आई लव माय इंडिया ( हास्य-कविता ) डॉ लोक सेतिया
साड़ी - सूट चप्पल - जूते
सब जिस रंग उसी रंग की
माथे पर है सजती बिंदिया
लो बन गया भारत इंडिया ।
बदले नेता गए बदल दल
हुई समस्या कभी न हल
रिश्वत लाल-फ़ीताशाही वही
काठ की चढ़ती रहती हंडिया ।
लोकतंत्र का नाच है नंगा
मैली और हो गई है गंगा
अपराधी सब झूम रहे हैं
नाचती सत्ता की रंडिया ।
लगती है नेताओं की भी मंडी
इस बाज़ार में नहीं आती मंदी
भिंडी बाज़ार लगते हैं सदन
सबको ललचाती है भिंडिया ।
देखा देशभक्ति का हुआ तमाशा
तोला माशा जनता की हताशा
चाहे कुछ होता होने दो यारो
झूमो गाओ आई लव माय इंडिया ।
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