नवंबर 03, 2023

रब मिलिया कद मिलिया जद मिलिया ( दर्शन ) डॉ लोक सेतिया

 रब मिलिया कद मिलिया जद मिलिया ( दर्शन ) डॉ लोक सेतिया  

मैंने उसको देखते ही पहचान लिया , फिर भी बिना सोचे समझे पूछ बैठा कि आप मुझे सच्चे रब लगते हैं क्या वही हैं आप । रब ने कहा अपनी पहचान का भरोसा नहीं क्या भरोसा है तो मैं वही हूं नहीं भरोसा तो मैं यहां क्या कहीं भी नहीं मिल सकता । मैंने कहा ऐसा नहीं है मुझे पक्का यकीन है मैंने अपनी आत्मा से आपको पहचान लिया है लेकिन इधर दुनिया में सभी कहते हैं बड़ी मुश्किल से तलाश कर मिलते हैं आप । कुछ विचार किया फिर बोले हां कभी मुझे खोजते थे जीवन भर वास्तविक संत सन्यासी किसी पुराने वक़्त की बात है आजकल तो सभी ने कितने अलग अलग अपने अपने भगवान बना लिए हैं । मैंने कहा क्या इंसान का बनाया भगवान अपनी भक्ति पूजा गुणगान से इंसानों का कल्याण कर सकता है । उसने कहा क्या आपकी बनाई किसी मूरत से आपको वास्तव में कुछ भी मिल सकता है पत्थर से बनी गाय से दूध मिल सकता है बस आपको सपने में सब मिलता है सोते हुए जागते हैं तो कुछ भी पास दिखाई नहीं देता है । मैंने सवाल किया क्या मतलब दुनिया भर में आपके रहने को असंख्य स्थल बनाए हुए हैं कितने बड़े बड़े आलीशान भवन सुंदर मनमोहक मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे गिरजाघर आश्रम जाने क्या क्या । उस ने कहा क्या मानते हो ये सभी धरती पेड़ पैधे जीव जंतु नदियां झरने सागर पहाड़ कितना कुछ मुझी ने बनाया है , अगर मैंने आदमी से हवा पानी तक सब कुछ बनाया तो मुझे किसी और द्वारा बनाए किसी घर की ज़रूरत क्या है क्या मुझे रहने को कोई ठिकाना चाहिए । कभी समझते हो मैं हर जगह हूं फिर किसी भी जगह कैद कैसे कर सकते हो मुझे ।  
 
मैंने कहा तब ये सब खेल तमाशा क्या है ईश्वर धर्म के नाम पर लोग झगड़ते हैं क्या क्या कहते हैं कितने क्या क्या तरीके बना लिए हैं तुझे मनाने और तुझ से सब पाने को सर झुकाते हैं हाथ पसरे खड़े रहते हैं । कभी किसी की झोली भरती नहीं चाहे जितना मिले थोड़ा लगता है । उस ने कहा अब सही विषय की बात पर आये हो तो सुनो क्या सही क्या गलत है सब सामने है पल भर को मुझे भूल जाओ और देखो अपने आस पास क्या है क्या होना चाहिए तुम्हें लगता है । किसी धर्म ग्रंथ को पढ़ने की ज़रूरत नहीं क्योंकि उनको लिखने वालों ने क्या लिखा पढ़ने वालों ने क्या पढ़ा सुनने वालों ने क्या सुना और क्या समझने वालों ने समझा भी या नहीं । लेकिन तुम्हीं बताओ अगर कोई देश समाज का शुभचिंतक अपने देश समाज का संचालक बनकर खुद ही अपने रहन सहन खान पान और सैर सपाटे मौज मस्ती करने और अपनी अनगिनत ख्वाहिशों को पूरा करने पर धन और संसाधन खर्च करता हो जबकि उसी से कितने जनहित के कल्याणकारी कार्य किये जा सकते हों तो क्या वो अपना कर्तव्य ईमानदारी से निभाता है । आपके सभी शासक यही करते हैं उनको देश समाज की नहीं बस अपनी शानो शौकत की नाम की फ़िक्र है और ऐसे लोगों ने विधाता को भी अपने जैसा समझ लिया है । भला मुझे क्या चाहिए कुछ भी नहीं क्योंकि सब मेरा ही तो है और मुझे अपने ही बनाए इंसानों से कुछ भी कदापि नहीं चाहिए । भगवान को भिखारी बनाना क्या यही आस्था है धर्म है हर्गिज़ नहीं । 
 
