अगस्त 11, 2017

दिल की फरियाद सुनो ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया

     दिल की फरियाद सुनो ( व्यंग्य ) डॉ लोक सेतिया 

             दिल क्या करे कोई जगह ही नहीं दिल की फरियाद जहां सुनी जाये। कोई तो थाना होता जिस में जाकर दिल अपनी ऍफ़ आई आर लिखवा सकता। दिल को क्या समझ लिया है सभी ने , कोई खिलौना है जैसे चाहा खेल लिया। दिल से पूछा मन की बात करने वाले से मिलते जाकर , क्यों नहीं सोचा। दिल से आवाज़ आई भला मन की बात करने वाला क्या जाने दिल का दर्द। मन की बात सोच समझ कर बोलते हैं दिल की बात कब बताता कोई किसी को। दिल में लालच भरा है और भगवा चोला डाल बाबा जी खुद अपनी दुकान चला रहे हैं , स्वदेशी और शुद्ध का मतलब उनका माल होना है। आपको कहते हैं राष्ट्रवाद के नाम पर उनका सामान खरीदो। लोग समझने लगे हैं कि मौत केवल दिल के रोग से होती है और दिल के रोग से बचने को क्या क्या नहीं करते। इक योग सिखलाने वाले बीस साल से खुद दिल का दौरा पड़ने से दुनिया से विदा हो गए , किसी ने नहीं सोचा उनकी योगविद्या का क्या हुआ। इलज़ाम किसी और पर लग गया कि उसके कारण समय पर उपचार नहीं किया जा सका। दिल से पूछते दिल पर क्या क्या नहीं गुज़रती। आज दिल ने दिल से आकर दिल का हल बताया धड़कते धड़कते। सुनो आप भी। 
 
                दिल लगाने की ज़रूरत क्या है , किसी से इश्क़ लड़ाने की ज़रूरत क्या है। कोई कभी किसी का हुआ न कभी होगा किसी का , जान कर भी किसी को अपना बनाने की ज़रूरत क्या है। और अगर आपको इश्क़ मुहब्बत करना ही तो करते इक नाज़ुक से दिल को बीच में लाने की ज़रूरत क्या है। हर बात पर होती है तकरार हर दिन प्यार में फिर भी रूठने और मान जाने की ज़रूरत क्या है। दिल बहुत नाज़ुक है सीने में छुपकर रखते हर किसी को अपना दिल दिखाने की ज़रूरत क्या है। दिल की आवाज़ है दिल दिल से टकराता नहीं किसी के , किसी और के दिल से अपने दिल को मिलाने की ज़रूरत क्या है। तुम्हारी नज़रें देख कर किसी को नहीं कुछ भी कहतीं आंखों की बात जुबान पर लाने की ज़रूरत क्या है। सोचते रहते हो  किसी को किस तरह अपनी मुहब्बत का यकीन दिलवा सकते हो , दिमाग़ का फितूर है ये , दिल को दोषी ठहराने की ज़रूरत क्या है। जाने किस पर फ़िदा हो जाते हो , कितने झूठे हो दिल सच्चा है बार बार दोहराने की ज़रूरत क्या है। 
 
              दिल को बेचैन बेकार में करते हो तुम , दिल का दर्द बढ़ाने की ज़रूरत क्या है। दिल बहुत छोटा है मासूम है बच्चा है जी दुनिया भर को इसमें समाने की ज़रूरत क्या है। दिल को बस्ती नहीं ठिकाना नहीं घर नहीं है , आते जाते को दावत दिल में आने को देना , आफत खुद ही लिवाने की ज़रूरत क्या है। दिल ये कहता है मैं न बिकता हूं न कोई खरीदार हूं मैं , आपको बाजार बनाने की ज़रूरत क्या है। दिल से पूछा परेशान किस बात से हो बताओ , मेरा दिल भी दिल ही है मुझको बताओ। दिल ने दिल की बात कुछ इस तरह की है। 

                   दिल तो सागर है कोई साहिल नहीं है 

                   हर किसी के पास होता दिल नहीं है। 



कोई टिप्पणी नहीं: