अप्रैल 25, 2024

भय बिनु होई न प्रीति ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

      भय बिनु  होई  न प्रीति  ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

साम दाम दंड भेद सब आज़मा लिया फिर भी संशय है कि जिसकी चाहत में दिल बेकरार है उस पर कुछ असर दिखाई नहीं देता है । लालच प्रलोभन से भगवान के नाम पर ही दे दो से भी यकीन नहीं आया तो भयभीत करने का ब्रह्मास्त्र उपयोग करने लगे हैं । मुझ से अच्छा कौन है भले मुझ में लाख अवगुण हैं तब भी वरमाला उस को पहनाई तो वो सभी कुछ छीन लेगा मेरा क्या है पहले से कुछ छोड़ा ही नहीं तुम्हारा सब मेरा ही है मुझे खुद सौंपना ख़ुशी ख़ुशी से मेरी प्रीति की निशानी है । जिस को सब कुछ खोने का डर होता है वही घबरा कर ऐसे ढंग अपनाता है । डर फ़िल्म का नायक नायिका से पागलपन की हद तक मुहब्बत करने का दम भरता है तू हां कर या ना कर तू है मेरी किरन । ये आशिक़ी का भूत जिस किसी पर सवार होता है वो वहशीपन की सीमा तक अपनी ही माशूका की जान का दुश्मन बन जाता है । कुछ साल पहले इक प्रदेश में सरकार ने ऐसे मजनुओं के ख़िलाफ़ अभियान चलाया था , लेकिन जिनका सिक्का खोटा भी चलता है ऐसे भी रुतबे वाले लोग हुआ करते हैं जो अपहरण कर भी जिसे चाहते हैं उस से विवाह कर लिया करते हैं । कुछ ऐसा ही इक शासक का हाल है सत्ता सुंदरी से बिछुड़ने का भय सताने लगा तो खुद नहीं जानते क्या से क्या हो गए हैं । पहले समझाया कि अभी तक तो मैंने कुछ किया ही नहीं सिर्फ ट्रेलर था जिसे देखा तुमने आगे जो कभी सपने में नहीं सोचा तुमने वो चांद सितारे तोड़ कर दामन भर दूंगा बस मुझे छोड़ किसी का ख़्याल भी मन में नहीं लाना । देखो मेरे वचन निभाने की बात मत करना तुमको तो अपने वचन निभाने हैं , सत्ता की कुर्सी कहने लगी भला मैंने कब किसी का साथ देने की शपथ उठाई कभी भी । यहां जितने भी आये हैं और आएंगे उनको शपथ उठानी पड़ती है मैं तभी मिलती हूं , मुझ पर बैठते खुद को मुझसे ऊंचा समझने वालों का अंजाम यही होता है । भूल गए कभी कहते थे मेरा क्या है जब चाहा झोला उठा कर घर छोड़ चला जाऊंगा । 
 
दिन का चैन रातों की नींद खो जाती है साहब आपको इश्क़ हो गया है ना ना करते प्यार उसी से कर बैठे जिस सत्ता सुंदरी का स्वभाव ही है जो भी उसका होता है बेवफ़ाई का सबक पहले दिन पढ़ना चाहता है । मुझ से पहले किस किस ने तुमसे क्या वादे किए तुमने किसी से वफ़ा निभाई या हुई बेवफ़ाई सब को दिल से भुला दो अपना साथ कभी नहीं टूटेगा ये हाथ मेरे हाथों से नहीं छूटेगा , कितने मधुर स्वर से ये ग़ज़ल उसे सुनाई । रेगिस्तान में फूल खिले हैं वीराने में बहार आई पांच साल तलक बजती रही शहनाई किसी ने बंसी बजाई किसी ने डफ़ली की धुन पर नचाया दोनों की आंख खुली तब जब चुनाव सामने आया । अचानक किसी ने नींद से जगाया शर्तनामा पढ़ कर सुनाया सत्ता का नशा उतरा तब समझ आया खूब भरपेट खाया बड़ा मज़ा आया मगर अब दूध फटने लगा आएगी कैसे मलाई मिलावट का माजरा है ग़ज़ब मेरे भाई । अब दिल उदास है मन कहता है चल उड़ जा रे पंछी कि अब ये देश हुआ बेगाना , अफ़साना फ़साना बन गया है नया था जो पुराना बन गया है और उनको पुरानी बातें पुरानी मुलाकातें बहुत बेचैन करती हैं । यादों की बारातें उम्र भर तड़पाती हैं अधूरी मुहब्बत की कहानी का अंजाम बुरा होता है बद भला होता है बदनाम बुरा होता है । तुम अगर मुझको न चाहो तो कोई बात नहीं तुम किसी और को चाहोगी तो मुश्किल होगी ।  



 
 

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