मई 29, 2023

भूखे पेट सब भजन करेंगे ( कुंवे में भांग ) डॉ लोक सेतिया

    भूखे पेट सब भजन करेंगे   ( कुंवे में भांग ) डॉ लोक सेतिया 

आपको शायद भरोसा नहीं होगा मगर ये सच है और मैं शपथ लेकर कहता हूं कि बड़ी उदासी और बेचैनी थी जब पोस्ट लिखने बैठा कि अचानक इक वीडियो को देखा तो महसूस हुआ उसी गंभीर विषय को हंसी मज़ाक  की तरह भी पेश किया जा सकता है । सरकार नेता अधिकारी फ़िल्मी जगत से पत्रकारिता करने वाले तक हमेशा से ही इसी ढंग से करते आये हैं , तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो क्या ग़म है जिसको छुपा रहे हो । सुनते हैं मदहोशी का आलम ही कुछ और होता है नशा इक शराब में ही नहीं होता पैसे का ताकत का धन दौलत का नशा और सत्ता का नशा जो आदमी को ख़ुदा होने का गुरूर देता ज़रूर है पर जिस दिन होश आता है सत्ता के बगैर जीना दुश्वार लगता है । जंगल में सभी जानवर रहते हैं सब को पेट भरने को जो चाहिए मिलता ही है किसी न किसी तरीके से लेकिन जब मूड हो मस्ती करने झूमने का सब कुछ भुलाकर अपने में खोने का तब खोजते खोजते इक न इक पेड़ ढूंढ लेते हैं जिस का फ़ल स्वादिष्ट भी हो और नशीला असर भी दिखाए । हाथी सबसे बलवान होता है पेड़ पर चढ़ नहीं सकता तो उसे ज़ोर ज़ोर से हिलाकर झकझोर कर सभी फल नीचे धरती पर गिरा लेता है और खा कर मदहोशी में झूमता है । बंदर पेड़ पर चढ़ खूब खाता है मगर हाथी जब पेड़ को हिलाता है तब उसकी उछल कूद किसी काम नहीं आती । हाथी जितना खा सकता है खाकर चला जाता है उस के बाद सभी जंगली जानवर अपना अपना हिस्सा पा कर टुन हो जाते हैं । सुनते थे जब नशा चढ़ा हो तब खाने पीने की सुध बुध नहीं रहती है , इक बार गांव में रात को ख़ास महमान घर आते हैं तो नंबरदार की नंबरदारनी बताती है घर में बनाने को कुछ ख़ास नहीं बचा है । नंबरदार जी कहते हैं सुबह होते ही शहर से सब मंगवा लिया जाएगा घबराओ नहीं , मगर रात को क्या खिलाना पिलाना है घरवाली ने पूछा तो बोले उनको इतनी शराब पिलाएंगे कि खाना खाने की हालत नहीं रहेगी । वीडियो में देखना आनंद आएगा लेकिन ये पापी पेट का सवाल है उसकी बात छोड़ी नहीं जा सकती है क्योंकि जिनको नशा है उनको क्या खबर भूख क्या होती है विषय पर आते हैं । 
 
 देश किसी न किसी नशे में है कोई विकास के झूठे नशे का शिकार है तो बहुत लोग सोशल मीडिया पर बेसुध हैं कुछ भी होश नहीं क्या क्यों करते हैं । नशे की लत खराब होती है उस को छोड़ रहा नहीं जाता बेचैनी होती है । सच लिखना भी खराब नशा ही है नहीं छोड़ सकता लिखने वाला , तमाम लोग खफ़ा होते हैं मुझे क्या कुछ भी अच्छा नहीं लगता हमेशा नाख़ुश रहता हूं । क्या करूं मेरी आदत है ख़ुशी से घबराता है दिल , खुश रहना नहीं आया दुनिया खुशियां ढूंढ ही लेती है । सारे जहां का दर्द हमारे जिगर में है सोचता हूं परेशान होता हूं ये समझ नहीं आता कि आधुनिक महलों की शानदार ऊंची ऊंची बहुमंज़िला इमारतों बड़ी बड़ी सड़कों रौशनियों और कितने जश्न किसी न किसी बहाने रोज़ मनाने से देश की अधिकांश आबादी को मिलेगा क्या , दो वक़्त रोटी इक छत और चैन से बगैर किसी डर शांति से जीने की हसरत आज़ादी के 75 साल बाद भी इक सपना है । संसद भवन न्यायालय की बिल्डिंग या सरकारी सचिवालय ख़ूबसूरत चमकीले शीशे जैसे होने से जनता को समानता का अधिकार बुनियादी सुविधाएं सच में सुरक्षित वातावरण और अपराध मुक्त समाज कब मिलेगा और कब चोर डाकू लुटेरे गुंडे और बाहुबली लोग अपराध करते पकड़े और दंडित किये जाएंगे । अभी तो उनको सब करने की छूट ही नहीं उनके लिए सत्ता के गलियारे में लाल कालीन बिछाया जाता है । बड़े और छोटे में आम और ख़ास में इतना अंतर है जैसे चींटी और हाथी का भी शायद नहीं और बताते थे चींटी हाथी को पराजित कर सकती है । जनता रुपी चींटी भला सत्ता धनबल बाहुबल और कुछ लोगों को हासिल विशेष अधिकारों की लक्ष्मण रेखा लांघ भी सकती है , रावण कितने हैं बचाने को कोई नहीं आने वाला । शासकों ने समझौता किया हुआ है वार्ता की जा सकती है सीमा पार नहीं कर सकते ये करते हैं तब भी स्वीकार नहीं कर सकते समझौते का उलंघन होता है । 
 
