ख़ुदा उनको फिर याद आने लगे हैं ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया
ख़ुदा उनको फिर याद आने लगे हैं
वो आयत वही , दोहराने लगे हैं ।
सियासत से डरते रहे लोग नाहक
लो नेता सभी गिड़गिड़ाने लगे हैं ।
ज़रा गौर से देखना कौन आकर
ये गंगा को उलटी बहाने लगे हैं ।
कभी जुर्म साबित नहीं उनके होते
वो ठोकर लगा मुस्कुराने लगे हैं ।
न आसां था जिनसे मुलाकात करना
संभलना , तुम्हें ख़ुद बुलाने लगे हैं ।
पशेमान , कब , राजनेता हैं होते
वो गिरगिट के आंसू बहाने लगे हैं ।
किया क़त्ल हाथों से "तनहा" जिन्होंने
वो , अर्थी हमारी , उठाने लगे हैं ।
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