जनवरी 26, 2014

POST : 407 दर्शन दो लोकतंत्र ( तरकश ) डा लोक सेतिया

         दर्शन दो लोकतंत्र ( तरकश ) डा लोक सेतिया

            यही मंत्र है जिसका जाप सभी करते हैं। कोंग्रेस भा ज पा वामपंथी समाजवादी जनता दल वाले सालों से करते आये हैं और आप वाले भी जपने लगे हैं। किस किस की गिनती की जाये , राष्ट्रीय क्षेत्रीय बहुत हैं। हर राजनैतिक दल के अखिल भारतीय प्रधान से आम कार्यकर्त्ता तक सुबह शाम सोते जागते यही मंत्र जपते हैं। ज्ञानीजन समझाते हैं कि लोकतंत्र मंत्र जपने से राजसुख की प्राप्ति होती है। जिसे ये मंत्र सिद्ध करना आ गया वो विधायक सांसद मंत्री मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री कुछ भी बन सकता है। जैसे क्रिकेट के खिलाड़ी क्रिकेट को खाते हैं पीते हैं ओढ़ते हैं , ऐसे दावे किया करते हैं विज्ञापनों में , कुछ उसी तरह नेता लोग भी सच में करते हैं। लोकतंत्र को खाते हैं , लोकतंत्र को पी जाते हैं , लोकतंत्र को सेज बना कर उस पर सो जाते हैं लोकतंत्र को ओढ़कर। कभी कभी लगता है कि सारा का सारा लोकतंत्र इन नेताओं के हिस्से में आ गया जिसको जाने ये खा गये या पी गये या उसको किसी जगह सुला दिया है गहरी नींद में। देश की जनता भटक रही है सच्चे लोकतंत्र की खोज में आज़ादी के बाद से आजतक। दिखाई ही नहीं दे रहा लोकतंत्र। कांग्रेस में भा ज पा में क्षेत्रीय दलों में वामपंथी दलों में नहीं मिला तो इक नये दल में ढूंढना चाहा मगर उसमें भी नहीं नज़र आया। बार बार कोई वादा करता है लोकतंत्र का मगर सत्ता मिलते ही मनमानी करने लगता है। हर नेता खुद को लोकतंत्र का रखवाला बताता है और हर नेता लोकतंत्र से खिलवाड़ करता है शासक बनते ही। अब तो लगता है लोकतंत्र भी हमारे लिये मृगतृष्णा के समान है। अपने दल में लोकतंत्र न होने की बात पर कुछ लोग दल को छोड़ कर अपना खुद का एक दल बना लेते हैं। ऐसा भी मुमकिन है कि अपने दल के वही अकेले सदस्य ही हों। ये एक सुविधाजनक दशा है असहमति की कोई गुंजाईश ही नहीं रहती। यकीन मानें ऐसे लोग मंत्री तक बनते रहे हैं। इस देश में कोई चालीस सदस्यों का दल सरकार बना सकता है और एक सौ चालीस सदस्यों वाला उसको बाहर से समर्थन दे सकता है। वैसे भी शासन करने के लिये सरकार में शामिल होना ज़रूरी नहीं होता है। ये प्रयोग भी सफलता पूर्वक किया जा चुका है कि प्रधानमंत्री कोई था और सरकार कोई और ही चलाता रहा। हर दल वाले को अपने दल में लोकतंत्र की चिंता नहीं होती लेकिन बाकी दलों में लोकतंत्र नहीं है ये चिंता सताती है। कांग्रेस को लगता है भाजपा हिंदुत्व की समर्थक ताकतों के ईशारे पर चलती है , भाजपा को लगता है कांग्रेस परिवारवाद की राह पर चलती है। बाकी दल भी दूसरे सब दलों पर आरोप लगाते हैं कि वो लोकतंत्रिक नहीं। किसी का लोकतंत्र बिहार चला जाता है किसी का उत्तरप्रदेश , हरियाणा वालों को शिकायत है दिल्ली ने उनके लोकतंत्र को हमेशा बंधक बना कर रखा है। दिल्ली कहती है कि वो इधर कभी आया ही नहीं , शायद छुट्टी मनाने हिमाचल चला गया होगा। लोग कश्मीर से पंजाब तक तलाश कर आये , पश्चिम बंगाल से गुजरात तक खोज लिया , नहीं मिला कहीं भी लोकतंत्र। हर प्रदेश के लोकतंत्र का अलग सवभाव है लोग बताते हैं। महाराष्ट्र में सुना है शिवसेना के यहां कभी तो कभी एन सी पी के यहां लोकतंत्र दुहाई दे रहा होता है। कमाल की बात है कि पूरे देश में लोकतंत्र के होने का शोर है , लेकिन जो देखना चाहते हैं अपनी नज़रों से उनको कहीं भी दिखाई नहीं देता। जैसे भगवान है सब जगह ये आस्था है विश्वास है हमें लेकिन हम उसको देख नहीं पाते कभी। लेकिन अब लोग शंका करने लगे हैं कि अगर भगवान है तो धरती पर पाप और पापी क्यों बढ़ रहे हैं। ग्रंथ बताते हैं कि जब अन्याय और अत्याचार सीमा पार कर जाते हैं तब भगवान प्रकट होते हैं। शायद लोकतंत्र भी ऐसा ही करता हो , जब घोटाले , गुंडाराज और सत्ता का अहंकार हर सीमा को लांग जाये तब लोकतंत्र भी प्रकट हो जाये , क्या अभी कुछ कसर बाकी है इनमें। जैसे धर्म स्थलों पर भगवान पण्डे पुजारियों की मर्ज़ी पर भक्तों को दर्शन देते हैं , वो जब चाहें कपाट बंद कर सकते हैं , भगवान के नाम का सारा चढ़ावा चट कर जाते हैं। उसी तरह लोकतंत्र के मंदिर कहलाने वाले स्थलों पर उन लोगों ने कब्ज़ा कर लिया है जो लोकतंत्र को कत्ल कर खुद उसपर माला डाल उसके पुजारी बन बैठे हैं। हे लोकतंत्र इस देश को विश्व का सब से बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है। सब गुणगान करते हैं तुम्हारी महिमा का , कहते हैं तुम सब के दुःख दूर कर सकते हो। हम करोड़ों देशवासी कब से तेरे नाम की माला जप रहे हैं , हर बार वोट डालते हैं तुझे पाने की उम्मीद लगाये। हर बार धोका खा जाते हैं हम और कुछ नये नेता तेरा अपहरण कर सत्ता सुख का मोक्ष पा शासक बन लोकतंत्र का उपहास करते हैं। कब इस जनता की पुकार सुनाई देगी तुम्हें , कब दर्शन दोगे लोकतंत्र।