परमाणु बंब बनाने से लेकर आधुनिक हथियार तक विदेशों से खरीदने का मकसद क्या है जब घोषित है ये विनाश कर सकता है मानवता ख़त्म हो जाएगी हम इनका उपयोग नहीं करेंगे । अगर ऐसा है तो इतना धन इस पर बर्बाद क्यों किया जाता रहा जबकि ज़रूरत थी उस से गरीबी भूख और सभी समस्याओं का निवारण कर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को कारगर बनाना । लेकिन ये खरीदारी बेचना खरीदना कुछ लोगों की भूख मिटाने को किया जाता है जो जंग के हथियार बनाते हैं और जिनको इन से दलाली मिलती है । जो नहीं करना था जनता की बुनियादी ज़रूरतों को पैसे वालों का हथियार बना इक कारोबार बनाना सेवाओं की जगह वो किया गया किया जाता रहा शिक्षा रोज़गार अस्पताल की खूब कमाई का धंधा निजी क्षेत्र के लिए बना दिया पेशा अलग बात है धंधा बिल्कुल अलग और फ़िल्मी डायलॉग है धंधा धंधा होता है गंदा हो तब भी । मुझ से नहीं होता है कि रोते बिलखते मायूस लोगों की तरफ नहीं देख कर शानदार जश्न और शानो शौकत का आडंबर देख कर दिल बहलाया जाए । हो सके तो कोई ऐसा नशा सबको पिलाया जाए जिस को पीने से भूखे नंगे भी सारे जहां से अच्छा गीत गाया जाये , देश को फ़रेब से बहलाया जाए । किसी दिन किसी रहनुमा को होश में लाया जाये , हक़ीक़त से मिलाया जाए सच और झूठ को तराज़ू के पलड़ों में रख आईना दिखाया जाये । सब पुराना बदला जाता है मुमकिन है नये संसद भवन को कुछ और खूबसूरत नाम दिया जाये ताकि शायद वहां चुन कर आने पर उनकी अंतरात्मा भी इक नया सवरूप ले ले जो खुद को छोड़ जनता की भलाई की बातें ही नहीं वास्तव में करने की ज़रूरत भी समझने लगें । ये बात सच नहीं हो सकती क्योंकि नशे में रात गई बात गई , कुछ नहीं बदलेगा बस चेहरे नाम बदलते रहेंगे आईने का क्या है उस के टुकड़े होते हैं सभी पत्थर दिल हैं चकनाचूर करते रहेंगे । कब तक सभी गहरी नींद सोते रहेंगे । सांसद विधायक सरकारी कर्मचारी कौन हैं देश की जनता देश की मालिक और ये जनता के सेवक हैं , मालिक को झौंपड़ी भी नहीं नसीब अधिकतर लोग बेघर भूखे बदहाल है लेकिन नौकर चाकर को शानदार महल जैसा घर दफ्तर चाहिए ये लोकराज है तो कैसा लोकतंत्र कैसी आज़ादी है । माहौल बोझिल है जाँनिसार अख़्तर के शेरों से दिल को समझाया जाये ।
 

इसी सबब से हैं शायद , अज़ाब जितने हैं 

झटक के फेंक दो दो पलकों पे ख़्वाब जितने हैं । 

वतन से इश्क़ ग़रीबी से बैर अम्न से प्यार 

सभी ने ओढ़ रखे हैं नक़ाब जितने हैं ।

समझ सके तो समझ ज़िंदगी की उलझन को 

सवाल इतने नहीं हैं जवाब जितने हैं ।





1 टिप्पणी:

Sanjaytanha ने कहा…

बढ़िया लेख सर...👍