अगस्त 07, 2017

क़त्ल मुझको लोग सब करते रहे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा"

क़त्ल मुझको लोग सब करते रहे ( ग़ज़ल ) डॉ लोक सेतिया "तनहा" 

क़त्ल मुझको लोग सब करते रहे 
हम न जाने किसलिए मरते रहे । 
 
ख़ुदकुशी करनी न आई आपको 
हम पे ये इल्ज़ाम भी धरते रहे । 
 
ज़हर अपने हाथ से हमने पिया 
दोस्त अपने जाम को भरते रहे । 
 
दे के हमको बेग़ुनाही की सज़ा 
आप खुद फिर क्यों सभी डरते रहे । 



 
   

कोई टिप्पणी नहीं: