जनवरी 16, 2014

सवाल विशेषाधिकार का ( तरकश ) डा लोक सेतिया

   सवाल विशेषाधिकार का ( तरकश ) डा लोक सेतिया

      यमराज जब पत्रकार की आत्मा को ले जाने लगे तब पत्रकार की आत्मा ने यमराज से कहा कि मैं बाकी सभी कुछ यहां पर छोड़ कर आपके साथ यमलोक में चलने को तैयार हूं , आप मुझे एक ज़रूरी चीज़ ले लेने दो। यमराज ने जानना चाहा कि वो कौन सी वस्तु है जिसका मोह मृत्यु के बाद भी आपसे छूट नहीं रहा है। पत्रकार की आत्मा बोली कि मेरे मृत शारीर पर जो वस्त्र हैं उसकी जेब में मेरा पहचान पत्र है उसको लिये बिना मैं कभी कहीं नहीं जाता। यमराज बोले अब वो किस काम का है छोड़ दो ये झूठा मोह उसके साथ भी। पत्रकार की आत्मा बोली यमराज जी आपको मालूम नहीं वो कितनी महत्वपूर्ण चीज़ है , जिस किसी दफ्तर में जाओ तुरंत काम हो जाता है , अधिकारी सम्मान से बिठा कर चाय काफी पिलाता है , अपने वाहन पर प्रैस शब्द लिखवा लो तो कोई पुलिस वाला रोकता नहीं। पत्रकार होने का सबूत पास हो तो आप शान से जी सकते हैं। यमराज ने समझाया कि अब आपको जिस दुनिया में ले जाना है मुझे , उस दुनिया में ऐसी किसी वस्तु का कोई महत्व नहीं है। पत्रकार की आत्मा ये बात मानने को कदापि तैयार नहीं कि कोई जगह ऐसी भी हो सकती है जहां पत्रकार होने का कोई महत्व ही नहीं हो। इसलिये पत्रकार की आत्मा ने तय कर लिया है कि यमराज उसको जिस दुनिया में भी ले जाये वो अपनी अहमियत साबित करके ही रहेगी।

                       धर्मराज की कचहरी पहुंचने पर जब चित्रगुप्त पत्रकार के अच्छे और बुरे कर्मों का हिसाब देख कर बताने लगे तब उसकी आत्मा बोली मुझे आपके हिसाब किताब में गड़बड़ लगती है। आपने मुझसे तो पूछा ही नहीं कि आप सभी पर मेरी कोई देनदारी भी है या नहीं और अपना खुद का बही खाता खोल कर सब बताने लगे। आपको मेरी उन सभी सेवाओं का पारिश्रमिक मुझे देना है जो सब देवी देवताओं को मैंने दी थी। आपको नहीं जानकारी तो मुझे मिलवा दें उन सब से जिनके मंदिरों का मैं प्रचार करता रहा हूं। कितने देवी देवता तो ऐसे हैं जिनको पहले कोई जानता तक नहीं था , हम मीडिया वालों ने उनको इतना चर्चित कर दिया कि उनके लाखों भक्त बन गये और करोड़ों का चढ़ावा आने लगा। हमारा नियम तो प्रचार और विज्ञापन अग्रिम धनराशि लेकर करने का है , मगर आप देवी देवताओं पर भरोसा था कि जब भी मांगा मिल जायेगा , इसलिये करते रहे। अब अधिक नहीं तो चढ़ावे का दस प्रतिशत तो हमें मिलना ही चाहिये। धर्मराज ने समझाया कि वो केवल अच्छे बुरे कर्मों का ही हिसाब रखते हैं , और किसी भी कर्म को पैसे से तोलकर नहीं लिखते कि क्या बैलेंस बचता है। हमारी न्याय व्यवस्था में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि अच्छे कर्म का ईनाम सौ रुपये है और किसी बुरे का पचास रुपये जुर्माना है। और जुर्माना काटकर बाक़ी पचास नकद किसी को दे दें। पत्रकार की आत्मा कहने लगी , ऐसा लगता है यहां लोकतंत्र कायम करने और उसकी सुरक्षा के लिये मीडिया रूपी चौथे सतंभ की स्थापना की बहुत ज़रूरत है। मैं चाहता हूं आपके प्रशासनिक तौर तरीके बदलने के लिये यहां पर पत्रकारिता का कार्य शुरू करना , मुझे सब बुनियादी सुविधायें उपलब्ध करवाने का प्रबंध करें। धर्मराज बोले कि उनके पास न तो इस प्रकार की कोई सुविधा है न ही उनका अधिकार अपनी मर्ज़ी से कुछ भी करने का। मुझे तो सब को उनके कर्मों के अनुसार फल देना है केवल।

