत चढ़ाना किसी को सूली पर
बस यही आरज़ू सलीबों की।
दौलतों से ख़ुशी नहीं मिलती
बात झूठी नहीं फकीरों की।
आ गये छोड़ कर पहाड़ों को
छांव देखी नहीं चिनारों की।
याद अब तक बहुत सताती है
दिलरुबा की हसीं अदाओं की।
बात मेरी भी आज कुछ सुन लो
फिर सज़ा दो मुझे गुनाहों की।
चल कहीं और अब चलें "तनहा"
जल रही है चिता वफ़ाओं की।
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