अप्रैल 18, 2024

पति की प्रशंसा का दिन ( अजब दस्तूर ) डॉ लोक सेतिया

   पति की प्रशंसा का दिन ( अजब दस्तूर ) डॉ लोक सेतिया 

ग़ज़ब करते हैं भला कभी कोई पति कभी अपनी पत्नी की नज़र में तारीफ़ के काबिल हो भी सकता हैं । सच जिस किसी को ऐसा नसीब मिला है फिर और क्या चाहिए ज़िंदगी में इतना काफ़ी है । कभी चुपके से छुपकर किसी महिला मंच की सभा को देखना हर महिला को शिकायत रहती है मेरी किस्मत ही खराब थी जो ऐसा पति मिला मुझे भगवान से ये तो नहीं मांगा था । आपने दुनिया भर में कितना कुछ पतियों का कहा लिखा सुना होगा अपनी पत्नी से अच्छी समझदार और खूबसूरत कोई नहीं लगा जिनको , ऐसा कभी किसी पत्नी ने भी कहा हो शायद ही पढ़ा हो । विधाता ने पति नाम की प्रजाति का भाग्य जिस स्याही से लिखा होगा वो शायद पानी की तरह होगी जिस को खुद लिखने वाला भी पढ़ना चाहे तो पढ़ नहीं सकेगा , मुझे लगता है ऐसा मुमकिन है की जब ईश्वर पतियों का भविष्य लिखने बैठा होगा उसकी पत्नी ने किसी काम से आवाज़ दी होगी और ऐसे में उसको अपनी पत्नी की बात के सिवा कुछ ध्यान नहीं रहा होगा । आप और मैं क्या हैं सच बताता हूं भगवान या देवताओं की पत्नियां भी अपने पतियों से खुश कभी नहीं रही होंगी । ये एक दिन की रिवायत जिस ने भी बनाई होगी उसने सोचा होगा चलो एक दिन तो जिसे जो नहीं मिलता मिलने का उपाय किया जाए ।  तमाम तरह से दिवस बनाए गए हैं और उनका कुछ असर भी ज़रूर होता भी होगा लेकिन प्रशंसा करना इक अलग बात है ये तभी हो सकती है जब कोई किसी को प्रशंसा के काबिल समझता हो अन्यथा सिर्फ कहने को कुछ कहना ऐसा ही है जैसे किसी छात्र को शिक्षक नालायक समझता हो फिर भी ये समझ कर कुछ अंक बढ़ा कर पास कर दे कि थोड़ा रहम करते हैं , कभी स्कूल में परीक्षाफल घोषित किया जाता था किसी को खरैती पास कहते थे । आपको लगता है कि ये छात्र का अपमान करना था जबकि ये शिक्षक की अपनी नाकामी को छिपाने की इक कोशिश हुआ करती थी । मेरा मानना है कि पतियों को ऐसी भिक्षा में मिली प्रशंसा की आवश्यकता नहीं होती है । कोई मेरी बात से सहमत हो चाहे नहीं हो अपने प्रधानमंत्री जी शत प्रतिशत सहमत होंगे ही उनको अपनी पत्नी से तारीफ़ की कामना नहीं हो सकती है वैसे भी उनकी पत्नी अगर अपने पति की प्रशंसा भी करेगी तो कुछ अलग ढंग से , शायद कहेगी कि उनकी प्रशंसा करती हूं कि नहीं निभाना था तो छोड़ दिया कम से कम अनचाहे बंधन से मुक्त होकर अपना जीवन बिताया है । महिलाओं की आदत होती है कि खुद को छोड़ बाकी सभी महिलाओं से व्यर्थ की पर्तिस्पर्धा रहती है , कोई महिला किसी महिला की तकलीफ़ कभी नहीं समझती है अन्यथा देश की आधी आबादी की महिलाएं क्या मोदी जी की समर्थक बन सकती थी । यहां तो कोई पति मोदी जी की किसी बात से असहमति जताए तो पहला विरोध घर में खुद अपनी पत्नी से झेलना पड़ता है आखिर खामोश हो जाते हैं क्योंकि इस अदालत में कोई वकील कोई दलील काम नहीं आती है । यूं तो मैंने अपनी तीसरी ग़ज़ल अपनी पत्नी के नाम पर ही समर्पित की है लेकिन लगता नहीं कि उनको इस से कोई फ़र्क पड़ता है मगर आप भी चाहें तो कभी अपनी अर्धांगिनी को मेरी ग़ज़ल सुना कर कोशिश कर सकते हैं , मुमकिन है आपकी मन की बात उन तलक पहुंच जाए । मोदी जी ने सौ बार ये कोशिश की अवश्य है मगर किसी को खबर नहीं उनके मन की आवाज़ किस को पुकारती थी मगर सभी जानते हैं कि वो भटकती रही किसी मंज़िल पर नहीं पहुंची । 
 
