नवंबर 09, 2023

अंजाम जानते हैं आगाज़ से पहले ( ग़ज़ब ) डॉ लोक सेतिया

       अंजाम जानते हैं आगाज़ से पहले ( ग़ज़ब ) डॉ लोक सेतिया  

आपने कभी पानी को नीचे धरती से पर्वत की तरफ बहते देखा है कहने को उलटी गंगा बहाना कहावत है । ये अजब ग़ज़ब इधर बहुत दिखाई देने लगा है चाहे कोई कथा कहानी चाहे कोई संदेश वीडियो या किसी भी अन्य माध्यम से सोशल मीडिया पर मनचाहा उपदेश देने को इक काल्पनिक घटना बनाई जाती है यकीन नहीं तो थोड़ा गौर से यूट्यूब फेसबुक व्हाट्सएप्प पर नज़र डाल कर देख सकते हैं । आपको तार्किक ढंग से समझाने वाले भी अपने मनघड़ंत किस्से बना लेते हैं । कुछ लोग पहले दवा बनाते हैं उस के बाद किस रोग का ईलाज उस से किया जा सकता है इस को लेकर शोध करते हैं । साहित्य में अच्छी लाजवाब बेमिसाल कहानी तभी बनती है जब लिखने वाला अगले पन्ने पर तो क्या अगले पहरे में क्या लिखेगा खुद नहीं जानता है । ये टीवी सीरियल वाले ये आधुनिक फिल्म निर्माता सब पहले निर्धारित कर जो भी करते हैं सिर्फ पैसा कमाने को किसी भी सामाजिक सरोकार या बदलाव की खातिर नहीं । दर्शक को कुछ मिले न मिले उनको मनचाहा मुनाफ़ा मिल जाए तो सफ़लता कहलाती है । जिस कथा कहानी से दर्शक पाठक को कुछ नया सार्थक समझने को नहीं मिलता उस का महत्व कुछ भी नहीं सिर्फ व्यौपार धंधा करना कारोबार करना साहित्य या कला अथवा संगीत या अभिनय का मकसद कभी नहीं होना चाहिए । 
 

इक कल्पना करते हैं कि कोई आधुनिक ऐप्प या ऐसा कोई यंत्र जो तमाम आंकड़े एकत्र कर इक सही निष्कर्ष निकाल सकता हो बन जाए तो नतीजे क्या होंगे । आधुनिक फ़िल्मकार अभिनेता टीवी सीरियल निर्माता को लेकर पता चलेगा कि उन्होंने इतना पैसा अर्जित किया लेकिन उनकी कहानियों अभिनय से दर्शक को सबक मिला हिंसक होने का उचित अनुचित की चिंता छोड़ जो मर्ज़ी करने का और प्यार जंग की तरह कारोबार में सब करना उचित है समझने का जिस से समाज रोगी बन गया है । समाज को नग्नता और अश्लीलता और असभ्य भाषा गाली गलौच अभद्रता को वास्तविकता समझ अपनाना स्वीकार करना का पाठ पढ़ाने वाले किस समाज की स्थापना करना चाहते हैं । आजकल तो नशा और खुलेआम शारीरिक संबंध बनाना हर फ़िल्म सीरियल का हिस्सा बन गया है और अब तो टीटी माध्यम से सीरीज़ ने गंदगी की हर सीमा लांघ दी है । मनोरंजन की आड़ में सब कुछ नहीं होना चाहिए स्वस्थ मनोरंजन का लक्ष्य है अच्छी और उच्चकोटि की नागरिकता का निर्माण करना साथ ही मानसिक रूप से शारीरिक रूप से तंदरुस्त बनाना । इसके साथ ही इसमें अच्छी आदतें विकसित करना और उसको चरित्र वाले गुणों से विकसित करना उसके उद्देश्य हैं। एक व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास करना आवश्यक उद्देश्य है ।

कमाल की बात है ये सभी दर्शक को हिंसा गुंडागर्दी और असंभव को घटित होता दिखाने के बाद कहते हैं कि हम आपको वास्तविक जीवन में ऐसा आज़माने की सलाह नहीं देते बल्कि ऐसा करना ख़तरनाक साबित हो सकता है । माजरा खतरों से खेलने तक का नहीं है ये तमाम खिलाड़ी आपको हानिकारक खाद्य पदार्थ को उपयोग करने को ललचाते हैं जुए जैसी खराब लत की तरफ धकेलते हैं सिर्फ विज्ञापन से खूब कमाई करने को अपने चाहने वालों की ज़िंदगी से खिलवाड़ करते हैं । हमने कैसे कैसे नायक बना लिए हैं जिनका असली किरदार ख़लनायक से भी बढ़कर हानिकारक साबित होता है । ऊंचा उठने को कितना नीचे गिर रहे हैं और हम ये सब बेहूदगी आखिर क्यों सह रहे हैं । वो अंधकार को उजाला बता रहे हैं और हम अपनी आंखें बंद कर उनकी दिखाई राह चलते हुए ठोकर पे ठोकर खा रहे हैं । चिड़िया खेत चुग रही और हम लोग ताली बजा रहे हैं सच कहने वाले बोलकर पछता रहे हैं । काश कोई कहानी लिखने का वही पुराना अंदाज़ वापस लौटा सके , इक ग़ज़ल पढ़ते हैं ।

अब सुना कोई कहानी फिर उसी अंदाज़ में ( ग़ज़ल ) 

          डॉ लोक सेतिया "तनहा"

अब सुना कोई कहानी फिर उसी अंदाज़ में
आज कैसे कह दिया सब कुछ यहां आगाज़ में ।

आप कहना चाहते कुछ और थे महफ़िल में ,पर
बात शायद और कुछ आई नज़र आवाज़ में ।

कह रहे थे आसमां के पार सारे जाएंगे
रह गई फिर क्यों कमी दुनिया तेरी परवाज़ में ।

दे रहे अपनी कसम रखना छुपा कर बात को
क्यों नहीं रखते यकीं कुछ लोग अब हमराज़ में ।

लोग कोई धुन नई सुनने को आये थे यहां
आपने लेकिन निकाली धुन वही फिर साज़ में ।

देखते हम भी रहे हैं सब अदाएं आपकी
पर लुटा पाये नहीं अपना सभी कुछ नाज़ में ।

तुम बता दो बात "तनहा" आज दिल की खोलकर
मत छिपाओ बात ऐसे ज़िंदगी की राज़ में ।
 

 
 
 

 

1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

सार्थक आलेख आज की ott मनोरंजन को लेकर...मनोरंजन की आड़ में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में क्या क्या हो रहा है