ज़ंजीर से हथकड़ी से पायल तलक ( बदलते रिश्ते ) डॉ लोक सेतिया
सफ़लता का यही रंग - ढंग है , वक़्त फ़िल्म को भी समय बदलने के संग बदलाव करना पड़ता है , ज़ंजीर कब की अपना तौर तरीका बदलती रही है कभी डरावना ख़्वाब थी फिर कंगन से बंधी हथकड़ी हुई और उस के बाद पांव की पायल बन कर झनकने लगी । नायक पुलिस वाला जुआ शराबखाना जैसे धंधे करने वाले ख़लनायक को बाहुबली बन कर चारों खाने चित कर सब काले धंधे छोड़ने पर सहमत करवा लेता है । हमने उस असंभव काल्पनिक कहानी को मूर्ख बन कर हक़ीक़त समझ कर समझा कि कोई मसीहा बनकर आएगा और सब को ज़ालिम के ज़ुल्मों से राहत दिलवाएगा । ये अच्छे दिन का सपना दुनिया कब से देखती आई है , सपनों का सौदागर भी आया और हमने ख़्वाब भी वास्तविकता से ऊंची कीमत चुकाकर खरीदे । सिनेमा टीवी वालों ने सच और झूठ की मिलावट कर इतना स्वादिष्ट बनाकर परोसा कि हम उस स्वाद को छोड़ना कभी नहीं चाहते बेशक जानते हैं कि ये ज़हर है मिलावट का धीरे धीरे असर करता है । इन सब के साथ मिल कर सोशल मीडिया ने हमारी सोचने समझने की विचार करने की शक्ति को हमसे छीन लिया और हम लोग उन सभी के गुलाम बन गए हैं । आपको लगता होगा राजनेता अनपढ़ और बुद्धिहीन लोग होते हैं जबकि सच कुछ और है फ़िल्मी कहानियों से जितना नेताओं ने सीखा है वो कमाल है फ़िल्मी अंदाज़ फ़िल्मी डायलॉग फ़िल्मी किरदार असली दिखाई देने लगे राजनीति के घर के आंगन में और फिल्म वाले मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है गुनगुनाते रह गए । जो नाम वाला है वही तो बदनाम है से सबक लेकर लोग बदनाम होने को सब करने लगे और बात यहां तक आ पहुंची कि अपराधी गुंडा होना देश की राजनीति का ज़ेवर बन गया है ।
आखिर इक दिन बाज़ी पलट ही गई और सभी अपराध करने वाला ख़लनायक से नायक की भूमिका निभाने लगा वह ही खुले आम कह कर , हां जी ख़लनायक हूं मैं । ख़लनायक की सफलता से राजनेताओं ने ये राज़ समझ लिया कि युग बदल चुका है । बस सत्य की खोज को छोड़ कर झूठ पर शोध किया जाने लगा और इक दिन झूठ विजयी होकर सिंहासन पर विराजमान हो गया । पुलिस अदालत कार्यपालिका सभी को अपना साथी बना लिया और सभी पुरातन आदर्शों मूल्यों को त्याग कर मैं चाहे जो करूं मेरी मर्ज़ी का महामंत्र का पाठ सभी को पढ़वा दिया । हर तरफ उनकी मन की बात उनका यही मंत्र सभी जपने लगे और लगने लगा कि जिन अच्छे दिनों की आस थी वो इसी से शीघ्र आने वाले हैं । लेकिन जब किसी ने सवाल उठाया कि दिखलाओ तो हमको कैसे होते हैं ये तो पहले से भी खराब दिन आने लगे हैं तब जवाब मिला कि स्वर्ग और अच्छे दिन होते ही नहीं हैं ये तो दिल को बहलाने को ग़ालिब ख़्याल अच्छा है । ये सुनते समझते इक ख़ामोशी छा गई है , लोहे की ज़ंजीर हथकड़ी बनी अब पांव की पायल बन कर तिगनी का नाच नचवा रही है कोई बांवरी शहंशाह के नाम की धुन पर उनका दिल नर्तकी बन बहला रही है ।
जाने किस ने ये बात कही थी कि आप कुछ लोगों को कुछ समय तक मूर्ख बना सकते हैं लेकिन हमेशा को सभी को मूर्ख बनाया नहीं जा सकता है । देश की जनता को सभी दलों के राजनेताओं ने मूर्ख बनाया है और कुछ समय बाद उनकी वास्तविकता समझ भी आती रही है लेकिन इतने अधिक लोगों को इतने अधिक समय तक अपने झांसे में रखने का जो कीर्तिमान शांहशाह ने स्थापित किया है उसे देश दुनिया दांतों तले उंगलियां दबा रही थी । अब उस की पोल खुल गई है जब सबको पता चल गया है कि उस ने लूट फिरौती और हर अनुचित ढंग से देश समाज के ढांचे तक को बर्बाद करने में कोई हद नहीं छोड़ी है बल्कि पिछले सभी घोटालों से बढ़कर घोटाला किया है तब लोग बोल नहीं सकते कि हम सभी इतने समय तक उल्लू बनते रहे । अप्रैल फूल बन कर कोई स्वीकार नहीं करता कि वह मूर्ख बन गया , हर मूर्ख अपनी समझदारी का डंका पीटता रहता है ।
1 टिप्पणी:
समयानुसार बदलती भूमिकाओं को,, नायक से खलनायक...तक बखूबी समझाया है👌👍
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