  पाकिस्तान की शायरा हुई हैं परवीन शाकिर जी उनका इक शेर है ' कैसे कह दूं की मुझे छोड़ दिया है उस ने  , बात तो सच है मगर बात है रुसवाई की ।  किसी काबिल मशहूर और बेहद खूबसूरत महिला के लिए ये असंभव ही नहीं ऐसा हादिसा है जिस की कभी कल्पना ही नहीं करता कोई । अधिकांश लोग बड़े नाम शोहरत पैसा रुतबा मिलते अपने पुराने साथी को कोई और मिलते ही छोड़ जाते हैं इस दुनिया में ये तो कम ही देखा है उन्हें निभाते हुए अच्छे हालात में बुरे दिनों में हाथ थामने वालों का । उस पति की कमनसीबी थी जिस ने परवीन शाकिर जैसी महिला की कदर नहीं की अन्यथा आजकल खुद महिलाएं ठोकर लगा देती हैं जिस को लेकर कहना पड़ा हो कि ' वो कहीं भी गया लौटा तो मेरे पास आया , बस यही बात है अच्छी मेरे हरजाई की '।  जन्म - जन्म का रिश्ता आजकल बदल गया है , क्या मिला कोई नहीं देखता जो भी चाहते हैं उस के नहीं मिलने का मलाल रहता है ।  अपनी जीवनसंगिनी पर इक ग़ज़ल कही थी , पढ़ सकते हैं नीचे लिख रहा हूं ।
 

हमको तो कभी आपने काबिल नहीं समझा (ग़ज़ल ) 

         डॉ लोक सेतिया  "तनहा"

हमको तो कभी आपने काबिल नहीं समझा
दुःख दर्द भरी लहरों में साहिल नहीं समझा ।

दुनिया ने दिये  ज़ख्म हज़ार आपने लेकिन
घायल नहीं समझा हमें बिसमिल नहीं समझा ।

हम उसके मुकाबिल थे मगर जान के उसने
महफ़िल में हमें अपने मुकाबिल नहीं समझा ।

खेला तो खिलोनों की तरह उसको सभी ने
अफ़सोस किसी ने भी उसे दिल नहीं समझा ।

हमको है शिकायत कि हमें आँख में तुमने
काजल सा बसाने के भी काबिल नहीं समझा ।

घायल किया पायल ने तो झूमर ने किया क़त्ल
वो कौन है जिसने तुझे कातिल नहीं समझा ।

उठवा के रहे "लोक" को तुम दर से जो अपने
पागल उसे समझा किये साईल नहीं समझा ।
 
 

 

2 टिप्‍पणियां:

Sanjaytanha ने कहा…

वाहः सर हास्य से होती हुई बात व्यंग्य तक पहुंची है। सभी पतियों के दिल की बात को बखूबी शब्द दिए हैं। बीच मे शेरों का भी प्रयोग सार्थक है👍👌

Sushil kumar ने कहा…

बहुत सुंदर शब्दो से सजी खूबसूरत गजल साहिल न समझा दिल को छू लेने वाली शायरी बेजोड़👌👌