तिजोरी के सिक्के की खनक ( तीर निशाने पर ) डॉ लोक सेतिया
ये इक पहेली है कौन किसी का यार दिलदार कौन अपना बेली है किसकी पड़ोसन किस की सहेली है । बस इक वही भाग्यवान है संग पिया जिसकी होली है । धन दौलत पैसा रुपया सब माया आनी जानी है तिजोरी और सिक्के की सच्ची मुहब्बत की अमर कहानी है । लोग समझदार थे पहले आजकल चतुर सुजान हो गए हैं सबको खबर थी हमको पता नहीं था सुनकर हैरान हो गए हैं । दोस्त पुराने दोस्तों से पिंड छुड़ाने को यही तरीका आज़माने लगे हैं फोन नंबर बदल कर आपस की दूरी बढ़ाने लगे हैं सब नया है तो घर नया दुल्हन नई विज्ञापन को सच कर दिखाने लगे है । नहीं मिल सकते कल फिर मिलेंगे बेकार बहाने पुराने लगे हैं ताल्लुक रखना लाज़मी है कुछ इस तरह से निभाने लगे हैं । मेरा देश बदल रहा सब लोग गुनगुनाने लगे हैं उनका हिसाब बराबर है दुश्मन सारे ठिकाने लगे हैं ।
फिर वही रोग फिर वही अचूक दवा सब दोहराने लगे हैं बड़े नोटों से नोट बदलवाने लगे हैं । सवाल जवाब से बचने कतराने लगे हैं । सब खज़ाने वाले तिजोरी की तलाशी लेने लगे हैं कागज़ी नोटों को तबादला कर इधर उधर भिजवाने लगे हैं बड़ी कीमत वाले नोट अपनी हालत पर अश्क़ बहाने लगे हैं इसे देख चांदी के सौ साल पुराने सिक्के चुटकुले सुनाने लगे हैं मिलकर ठहाके लगाने लगे हैं बड़े नोटों की खिल्ली उड़ाने लगे हैं । हमको यहां रहते कितने ज़माने लगे हैं चार दिन के महमान थे आप कागज़ के नोट रद्दी के भाव बिक जाने लगे हैं । कौन खरा है कौन खोटा है वक़्त वक़्त की बात है चांद है चांदनी रात है और क्या चाहिए तू अगर साथ है । हवेली हुआ करती थी हवेली में तहख़ाना तहख़ाने में तिजोरी तिजोरी में सोने चांदी के ज़ेवर हीरे जवाहरात मोती सब खामोश रहते थे बस खनकता था तो चांदी का एक रूपये का सिक्का क्योंकि उस की अहमियत उसकी ज़रूरत हमेशा पड़ती थी ।
लाख रूपये हों चाहे हज़ार रूपये एक का साथ शुभ मंगलमय समझा जाता था । विवाह के शुभ अवसर पर दो समधी मिलते तो एक रूपये का सिक्का उपहार में मिलता बड़ी शान बढ़ाता था बड़े बज़ुर्गों से पूछना कितना मन भाता था । मुझे याद आया हम जब होने वाली दुल्हन को देखने उनके घर पहुंचे तो सासु मां और ताया जी दरवाज़े पर आमने सामने थे खड़े बेटी की मां ने सीधा यही सवाल किया था आपकी मांग है कोई तो पहले अभी बताओ , समझे आप लालच है तो वापस लौट जाओ । ताया जी बोले इक मांग तो है एक रुपया और गुड़ बस कुछ भी और नहीं । यकीन करें रिश्ता बिना देखे दिखाए पक्का हो गया था हम से नहीं पूछा न उनसे उनके माता पिता ने और हम दोनों को समझाया गया आपका उनका भविष्य निर्धारित हो गया है ।
भगवान भी एक है और रुपया पैसा भी वास्तव में एक ही से शुरू होता है बाद में शून्य का अंक जुड़ता है तो कद ऊंचा होता जाता है लेकिन एक को मिटाने से जितने शून्य साथ खड़े हों हिसाब कम अधिक नहीं शून्य कहलाता है । सरकारी बजट भी इक बही-खाता है गैरों पर करम अपनों पे सितम ढाता है सरकारी लोगों राजनेताओं को हंसाता और जनता को खून के आंसू रुलाता है । रूपये और पैसे का अंतर किसी किसी को समझ आता है रुपया घर बनाता है जब पैसा दौलत बन कर इतराता है तो ग़ज़ब दिखलाता है । खज़ाने की तिजोरी उदास है बंद है कितना धन मालिक ख़ास है चाबी खो गई है तिजोरी तोड़ना अपराध है । घोड़े को मिली खाने को ऐसी घास है कि बढ़ती गई घुड़सवार की प्यास है । उनको प्यास बुझानी है मगर समंदर है और खारा पानी है , पढ़ी हुई इक पुरानी कहानी है ये नहीं मालूम क्या मानी है । धरती का रस नाम से इक कहानी है चार दिन की ज़िंदगानी है चार रूपये की ज़रूरत है अधिक की चाह रखना बड़ी नादानी है । आजकल राजनीति है अनीति है हमने नीति की बात पर पुरानी नीति कथा याद दिलानी है ।
धरती का रस ( नीति कथा )
एक
बार इक राजा शिकार पर निकला हुआ था और रास्ता भटक कर अपने सैनिकों से बिछड़
गया । उसको प्यास लगी थी , देखा खेत में इक झौपड़ी है इसलिये पानी की चाह
में वहां चला गया । इक बुढ़िया थी वहां , मगर क्योंकि राजा साधारण वस्त्रों
में था उसको नहीं पता था कि वो कोई राह चलता आम मुसाफिर नहीं शासक है उसके
देश का । राजा ने कहा , मां प्यासा हूं क्या पानी पिला दोगी । बुढ़िया ने छांव
में खटिया डाल राजा को बैठने को कहा और सोचा कि गर्मी है इसको पानी की जगह
खेत के गन्नों का रस पिला देती हूं । बुढ़िया अपने खेत से इक गन्ना तोड़ कर
ले आई और उस से पूरा गलास भर रस निकाल कर राजा को पिला दिया । राजा को बहुत
ही अच्छा लगा और वो थोड़ी देर वहीं आराम करने लगा । राजा ने बुढ़िया से पूछा
कि उसके पास कितने ऐसे खेत हैं और उसको कितनी आमदनी हो जाती है । बुढ़िया ने
बताया उसके चार बेटे हैं और सब के लिये ऐसे चार खेत भी हैं । यहां का राजा
बहुत अच्छा है केवल एक रुपया सालाना कर लेता है इसलिये उनका गुज़ारा बड़े
आराम से हो जाता है । राजा मन ही मन सोचने लगा कि अगर वो कर बढ़ा दे तो उसका
खज़ाना अधिक बढ़ सकता है । तभी राजा को दूर से अपने सैनिक आते नज़र आये तो राजा
ने कहा मां मुझे इक गलास रस और पिला सकती हो । बुढ़िया खेत से एक गन्ना तोड़
कर लाई मगर रस थोड़ा निकला और इस बार चार गन्नों का रस निकाला तब जाकर गलास
भर सका । ये देख कर राजा भी हैरान हो गया और उसने बुढ़िया से पूछा ये कैसे हो
गया , पहली बार तो एक गन्ने के रस से गलास भर गया था । बुढ़िया बोली बेटा ये
तो मुझे भी समझ नहीं आया कि थोड़ी देर में ऐसा कैसे हो गया है । ये तो तब
होता है जब शासक लालच करने लगता है तब धरती का रस सूख जाता है । ऐसे में
कुदरत नाराज़ हो जाती है और लोग भूखे प्यासे मरते हैं जबकि शासक लूट खसौट कर
ऐश आराम करते हैं । राजा के सैनिक करीब आ गये थे और वो उनकी तरफ चल दिया था
लेकिन ये वो समझ गया था कि धरती का रस क्यों सूख गया था । सैकड़ों साल पुरानी लोककथाओं नीतिकथाओं को हम ने भुला दिया है जो पानी का प्यासा था उसे मीठा रस पिला दिया है शासकों ने वफ़ा का यही सिला दिया है अर्थव्यवस्था की बुनियाद तक को हिला दिया है । अपना क्या है यही कहते हैं ' नहीं कुछ पास खोने को रहा अब डर नहीं कोई , है अपनी जेब तक ख़ाली कहीं पर घर नहीं कोई '। ये इक ग़ज़ल का मतला है अब इक पूरी ग़ज़ल भी पेश है ।
ग़ज़ल - डॉ लोक सेतिया
सभी कुछ था मगर पैसा नहीं था
कोई भी अब तो पहला-सा नहीं था ।
गिला इसका नहीं बदला ज़माना
मगर वो शख्स तो ऐसा नहीं था ।
खिला इक फूल तो बगिया में लेकिन
जो हमने चाहा था वैसा नहीं था ।
न पूछो क्या हुआ भगवान जाने
मैं कैसा था कि मैं कैसा नहीं था ।
जो देखा गौर से उस घर को मैंने
लगा मुझको वो घर जैसा नहीं था ।
कोई भी अब तो पहला-सा नहीं था ।
गिला इसका नहीं बदला ज़माना
मगर वो शख्स तो ऐसा नहीं था ।
खिला इक फूल तो बगिया में लेकिन
जो हमने चाहा था वैसा नहीं था ।
न पूछो क्या हुआ भगवान जाने
मैं कैसा था कि मैं कैसा नहीं था ।
जो देखा गौर से उस घर को मैंने
लगा मुझको वो घर जैसा नहीं था ।
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