अगस्त 07, 2017

POST : 701 अंधियारे के पुजारी हम ( बुरी लगे चाहे भली ) डॉ लोक सेतिया

 अंधियारे के पुजारी हम ( बुरी लगे चाहे भली ) डॉ लोक सेतिया

      रोज़ दिन गिन रहे हैं , आज के अख़बार में संख्या 1017 की है। ईमानदारी के इतने दिन मनोहर लाल जी की सरकार के। दो दिन पहले आपके दल के अध्यक्ष का होनहार पुत्र किसी लड़की का पीछा करते और अपनी कुत्सिक मानसिकता को सरे राह दिखलाते धरा गया। आपकी ईमानदारी नाम की रखैल कहां कैद की हुई है जो आई नहीं सामने। मनोहर लाल जी को राज्य की देश की बेटी की अस्मत की नहीं अपने नेता की चिंता थी जो बोलते हैं उस में उनका भला क्या दोष है। मैं लालबहादुर शास्त्री जी की बात नहीं करूंगा कि उनकी मिसाल है रेल दुर्घटना वो खुद रेल के इंजन पर नहीं थे रेलवे मंत्री पद से त्यागपत्र दिया था खुद को उत्तरदायी मानते हुए। आज आपका बेटा जो भी करता है आपको उस से कोई सरोकार नहीं। लेकिन मैं आपसे भगवान राम की बात अवश्य पूछूंगा जिनको आप मानते या मानने का दावा करते हैं। उनको तो सीता माता के निर्दोष होने तक का पता था , अग्नि परीक्षा भी ली जा चुकी थी तब भी इक धोबी के उनके न्याय पर सवाल उठाने पर देवी सीता का त्याग किया था। आप दल के इक नेता के पद पर रहने को उचित मानते हैं जबकि सामने है सत्ता के दुरूपयोग से क्या किया गया , आरोप की धाराएं तक हटा दी गईं। अपनी ईमानदारी को बाहर लाईये बंद कमरों से और देखिये आपके नेताओं ने क्या क्या महल खड़े कर लिए आपकी इस गिनती वाली ईमानदारी में। आपकी सरकार में विभाग मनमानी करते हैं और आप केवल सी ऍम विंडो की शिकायतों की फाइल लिए बैठे हैं बेबस होकर।

               जिस समाज में भगवा भेस धारी भी सच नहीं बोलते और सत्ता की चौखट पर सर झुकाते हैं उस में धर्म बचा कहां है। इक तथाकथित धर्मार्थ हॉस्पिटल  में लूट की बात होने पर कोई कलयुगी गुरु आकर समझौता करवाते हैं। पाप और पुण्य दोनों उसी तरफ हैं तराज़ू में तोलने को बांट तो रखा ही नहीं। किसी ने नहीं समझा धर्मार्थ कहकर लूट करते लोग और वहां के डॉक्टर केमिस्ट लैब वाले सब कौन हैं। सच बोलना गुनाह है और मुझे गुनहगार कहलाना है। आपको अगर सामाजिक कार्य नहीं करना केवल समाज में बड़े होने की पहचान बनानी है तो मत करें धर्म की आड़ में ऐसे काम कि लोग धर्मार्थ शब्द से ही नफरत करने लगें। सब से अजीब बात है इधर कलयुग में जितना भी गलत काम भगवान और धर्म के नाम पर अथवा देश सेवा और दान पुण्य के नाम पर होता है उतना शायद अन्य तरह से संभव ही नहीं।

              मैंने कई बार बल्कि हर दिन इक सवाल किया है , भगवान खुदा या जो भी दुनिया बनाने वाला है , कि  अगर तुम सब कर सकते हो तो सब इतना गलत होते देख कैसे सकते हो। तुम से भी अगर दुनिया सही ढंग से नहीं चलाई जा सकती थी तो मत बनाई होती दुनिया। जब बनाई तो अपनी ज़िम्मेदारी भी निभाई होती। अच्छाई को ज़िंदा रखते और खत्म की बुराई होती। बड़े बड़े आलिशान भवनों में अपने नाम पर इतनी दौलत जमा ही कैसे होने दी जब दुनिया में तेरे ही बनाये बंदे बेघर भूखे और बदहाल हैं। किस कोई पापों की सज़ा मिलती है बताओ , कभी खुद को भी आईने के सामने लाओ। मगर लोग डरते हैं भगवान की ताकत से भी और सत्ता की ताकत से भी। सच बोलने पर जो नाराज़ हो कर सज़ा दे उसे भगवान कैसे मानोगे और सच कहने पर जो सत्ताधारी खफा होते हैं उनको ईमानदार कैसे कहोगे। समर्थ को नहीं दोष गुसाईं , आखिर कब तक यही गलत परंपरा कायम रहेगी। जो कोई दूसरा करता तो गलत अपना करे तो माफ़ ये कैसे चलेगा। न्याय होता दिखाई भी देना चाहिए। 

 

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