चिराग़ अलादीन का ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया
हो सकता है कि वास्तव में अलादीन नाम का कोई शख्स इस दुनिया में कभी हुआ ही नहीं हो न ही कोई अलादीन का चिराग ही रहा हो। ये दोनों मुमकिन है किसी लेखक की कल्पना ही हों। लेकिन किसी कहानी का ये फलसफा इस कदर लोकप्रिय हो गया कि सब ने यकीन कर लिया कि कहीं न कहीं ऐसा कोई चिराग़ ज़रूर है। और सब यही चाहने लगे कि उनको ही मिल जाये ये चिराग़ अलादीन का। अलादीन का चिराग़ सब कुछ कर सकता है , और जिसके भी पास हो उसकी हर आज्ञा का पालन भी करता है , कोई वेतन भी नहीं मांगता। नेता चुनाव से पहले बड़े बड़े वादे करते हैं , मगर जब सत्ता मिल जाती है तब सरकार का हर मंत्री यही बात कहता है कि हमारे पास कोई जादू की छड़ी नहीं है न ही अलादीन का चिराग़ है कोई जो पलक झपकते ही सब कर सके। सरकार जनता को सब्र रखने का पाठ पढ़ा रही है कितने सालों से , अनपढ़ जनता है कि मानती ही नहीं। अलादीन का चिराग़ जिसे मिल जाये वो बिना पंख उड़ सकता है , पल झपकते जहां जाना चाहे जा सकता है , जो पाना चाहे पा सकता है। मैंने ऐसे चिराग़ को लेकर गहरा चिंतन किया है तब मुझे पता चला है इसका एक दूसरा विकल्प भी है। जो शायद उस चिराग़ से बेहतर ढंग से काम करता है। इससे भी अच्छी बात ये है कि बड़ी इराफात में उपलब्ध भी है , इतना कि विश्व की आधी आबादी को मिल सकता ही नहीं बल्कि मिल ही जाता है। अपने इस देश में तो सुनते हैं कि इसका अनुपात और भी अधिक है , अर्थात अलादीन के चिराग़ अधिक हैं और जिनको इसकी ज़रूरत है उनकी संख्या कम है।अगर ये सरल सी बात आपकी समझ में नहीं आई तो शायद आप खुद एक चिराग़ अलादीन का हो सकते हैं। अगर आप शादीशुदा पुरुष हैं तो समझ लो आप अपनी पत्नी को मिल चुके ऐसे ही एक चिराग़ ही हैं। महिलाओं की सब से बड़ी , बल्कि प्रमुख समस्या ही पति नाम का अलादीन का चिराग़ तलाश करना होता है। उनको सदा से यही समझाया जाता है कि शादी हो गई तो समझ लो जन्नत का रास्ता खुल गया है। अब जिस किसी ने भी आपसे विवाह रचाया है वो बना ही आपके इशारों पर नृत्य करने के लिये है। उसका फ़र्ज़ है आपकी हर मांग को पूरा करना। शादी में पत्नी की मांग भरने का निहितार्थ कुछ ऐसा ही होता है। सुहागन होने का भी यही प्रमाण है कि उसकी मांग हमेशा भरी होनी चाहिये। हर पत्नी को ये अधिकार सात फेरों के साथ ही ऐसे मिलता है कि जल्द ही वो इसे छीन लेने का हक बन लेती है। पति हो या चिराग़ हो अलादीन का , उससे कुछ भी मांगते समय ये नहीं सोचना पड़ता कि कोई काम संभव है अथवा असंभव। ये दोनों होते ही " जो हुक्म मेरे आका " कहने के लिये हैं। अंग्रेजी का एक लेखक तो यहां तक कहता है कि पत्नी को खुश करने को जो भी करना पड़े करना चाहिये। उसकी इच्छा पूरी करने के लिये उधार लो चाहे क़र्ज़ या फिर चोरी ही करो सब किया जाना उचित है। जीवन का कल्याण तभी संभव है।
एक अन्य दार्शनिक कहते है कि दुनिया में लूट , चोरी , ठगी , भ्रष्टाचार इन सब कि जड़ अलादीन के चिराग़ रूपी पति को मज़बूरी ही होती है। महनत और ईमानदारी से हर पति रोटी कपड़ा तो कमा सकता है , मगर गाड़ी बंगला सोना चांदी नहीं ला सकता। इसलिये अपने आका रूपी पत्नी का हुक्म बजा लाने की मज़बूरी उसे ये सब करने को विवश कर देती है। जब भी ये कहा जाता है कि हर सफल पुरुष के पीछे किसी महिला का हाथ होता है , तब इसका मतलब यही होता है कि क्योंकि उसकी पत्नी पल पल उसे ये एहसास करवाती रही कि तुमने कुछ भी हासिल नहीं किया तभी उसको तरक्की करने को सब करना पड़ा। इतिहास गवाही देता है कि पत्नी के ताने से कवि तुलसीदास पैदा हो जाते हैं। हर इक पत्नी को मौलिक अधिकार है अपने पति को बुद्धू समझने का। घर से बाहर भले पूरी दुनिया उसे काबिल या समझदार कहे पत्नी के लिये पति निरा मूर्ख ही होता है जो बदकिस्मती से उसके पल्ले पड़ गया है। लाख प्रयास करने के बावजूद भी किसी महिला को समझदार पति नहीं मिलता और ये बात हर पत्नी हमेशा अपने पति को कहती रहती है शिकायत के रूप में। ऐसे में पति इतना ही कह सकते हैं कि अगर समझदार होते तो क्या तुम्हीं से शादी करते। कुछ लोग जो शादी के जाल में नहीं फंसते , नहीं जानते कि वो कितने खुशनसीब हैं जो उम्र भर आज़ाद रहे। कई बार उनके मन में भी शादी का लड्डू खाने की बात आ ही जाती है। ज्ञानीजन तभी शादी को ऐसा लड्डू बताते हैं जिसको खा कर भी पछताते हैं और बिना खाये भी। बहुत सारे लोग खुद बेशक शादी करके पछताते हों , दूसरों को करने को प्रेरित किया करते हैं। शायद उनको मज़ा आता है अपने जैसे सितम औरों पर भी होता देख कर। हर कहानी में हर इक अलादीन के चिराग़ को आखिर में आज़ादी मिल ही जाया करती है , लेकिन पत्नी को शादी में मिला चिराग़ का ये जिन्न उम्र भर का कैदी होता है। इसलिये अक्सर शादी को उम्र कैद भी कह दिया जाता है।
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