समंदर जैसी फ़ितरत वाले लोग ( तरकश ) डॉ लोक सेतिया
दान उपकार का शोर मचाने वाले अपनी दयालुता का ढिंढोरा पीटने वाले कमाल का आत्मविश्वास रखते हैं । इधर तो आजकल विज्ञापन देते हैं इस को खरीदने पर एक रुपया किसी सामाजिक कार्य में उपयोग किया जाएगा । कौन बनेगा करोड़पति शो में यही दिखाई दिया हर सवाल के सही जवाब पर घी आटा चावल सौ किलो इक संस्था जो भूखों को खाना खिलाती है उसको दान दिया जाएगा । बार बार गिनती बताते कितनी संख्या का सामान हुआ है बढ़ता ही जा रहा है । कुछ ऐसा लगा जैसे समंदर शोर कर रहा हो उस ने कितना पानी बादलों को दिया है और उनसे कितनी धरती पर बारिश होती है । बादलों ने कभी इस बात पर अभिमान नहीं किया कि उसने कितना पानी बरसात कर नदियों तालाबों खेत खलियानों को बांटा है । हम कभी बेमौसमी बारिश की शिकायत करते हैं कभी बादल नहीं बरसते तो सूखे से गर्मी से परेशान होते हैं तो कभी अधिक पानी बरसे तो बाढ़ से परेशान होते हैं । बादलों से शिकवे हज़ार किए जाते हैं उनसे प्यार कभी कोई नहीं करता आशिक़ तक उनके गरजने से बिजली कड़कने से धड़कन बढ़ने की बात करते हैं । बड़े नाम वाले लोग तमाम देशों की सभी सरकारें भी अन्य देशों की सहायता करते हैं भले खुद देश के कितने नागरिक भूखे गरीब और बेहाल ज़िंदगी बसर करते हों । इक पुरानी कहानी है किसी देश के राजा ने अपने पड़ोसी देश के राजा से बढ़कर दानी कहलाने को उस देश के तमाम भिक्षुक साधु संतों को अपने दरबार में आमंत्रित किया और सभी को कीमती उपहार हीरे जवाहरात सोना चांदी के मोहरे भर थैलियां भेंट देकर कहा आपको अपने देश में जाकर बताना है हमारे देश का शासक कितना बड़ा दानवीर है । इक सच्चे साधु को लगा ऐसे अभिमानी शासक को किस तरह सबक सिखाना चाहिए और उस ने राजा से मिला सब कुछ दरबार से बाहर निकलते ही वहां के लोगों को बांटते हुए कहा कि अपने देश के राजा को बता देना कि पड़ोसी जिस देश का इक भिखारी साधु भी जितना भी मिला पास हो गरीबों में बांट देता है उसका राजा कैसा होगा । वास्तविक शासक कभी सामाजिक कल्याण करने या गरीबों की ज़रूरतमंदों की सहायता करने पर खुद अपनी बढ़ाई नहीं करते बल्कि अपना कर्तव्य निभाते हैं । उनको जनता ने कर देकर खज़ाना भर समर्थ बनाया जनहित करने को या फिर ईश्वर ने उनको अधिकार दिया समाज का कल्याण करने को । समझने को इक घटना की बात ज़रूरी है ।
नवाब रहीम और गंगभाट की बात आपने सुनी है या नहीं फिर से दोहराते हैं । रहीम इक नवाब थे जो रोज़ सहायता मांगने वालों की सहायता करते थे तब उनकी नज़रें झुकी रहती थी इक कवि गंगभाट ने ये देखा तो दोहा पढ़कर सवाल किया इस तरह से ।
गंगभाट :-
सिखियो कहां नवाबजू ऐसी देनी दैन , ज्यों ज्यों कर ऊंचो करें त्यों त्यों नीचे नैन ।
अर्थात नवाब साहब ये आपका अजीब तरीका लगता है जब भी किसी को कुछ सहायता देते हैं उसकी तरफ नहीं देखते अपनी नज़रें नीचे को झुकी हुई होती हैं ।
रहीम :-
देनहार कोऊ और है देवत है दिन रैन , लोग भरम मोपे करें याते नीचे नैन ।
रहीम के कहने का मतलब था देने वाला तो वही भगवान है लोग समझते हैं कि मैं दे रहा तभी मेरी नज़रें झुकी रहती हैं । कितनी अफ़सोसजनक बात है हम सभी वास्तविक मानवधर्म की परिभाषा भूल गए हैं मंदिर मस्जिद से लेकर रोज़ कितने आयोजन अनुष्ठान करने पर धन खर्च करते हैं जबकि हमारे करीब कितने लोग दो वक़्त रोटी पानी को तरसते हैं । सरकार खुद नेताओं अधिकारियों के अनावश्यक शानो शौकत के दिखावे पर व्यर्थ के आयोजनों सभाओं पर पैसा पानी की तरह बहाती है जबकि देश की आधी आबादी बदहाली में रहती है । इक धर्म का नियम समझाया गया है अपनी आमदनी वो भी सच्ची महनत की कमाई से खुद भी जीना और उसी का दसवां भाग अन्य लोगों की सहायता करने पर खर्च करना इंसानियत कहलाता है । आपस में मिल बांट कर खाना अनिवार्य है । जो लोग किसी भी तरह अधिक से अधिक कमाई करते हैं उनका सामाजिक कार्यों पर नाम मात्र को इक अंश देना वैसा है जैसे किसी नदिया से कोई चिड़िया चौंच भर पानी ले जाए , लेकिन इतने पर भी जो रईस अमीर खुद को शाहंशाह समझते हैं उनको क्या कहा जाए । देश का अधिकांश धन संपदा केवल कुछ सौ या हज़ार लोगों की तिजोरी में होना ईश्वर या भाग्य की बात नहीं बल्कि आधुनिक अर्थव्यवस्था की नाकामी है जिस में समानता कभी संभव ही नहीं है । जब तक अमीर गरीब में इतनी बड़ी खाई है हम अपने देश को महान और आदर्शवादी नहीं नहीं मान सकते हैं । समंदर को भी कभी हिसाब देना होगा उस को कितना कहां कहां से कैसे मिला है वास्तव में जैसे नदियों का मीठा जल समंदर से मिलते खारा हो जाता है वही दशा अमीरों के भरे खज़ाने की है ।
1 टिप्पणी:
Shandaar lekh sir jhuthe daan veero ke upr...👌👍
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