नेता पति हैं , पत्नी है जनता ( तरकश ) डा लोक सेतिया
ये सबक पढ़ाना बहुत ज़रूरी है। तुम औरत हो जनता हो , मैं पुरुष हूं राजनेता हूं। तुमने विवाह किया है , अब तुम पति के बराबर नहीं हो सकती हो , पति तुम्हारा भगवान है , वो देवता है तुम्हारा और तुम उसकी दासी हो पुजारन हो। जनता तुमने हमें सांसद चुना है , विधायक चुना है , ये करके तुमने अपने आप को हमें समर्पित कर दिया है। अब हम शासक हैं और हमने तुम पर शासन करना है। यही लोकतंत्र है। मगर तुम्हें हमेशा मर्यादा में रह कर ही बात करनी है। तुम घर की मालकिन हो मैं जब ऐसा कहूं तो तुम खुश भले होना मगर ये मत भूलना कि तुम्हें ये अधिकार तब तक ही हासिल रहेगा जब तक मेरी इच्छा हो। अब तुमने पत्नी धर्म निभाना है और मैं तुमको जिस हाल में भी रखूं , उसी में खुश रहना है। मेरी लंबी उम्र की कामना करना कर्तव्य है तुम्हारा ,मेरे लिये व्रत रखना और मुझे खिला कर बाकी बचा हुआ खाना ही सदा से भाग्य रहा है तुम्हारा। जनता रूपी पत्नी को बोलने का कोई अधिकार नहीं होता , जो उसके चुने प्रतिनिधि कहें वही उसकी आवाज़ है। हर पत्नी का धर्म है पति की आज्ञा का पालन करना , पति का विरोध घोर अपराध है। जनता को सांसदों और विधायकों का भूल कर भी विरोध नहीं करना चाहिये। पति का विरोध कर के कोई पत्नी घर में क्या रह सकती है। बेघर होकर दर दर की ठोकरें खाती है उम्र भर , नेताओं का विरोध करना भी लोकतंत्र का विरोध माना जायेगा। पति बिन पत्नी का कल्याण नहीं हो सकता न ही नेताओं के बिना लोकतंत्र का भला हो सकता है।
राम को जब बनवास मिलता है तब सीता जी को पत्नी धर्म निभाना पढ़ता है पति के सुख़ दुख़ में उसका साथ निभा कर हर दशा में। लेकिन जब राम जी की बारी आती है तब उनकी मर्यादा राज्य का शासक होने का फ़र्ज़ निभाना ही याद रखती है और ये भूल जाती है कि उनको भी अपनी पत्नी का साथ हर सुख़ में हर दुख़ में निभाना भी उतना ही महत्व रखता है। राम राजा हैं , शासक हैं उनको राज करना है इसलिये वे अपनी पत्नी सीता को चुपचाप वन में छोड़ आने का आदेश दे सकते हैं। यही सबक हर शासक को याद रहता है , कुर्सी के लिये सत्ता के लिये सभी का त्याग करने का। क्या सीता जी ने कोई प्रश्न खड़ा किया था अपने प्रिय राम जी के निर्णय को लेकर। नहीं , क्योंकि पति भगवान है , परमात्मा है जिसकी पूजा की जाती है , उसपर संदेह नहीं किया जा सकता। राम राजा हैं , उनको जब यज्ञ करने को पत्नी की ज़रूरत हो तब वो सोने से सीता जी की प्रतिमा बनवा काम चला सकते हैं। क्या कोई पत्नी कर सकती है ऐसा कि पति की जगह उसकी मूर्ति रख कर कोई अनुष्ठान संपन्न कर ले। जनता भी नेताओं के बुत उनके जीते जी नहीं बना सकती है , उसे जैसे भी हो उनकी प्रतीक्षा करनी होती है , जो भी आदेश हो उनका उसे पालन करना ही पड़ता है। औरतों को मर्दों के बराबर अधिकार की बातें करते सदियां गुज़र गई हैं , कितने और युग गुज़र जायेंगे तब भी कुछ भी नहीं बदलेगा। पति पति ही रहेगा और पत्नी पत्नी। जनता हमेशा जनता ही रहेगी , उसको झूठा ख्वाब नहीं देखना चाहिये स्वयं को देश का मालिक समझने का। भ्रम में जी रही हैं वो महिलायें जो मान बैठी हैं कि उनको बराबरी के सभी अधिकार मिल गये हैं। औरत के अपने पैरों पर खड़ा हो जाने और मर्दों की तरह हर काम करने के बावजूद भी उनकी दशा वही है। आज भी परिवार की मुखिया वो नहीं है , उसको पति के घर में रहना होता है और सब पुरुषवादी नियमों का पालन करना ही होता है। जनता को भी शासक की बराबरी का सपना कभी नहीं देखना चाहिये , वर्ना अंजाम बुरा होता है। नेता कहते रहते हैं जनता ही देश की मालिक है , पति भी कहते रहते हैं पत्नी को कि तुम्हीं घर की मालिक हो , लेकिन समझते दोनों ही खुद को ही मालिक हैं। जनता को झूठे वादों से तो पत्नी को दिखावे की मुहब्बत से छला जाता रहा है और छलते ही रहेंगे दोनों दोनों को। ये घर चलने के लिये और देश पर शासन करने के लिये एक मृगतृष्णा की तरह लुभाती रहती है। देश की जनता का भाग्य भी औरत के समान ही है , जो भी जैसा भी मिला हो उसी से निबाह करना पड़ता है। कब तक अच्छे पति की तलाश में कुंवारी बैठी रहे , अच्छे नेताओं की तलाश में जनता को अभी कई जन्म और तपस्या करनी होगी। इस कलयुग में नायक जन्म नहीं ले सकते , खलनायक ही आज के युग के नायक हैं।
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