मई 12, 2021

रही हसरत अभी बाकी ( उल्टा-पुल्टा ) डॉ लोक सेतिया

      रही हसरत अभी बाकी ( उल्टा-पुल्टा ) डॉ लोक सेतिया 

   इतना बड़ा महल जैसा घर फिर भी लगता नहीं है दिल मेरा सोचते रहते हैं। रातों को नींद खुल जाती है अकेले बिस्तर पर करवटें बदलते हैं। न जाने क्यों इस हवेली में उनको पिछले शासकों के साये नज़र आते हैं डराते हुए क्या क्या सवालात करते दिखाई देते हैं। दर्पण के सामने खड़े अपने आप को निहारते हैं और खुद ही अपने से कहते हैं मुझ सा कोई हुआ न कभी होगा। हवाओं की सरसराहट सुनाई देती है तो लगता है कोई दबे पांव आकर किसी खिड़की के पीछे छिपकर झांकता है। ज़िंदगी को समझते समझते मौत का मंज़र दिखाई देता है जब से इतने बड़े महलनुमा घर में आकर रहने लगे हैं घर से भागने को दुनिया भर आवारा की तरह घूमते रहे हैं। अचानक हाथ आई दौलत खज़ाना मिल गया बिना कोई महनत किये उसको संभालना नहीं सीखा बर्बाद करने का भी कोई ख़ास मज़ा आया नहीं। कहने को चाहने वाले तमाम हैं मगर जानते हैं सब सत्ता के संगी साथी हैं सुःख के साथी हैं दुःख दर्द बांटने वाला हमराही हमसफ़र कोई भी नहीं है। जाने ये इक किताब यहां कौन छोड़ गया है दुष्यन्त कुमार की " साये में धूप " उठाकर पढ़ते हैं तो सच्चाई सामने दिखाई देती है। मेज़ की दराज से मिली पुरानी इक डायरी लेकर देखते हैं जिस पर कुछ शेर लिखे हुए हैं सोचते हैं कभी फुर्सत में समझने की कोशिश करेंगे। आधी रात को ये काम करना अच्छा लगता भी है और बेचैनी को बढ़ाता भी है। लिखा हुआ है जो बार बार पढ़ते हैं मिटाने को मन करता है मगर कोशिश करते हैं तो शब्द और उभरने लगते हैं जैसे लगान फिल्म के बच्चे को भयभीत करते थे। पढ़ते हैं अभी अभी लिखा क्या है किसी ने बात अटल है सत्य है शाश्वत है । इसी घर में कोई कविहृदय शासक रहता था उसकी निशानी मिटाना मुमकिन नहीं है उन जैसा बनना संभव नहीं पर उनकी विरासत को सहेजना ज़रूरी है।
 
    ये ज़ुबाँ हमसे सी नहीं जाती , ज़िंदगी है कि जी नहीं जाती। देखिए उस तरफ उजाला है , जिस तरफ रौशनी नहीं जाती। मुझको ईसा बना दिया तुमने , अब शिकायत भी की नहीं जाती। पन्ना पलटते हैं आगे लिखा हुआ पढ़ते हैं। वो निगाहें सलीब हैं , हम बहुत बदनसीब हैं। हम कहीं के नहीं रहे , घाट औ घर करीब हैं। हालाते जिस्म सूरते जां और भी खराब , चारों तरफ ख़राब यहां और भी ख़राब। नज़रों में आ रहे हैं नज़ारे बहुत बुरे , होंठों में आ रही है ज़ुबां और भी खराब। मूरत संवारने से बिगड़ती चली गई , पहले से हो गया जहाँ और भी ख़राब। सोचा था उनके देश में महंगी है ज़िंदगी , पर ज़िंदगी का भाव वहां और भी ख़राब। अगले पन्ने को पढ़ते ही खुद अपने आप को किसी कटघरे में खड़ा पाते हैं बस दो शेर पढ़ते ही किताब डायरी को वापस तिजौरी में सुरक्षित रख देते हैं ये शेर असली शेर से ख़तरनाक लगते हैं पढ़ते हैं। तुम्हारे पांव के नीचे कोई ज़मीन नहीं , कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यकीन नहीं। तेरी ज़ुबान है झूठी जम्हूरियत की तरह , तू इक ज़लील सी गाली से बेहतरीन नहीं। 
 
  दिल में हसरत अभी बाकी है लेकिन किसी को खुद कह भी नहीं सकते मुझे भगवान की तरह पूजने को मेरा भी इक मंदिर नगर नगर गली गली गांव गांव होना चाहिए। लोग भरोसा करें मुझसे जो फरियाद करेंगे सच्चे भक्त बनकर उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण अवश्य होंगी। ऊपर वाले ने दुनिया बनाई थी तो किसी को घर सामान कुछ भी नहीं दिया था नीचे धरती ऊपर गगन रहने को सारा जहां। मंदिर मस्जिद गिरिजाघर गुरूद्वारे खुद ऊपर से आशीर्वाद देते दिखाई देते हैं। इतना ही करना होता है खुदा ईश्वर बनकर कठिनाई क्या है मेरे दर से जाओगे तो जाओगे कहां। भगवान ने किसी को सब कुछ नहीं दिया जिनको जितना मिला उनको थोड़ा लगता है फिर भी भगवान खुदा ईश्वर अल्लाह होने पर कोई शंका नहीं कर सकता मुझसे भी लोग हाथ जोड़कर मांगते रहते नहीं मिलता तो भी कोई बस नहीं तकदीर को दोष देने से हासिल क्या होता।
 
     दावा किया करते थे अठारह घंटे काम दिन रात की दौड़ धूप दुनिया की सैर मौज मस्ती खेल तमाशे दोस्ती दुश्मनी का उनका तरीका अलग है। अब आना जाना सब बंद तो कुछ नहीं करने वाले बहुत कुछ करते हैं दिमाग़ी खलल कहते हैं , ख़ाली दिमाग़ को कब क्या सूझे कोई नहीं जानता इसलिए उन्होंने तय कर लिया जो भी घर महल हवेलियां पहले पिछले शासकों ने तामीर करवाईं उनको हटाकर सब नया आधुनिक बनवाना है जिस पर सिर्फ इक नाम खुदवाना है अपना नाम अपनी तस्वीर सबसे ऊंची सबसे शानदार जैसे उनके खूबसूरत लिबास हैं। लोग बाहरी  चमक दमक देखते हैं चकाचौंध रौशनी से चुंधिया जाती हैं आंखें।
 
लोग क्या सोचते हैं ये शंहशाह नहीं सोचते हैं बादशाह आवाम की नहीं अपनी शोहरत की फ़िक्र करते हैं गरीबों के लहू से उनकी मुर्दा लाशों पर बुनियाद के पत्थर रखकर ताजमहल से चीन की दीवार तक बनाई जाती है महबूबा की लाश ताजमहल में दफनाई जाती है उसको ज़िंदगी भर क्या मिला बात छुपाई जाती है। फिर इक शहंशाह ने देश के गरीबों की गरीबी का मज़ाक उड़ाया है। कोरोना से बचने का तरीका समझ आया है सबसे अलग सुरक्षित शासन चलाने वालों का संसार बसाने का संकल्प उठाया है कोई ज़ोर ज़ोर से हंसता हुआ नज़र आया है आदमी जिसकी आवाज़ से घबराया है। दो गज़ ज़मीन ने जाने कितनों को भगाया है ये कोई साया है किसी के हाथ कभी नहीं आया है।
 
 
 SC refuses to stay Central Vista project, says no urgency as COVID-19  pandemic is on