किस की सुरक्षा का सवाल है ( कटाक्ष ) डॉ लोक सेतिया
सोच सभी संबंधी मित्रगण रहे थे पर खुद ईश्वर से कौन पूछता कि उन्हीं के आवास का उदघाटन होना है क्या कार्यक्रम है कैसे जाने का प्रबंध किया जाएगा और किस किस को सौभाग्य प्राप्त होगा अवसर पर उपस्थित होने का । सभी ने इस समस्या का समाधान करने को ईश्वर जी की पत्नी से अनुरोध किया क्योंकि सिर्फ वही कभी भी कुछ भी ईश्वर से पूछ सकती हैं । पत्नी ने अपने पति परमेश्वर से पूछ लिया आपको नवनिर्मित मंदिर के उदघाटन पर कैसे जाना है सभी जानना चाहते हैं क्या उनको भी तैयारी करनी है । आप किस रूप में जाएंगे मुझे बताएं तो आपका परिधान अन्य सजावट आभूषण उसी अनुसार बनवाए जाएं । ईश्वर बोले क्या मैंने कहा है कि मुझे कहीं जाना है , मुनिवर बता रहे थे ऐसा घोषित है कि उस दिन विशेष आमंत्रित लोग ही प्रवेश कर सकते हैं और कौन कितना भीतर तक जाएगा निर्धारित है । मुझे बुलावा नहीं देने का सवाल नहीं है लेकिन मुझे उस जगह जाना किसलिए है इतना तो पता चले । पत्नी ने बताया इतना भव्य और शानदार आवास आपके ही नाम किया है आपको जाना चाहिए वहीं रहना चाहिए करोड़ों लोगों की भावनाएं जुडी हुई हैं । ईश्वर कहने लगे जिन करोड़ों गरीबों की भावनाएं और भरोसा इसी पर है कि उनकी दरिद्रता मैं मिटाऊंगा उनको रहने को महल नहीं सिर्फ झौंपड़ी हासिल होगी मेरे शासन में उनकी आस्था को अनदेखा कर सिर्फ कुछ ख़ास लोगों की खातिर मैं लालच में आकर उस घर को अपना ठिकाना बनाऊंगा । पत्नी बोली आपकी माया आप ही जानते हैं फिर भी सभी लालायित हैं उस जगह आपके दर्शन करने को , उनकी बात पर ध्यान देना होगा ।
ईश्वर कहने लगे कितने लोग हैं जिन्होंने अपना घर छोड़ दिया ये सोच कर कि उनका ईश्वर बेघर है सभी लोग अपने निवास में रहते रहे मुझे इक कमरा भी नहीं दिया अधिकांश ने इक छोटा सा खिलौने जैसा घर बनवाया और मेरी तस्वीर उस में सजा कर कोई नाम दे दिया । अनगिनत लोग खुले आसमान तले फुटपाथ पर सड़कों पर सर्दी गर्मी तपती लू बदन को बर्फ बनाती ठंड में रहकर भी मुझ से आस लगाए रहे हैं । ये जो सत्ता के भूखे राजनेता हैं उन्होंने मुझे अपने मतलब की खातिर उपयोग किया है क्या क्या हथकंडे नहीं अपनाए इक ईमारत को बनाने की ख़ातिर । कैसे मान लिया किसी ऐसे भवन में मुझे रहना स्वीकार होगा जिस की बुनियाद ही झगड़े फसाद से रखी गई हो । शासक ने पहले अपने राजनैतिक दल का भवन बनवाया मुझे भुलाकर फिर अपने नाम से क्या क्या नहीं बनाया या पहले बनाए हुए को अपना नाम दिया , कितने अपने खास लोगों को धनवान बनाने के बाद संसद का नया आधुनिक सभागार और आधुनिक सुविधाओं से युक्त इक दरबार बनाया सजाया । मेरे नाम के राज्य की अवधारणा का कभी ख़्याल नहीं आया जब नैया डोलती है तभी को याद आती है अपने अपने प्रभु की अन्यथा पतवार जिस के हाथ वही मांझी सबका खेवनहार होता है ।
ईश्वर ने समझाया तुमको भी देखने की इच्छा हो रही है तो टीवी चैनल से देख लेना वहां जाने में टीवी वाले खबर दे रहे हैं सुरक्षित नहीं है । सोचो अगर उन सभी को मेरे उस जगह होने का पूर्ण विश्वास होता तब किसी को किसी से कोई ख़तरा कैसे हो सकता था । उन सभी ने अपनी अपनी सुरक्षा के अनेक उपाय किए हैं बस मेरी सुरक्षा उनकी चिंता नहीं है जबकि वास्तव में सबसे अधिक मुझे सुरक्षा की आवश्यकता हैं ये मत पूछना मुझे किन से कोई ख़तरा हो सकता है । कलयुग की बात है गैरों से नहीं अपनों से सावधान रहना पड़ता है ।
1 टिप्पणी:
Samyik lekh...👍
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