कैसी पढ़ाई कैसी लिखाई ( हास्य रस ) डॉ लोक सेतिया
पकड़ी हाथ कलम न भरी दवात में कोई कोई स्याही ,
पहाड़ यही है यही खाई पढ़ ली उन्होंने उलटी पढ़ाई ।
पहेली सब को समझ नहीं आई रुपया पैसा धेला पाई
उनका बही खाता खोले कौन किसकी शामत है आई ।
इक जादूगर की आंखों पर बंधी हुई थी इक काली पट्टी
कुंवे में मोटरकार चलाई रफ़्तार की सुई तक है घबराई ।
संकट से भगवान बचाए महाबली करना सबकी भलाई
जिन राहों पर जाना वर्जित उन राहों की महिमा बढ़ाई ।
विद्यालय गुरुकल शिक्षक सब ज्ञानवान लोग व्यर्थ थे
नहीं पढ़ी पढ़ाई जीवन भर कहते है जिसको चतुराई ।
लाठी जिसकी भैंस उसी की भैंस के आगे बीन बजाई
सब तरसते छाछ नहीं मिलती दूध मलाई उसने खाई ।
भीख नहीं मिलती सभी को उनकी किस्मत रंग है लाई
मांग के पेट भरते , मूर्ख खाते हक की महनत की कमाई ।
खाया जमकर अभी भी है भूखा पहेली सबको समझाई
लाख किताबें पढ़ने वालों की होने लगी देखो जगहंसाई ।
सबको बात उन्हीं की भाई उन जैसा नहीं कोई हरजाई
मिल कर बैठी घर आंगन में मौसी ताई सब की भौजाई ।
एक था राजा बस राजा था नहीं थी कोई उसकी रानी
भूल गए हम सारे लोग कहानी नानी ने क्या थी सुनाई ।
मौसम का मिजाज़ अलग है बादल बिन बरसात है आई
तुमने साक़ी ग़ज़ब है ढाया नहीं बुझाई प्यास और बढ़ाई ।
झूठे सपने कितने देखे दिखलाए हक़ीक़त से नज़र बचाई
दूल्हा भागा छोड़ बारात दुल्हन सुनती रही बस शहनाई ।
1 टिप्पणी:
बहुत खूब व्यंग्य से भरपूर👌
एक टिप्पणी भेजें