मेरे लिए सभी इंसान इक बराबर हैं और मैंने तो संसार में इतना सब बनाया है जो सभी की ज़रूरत को बहुत है लेकिन जिन्होंने किसी भी ढंग से अपने पास धन दौलत ज़मीन जायदाद और संसाधन सीमा से अधिक जमा कर लिए हैं वास्तव में औरों का हक छीन कर अनुचित कर रहे हैं । आदमी ने मेरी बनाई व्यवस्था को बर्बाद कर अपनी इक विनाशकारी व्यवस्था को बनाकर उसे शासन और सरकार का नाम दे दिया है जबकि ऐसा कर वो सिर्फ मनमानी कर रहे हैं सभी का नहीं सिर्फ खुद का अपने कुछ साथियों का भला कर रहे हैं । अब तो जिधर देखो धनवान शिक्षित और प्रशासन न्यायपालिका के उच्च पदों पर आसीन लोग समाज की भेद भाव ऊंच नीच की अमीर गरीब की खाई को बढ़ा रहे हैं और न्याय समानता की अवधारणा को मिटा रहे हैं । झूठ को सच ही नहीं बनाते बल्कि सच को झुठला रहे हैं अजीब लोग हैं खुद को जैसा कभी नहीं बन सकते वैसे हैं घोषित कर इतरा रहे हैं । धोखा देने वाले खुद को धोखा देकर समझते हैं मनचाहा वरदान पा रहे हैं असल में गंगा को उलटी बहा रहे हैं । बहुत कम लोग जानते हैं कि हम कम जानते हैं अधिकांश लोग इक कतरे को समंदर बता रहे हैं । ब्रह्माण्ड में ये धरती छोटा सा कतरा है जिस का इक तिनका मिल गया तो खुद को बादशाह समझने लगे हैं सतह पर हैं समझते थाह पा रहे हैं । 
 
मैंने ध्यान लगाया तो रब को सामने खड़ा पाया उसका बदन था घायल और पैरहन फटा हुआ लगता था गरीब जिस की झोली में था सबसे बड़ा सरमाया । हर किसी को उस ने हाथ से खिलाया कभी किसी से कुछ मांगने को नहीं दमन फैलाया । आदमी की दुनिया के दस्तूर निराले हैं लिबास चमकीले दिल उनके काले हैं वो जो लगते हैं बड़े कद वाले हैं उनके पांव तले लाशें हैं देखने वालों की आंखें बंद होंटों पर ताले हैं । बड़े बड़े भवन खुली खुली सड़कें जगमगाहट रौशनी की महानगर की ऊंची इमारतें आपको लगता है कितना खूबसूरत है अपना देश और खुशहाल हैं लोग सभी । मगर खुले आसमान तले सर्दी से ठुठरते गर्मी की तपती धूप में झुलसते भूखे बदहाल गरीब अधिकतर लोग बेबस मज़बूर और लाचार हैं आदमी हैं आदमी की चालों का हुए शिकार हैं । शिकार करने वाले कहलाते बड़ी सरकार हैं ख़त्म नहीं होते सत्ता के अत्याचार हैं ज़माने ने खुद अपने पांव पर कुल्हाड़ी है चलाई गुंडे मवाली से नेता तक सभी ज़ालिम बने हैं जनता के भाई । जनता ने बना लिया उन सभी को घर जंवाई खुद मुसीबत को दावत भिजवाई अब मुश्किल उनसे पीछा छुड़ाना जब उनका है चोर लुटेरे अपराधी लोगों से गहरा याराना । रब कहने लगा मेरा इन से कोई नहीं नाता है ये दुनिया किसी और की जिसका अजब बही खाता है यहां शराफ़त नहीं है कहीं पर सच की सियासत नहीं है । मैंने इस नर्क जैसी दुनिया को छोड़ दिया है आदमी ने अपनी धरती को नर्क बना दिया है मुझसे तोड़ नाता शैतान को घर में बसा लिया है । मेरा अपनी ही बनाई दुनिया से दिल भर गया है यहां हर कोई खुद से भी डर गया है मैं तो इधर आता जाता नहीं आपकी दुनिया का कोई भी विधाता नहीं क्योंकि हर कोई सोचता है उसने कितना कुछ किया है ज़िंदगी में । हर शख़्स खुद को फ़रिश्ता समझने लगा है नहीं किसी को किसी खुदा की चाहत मुझे रास नहीं आती आपकी सियासत हुई बर्बाद इतनी मेरी ये विरासत नहीं मुझको यहां बसने की चाहत । तुम चाहते हो बनाऊं कोई अच्छी सच्ची दुनिया इसलिए छोड़ जानी है ये दुनिया । बस कुछ देर को चला आया था बनकर महमान तुम्हारा अब जाने की घड़ी है दे दो इजाज़त । और मुझे महसूस हुआ मेरा रब हमारी दुनिया से दूर और दूर जाते जाते सबकी नज़रों से ओझल हो गया है । भगवान चले गए इस दुनिया से कहीं और फिर से कोई दुनिया बनाने जैसी उनको चाहिए । क्या आपको चाहत है उस की बताना । 
 

 
 
   

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