अगस्त 15, 2017

ख़ामोशी की आवाज़ ( विवेचना ) डॉ लोक सेतिया

      ख़ामोशी की आवाज़ ( विवेचना ) डॉ लोक सेतिया 

मैं सत्तर साल का हो गया हूं। हर साल गिनती करता रहा हूं। गिनती करने से हासिल क्या होगा। देश में आंकड़ों की संख्या लाखों करोड़ों से अरबों खरबों तक जा पहुंची है। सत्तर साल बाद गरीबी की रेखा से नीचे की जनता की संख्या तीस से चालीस करोड़ है। मतलब एक तिहाई लोग भूखे हैं बेघर हैं बदहाल हैं और हम जश्न मनाते हैं आज़ादी का जिस पर हज़ारों करोड़ खर्च करते हैं उत्सव मनाने को। ये उत्सव कौन मनाते हैं , बड़े बड़े पदों पर बैठे लोग जो अपना सब को बराबरी का अधिकार देने वादा और संकल्प भूल सत्तासुख भोगते हुए कहते हैं देशसेवक हैं। हर तरफ आज भी अन्याय लूट और कर्तव्य नहीं निभाने की सरकारी लोगों की आदत है जिस से जनता का जीना दुश्वार है। लोग हॉस्पिटल में उचित इलाज नहीं मिलने से मर रहे हैं , किसान क़र्ज़ से तंग आकर ख़ुदकुशी कर रहे हैं , बच्चे स्कूल नहीं शौचालय में पढ़ रहे हैं। और सत्ता के चाटुकार नेताओं की जय जयकार वाले नए नए नारे गढ़ रहे हैं। समाज में महिलाओं को सुरक्षा नहीं मिलती और आप महिला अधिकारों की कहानी पढ़ रहे हैं। गंदगी के ढेर लगे हैं हर शहर हर गली में सरकार के स्वच्छ भारत वाले विज्ञापन सच से मुकर रहे हैं। कुछ बिक गए कुछ बिकने को तैयार हो रहे हैं सच बोलने के नाम पर कत्ल सच को कर रहे हैं। सब को आज़ादी है मनमानी करने की जो ईमानदार लोग हैं सूली पर चढ़ रहे हैं। सुविधा सम्पन्न लोग छुट्टी मना रहे हैं , मस्ती में झूम कर कुछ गीत गा रहे हैं , छत पर पतंगों से कांटे लगा रहे हैं। कितने लोग कूड़ा चुनने को जा रहे हैं बस इसी तरह जिए जा रहे हैं। समाजवाद की खिल्ली उड़ा रहे हैं लोकतंत्र का उपहास कर मनोनयन से पद पर बिठा रहे हैं। लाशों पर जिनकी फूल चढ़ा रहे हैं वो रोज़ सत्ता की शतरंज बनकर मात खा रहे हैं। देश की वास्तविकता से नज़रे चुरा रहे हैं , घर नहीं मंदिर मस्जिद बना रहे हैं। पीने का साफ पानी अभी तक नहीं है मिलता मगर हमारे शासक बुलेट ट्रैन ला रहे हैं। गरीबी पर बहस हर रोज़ हैं करते और भूखों के नाम पर दावत उड़ा रहे हैं। सब के सब सत्ता के भूखे सब स्वार्थ के अंधे है जिनको रहनुमा लोग बता रहे हैं। मेरे आंसू थमते नहीं हैं और आप को कभी भी नज़र नहीं आ रहे हैं। आप ऊंची बनाकर अपनी ऊंचाई होकर ऊपर खड़े भाषण सुना रहे हैं और लोग आपको बहुत छोटे नज़र आ रहे हैं।  ताली बजवा कर आप मुस्कुरा रहे हैं। आये थे किधर से किधर को जा रहे हैं। 

 

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