करम गिनते हैं ज़ुल्म का हिसाब नहीं ( मेरी सरकार ) डॉ लोक सेतिया
शीर्षक इक ग़ज़ल से उधार लिया है , अंदाज़ अलग है बात कुछ और , कहते हैं कि ग़ालिब का है अंदाज़ ए बयां और , दिन रात सुना करते हैं बस शोर चहुंओर । ये दौर है चोर मचाते हैं बड़ा शोर शायद बिना बोले करता नहीं कोई गौर । बदली है दुनिया बदल गए हैं ज़माने के पुराने तौर छाये रहते हैं बदल घनघोर बरसते नहीं कभी अपना चलता नहीं ज़ोर । ये कुछ और नहीं किसी का इश्तिहार है बिना विज्ञापन जीना मरना दोनों बेकार है यही आजकल सबसे बड़ा कारोबार है जिसको नहीं आता मशहूर होने का हुनर समझो किसी काम का नहीं बंदा बेकार है । जिया बेकरार है छाई बहार है आजा मोरे बालमा तेरा इंतज़ार है तुमको मुझ से प्यार है आज क्या वार है नदिया की बहती धार है जनता इस किनारे सरकार उस पार है बीच में इक टूटा हुआ पुल है यही संसार है । विज्ञापन चौंकाते हैं तभी असर दिखलाते हैं ऐसी भाषा लिखने वाले महान अदाकार लेखक कलाकार कहलाते हैं । फिल्म टीवी वीडियो सभी में नज़र आते हैं अखबार टीवी चैनल सभी विज्ञापनों के मोहताज हैं बगैर इश्तिहार ज़िंदा नहीं रह सकते मर जाते हैं । सबसे बड़ा घोटाला सरकारी विज्ञापन हैं टीवी अखबार खूब मौज उड़ाते हैं सरकार और इश्तिहार देने वाले धंधे वालों के सामने हाथ जोड़ते पांव दबाते हैं हमको और की ज़रूरत है गिड़गिड़ाते हैं ।
टीवी पर अधिकांश समय और अख़बार में जगह पाकर भी सरकार को लगता है लोग देखते सुनते पढ़ते नहीं हैं इसलिए रोज़ नये नये तरीके अपनाते हैं देश राज्य की बात क्या छोटे शहर के राजनेता तक सोशल मीडिया पर कितने खाते खुलवाते हैं और वेतन दे कर अपना महत्व बढ़ाते हैं । निर्वाचित होने वाले हर दिन चाहने वालों को बुलाते हैं रोज़ कुछ नया करते हैं वीडियो बनाते हैं बंटवाते हैं पैसा खर्च करते हैं शान अपनी बढ़ाते हैं । हम नहीं समझ पाते हैं किस बात पर इतना भाव खाते हैं ये सभी सांसद विधायक पार्षद से लेकर सरकारी अधिकारी कर्मचारी जनता की सेवा और कर्तव्य निभाने का ही वेतन सुविधाएं पाते हैं अपना दायित्व निभाने को क्यों भला जनता पर एहसान करना उपकार करना दिखलाते हैं । हिसाब लगाना संभव नहीं ये लोग रोज़ इस प्रचार प्रसार पर कितना समय धन उड़ाते हैं क्योंकि हर जगह सभी तथाकथित वीवीआईपी लोग यही करते हैं शोभा बढ़ाते हैं असली समस्याओं की बात से नज़रें चुराते हैं क्योंकि कल जो वादा किया जो भी समाधान करने का उपाय शुरू करने का फोटो वीडियो बनाया उस का नतीजा निकला नहीं शर्माते हैं । मिट्टी के माधो दुनिया को समझते नहीं उल्लू बनाते हैं सर्वगुणसम्पन्न यही कहलाते हैं । आपको गंगभाट और रहीम का वार्तालाप सुनाते हैं ।
गंगभाट :-
सिखियो कहां नवाबजू ऐसी देनी दैन , ज्यों ज्यों कर ऊंचो करें त्यों त्यों नीचे नैन ।
अर्थात नवाब साहब ये आपका अजीब तरीका लगता है जब भी किसी को कुछ सहायता
देते हैं उसकी तरफ नहीं देखते अपनी नज़रें नीचे को झुकी हुई होती हैं ।
रहीम :-
देनहार कोऊ और है देवत है दिन रैन , लोग भरम मोपे करें याते नीचे नैन ।
अर्थात देने वाला तो कोई और है अर्थात ऊपर वाला मुझे देता है मैं तो उसका
दिया आगे सौंपता हूं अमानत की तरह मगर लोग लेने वाले समझते हैं मैं देता
हूं इस बात से मेरी नज़र झुकी रहती है ।
आजकल सोशल मीडिया पर हर कोई गीता रामायण बाईबल कुरआन गुरुग्रंथसाहिब की बड़ी अच्छी बातें हर सुबह भेजता है सभी दोस्तों परिचित लोगों परिवार के सदस्यों को । धनवान लोग उच्च पदों पर बैठे लोग तो समाजसेवी और दानवीर होने का दम भरते हैं । शायद ही कोई इन में से अपनी खुद की कमाई से कोई जनहित का कार्य करते हैं बहुधा सरकारी संसाधन पैसे से किसी योजना पर खर्च करते हैं या फिर अन्य लोगों से चंदा दानराशि एकत्र कर कोई सामाजिक कार्य करते हैं । इस में महानता की कोई बात कैसे हो सकती है । अगर हम किसी को धनराशि देकर कोई कार्य करवाते हैं तो वो अपना फ़र्ज़ निभाता है कोई उपकार नहीं करता । जिस कार्य के लिए आपको भुगतान ही नहीं मिलता बल्कि आपको नियुक्त ही उसी काम करने को किया गया है वो करना आपका फ़र्ज़ है उस का गुणगान करना उचित नहीं है । ईमानदारी से हिसाब लगाया जाए तो ये तमाम लोग सफेद हाथी जैसे साबित हुए हैं जो जनता या समाज को कोई योगदान नहीं देते बल्कि इक बोझ बन चुके हैं । कुछ लोग एनजीओ बनाकर उसी से अपनी आजीविका चलाते हैं और देश की राज्यों की सरकार के विभागों से तालमेल बिठा कर बिचौलिये की तरह काम करते हैं और इश्तिहार छपवाते हैं जनता की भलाई और समस्याओं को उठाने की बात करने के । शायर जाँनिसार अख़्तर कहते हैं :-
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