                        पत्रकार की आत्मा कहने लगी हम पत्रकार हमेशा सर्वोच्च अधिकारी से ही बात करते हैं। आपके ऊपर कौन कौन है और सब से बड़ा अधिकारी कहां है , मुझे सीधा उसी से बात करनी होगी। ऐसा लगने लगा है जैसे पत्रकार की आत्मा धर्मराज को ही कटघरे में खड़ा करने का प्रयास कर रही है। जैसे धर्मराज यहां पत्रकार के कर्मों का लेखा जोखा नहीं देख रहे , बल्कि धर्मराज की जांच पड़ताल करने को पत्रकार की आत्मा पधारी है यहां। आज पहली बार धर्मराज ये सोचकर घबरा रहे हैं कि कहीं इंसाफ करने में उनसे कोई चूक न हो जाये। पत्रकार की आत्मा धर्मराज के हाव भाव देख कर समझ गई कि अब वो मेरी बातों के प्रभाव में आ गये हैं , इसलिये अवसर का लाभ उठाने के लिये वो धर्मराज से बोली , आपको मेरे कर्मों का हिसाब करने में किसी तरह की जल्दबाज़ी करने की ज़रूरत नहीं है। जब चाहें फैसला कर सकते हैं , लेकिन जब तक आप किसी सही निर्णय पर नहीं पहुंच जाते , तब तक मुझे अपनी इस दुनिया को दिखलाने की व्यवस्था करवा दें। मैं चाहता हूं यहां के देवी देवता ही नहीं स्वर्ग और नर्क के वासियों से मिलकर पूरी जानकारी एकत्रित कर लूं। पृथ्वी लोक पर भी हम पत्रकार पुलिस प्रशासन , सरकार जनता , सब के बीच तालमेल बनाने और आपसी विश्वास स्थापित करने का कार्य करते हैं। कुछ वही यहां भी मुमकिन है।

                          काफी गंभीरता से चिंतन मनन करने के बाद धर्मराज जी इस निर्णय पर पहुंचे हैं कि अगर इस आत्मा से पत्रकारिता के भूत को नहीं उतारा गया तो ये यहां की पूरी व्यवस्था को ही छिन्न भिन्न कर सकती है। इस लोक में पत्रकारिता करके नया भूचाल प्रतिदिन खड़ा करती रहेगी। तमाम देवी देवताओं को प्रचार और उनके साक्षात्कार छापने - दिखाने का प्रलोभन दे कर प्रभावित करने का प्रयास कर सकती है। पृथ्वी लोक की तरह यहां भी खुद को हर नियम कायदे से ऊपर समझ सकती है। पहले कुछ नेताओं अफ्सरों की लाल बत्ती वाली वाहन की मांग भी जैसे उन्होंने स्वीकार नहीं की थी उसी तरह पत्रकारिता के परिचय पत्र की मांग को भी ठुकराना ही होगा। धर्मराज जी ने तुरंत निर्णय सुना दिया है कि जब भी अच्छे बुरे कर्मों का हिसाब किया जायेगा तब इसका कोई महत्व नहीं होगा कि किस की आत्मा है। नेता हो अफ्सर हो चाहे कोई पत्रकार , यहां किसी को कोई विशेषाधिकार नहीं होगा।