जनवरी 06, 2014

फ्रैंडली क्रिकेट मैच ( तरकश ) डा लोक सेतिया

       फ्रैंडली  क्रिकेट मैच ( तरकश ) डा लोक सेतिया

       इस देश में हर किसी को एक काम करना बहुत अच्छी तरह आता है। क्रिकेट खेलना। नेता अभिनेता अफ्सर शिक्षक डॉक्टर वकील छात्र चाहे जो भी कुछ हों हम , अपना वास्तविक काम भले करना जानते हों या नहीं , क्रिकेट खेलना ही नहीं इस खेल की हर बात जानते हैं सभी। इसमें पुरुष या स्त्री का भी कोई अंतर नहीं , सब इक दूजे से बढ़कर हैं। कभी कभी तो ऐसा लगता है कि टीम इंडिया के खिलाड़ियों को छोड़ कर बाक़ी सब बेहतरीन क्रिकेट खेलने वाले हैं। लगता है हमारे देश के लोगों के पास ये खेल खेलने को फुर्सत ही फुर्सत है , उसके इलावा और कुछ भी करना बिल्कुल ज़रूरी नहीं है। सब के पास वक़्त है क्रिकेट खेलने के लिये , तभी यहां फ्रैंडली क्रिकेट मैच आयोजित होते रहते हैं। कभी नेताओं कभी कलाकारों कभी प्रशासन कभी पुलिस कभी पत्रकारों का ,तो कभी इनमें से किसी का किसी के साथ फ्रैंडली क्रिकेट मैच होता ही रहता है। खेल भले कोई भी रहा हो , जनता ताली बजाने को रहती है हर बार। भारत देश में जिसे क्रिकेट खेलना नहीं आता उसका देश प्रेम अधूरा समझा जाता है। क्रिकेट का खेल ही अब पैमाना है देशप्रेम को परखने का , हम देशप्रेम प्रकट करने के लिये अन्य किसी बात किसी खेल को महत्व नहीं देते , बस यही एक साधन है देश के प्रति अपनी भावना व्यक्त करने के लिये। क्रिकेट में हारना जीतना हमारे लिये राष्ट्रिय चिंता का विषय होता है। अब तो हम ये भी मानते हैं कि क्रिकेट को खाया जा सकता है , बिछौना बना कर सोया जा सकता है , ओढ़ना पड़े तो ओड़ा जा सकता है , और ज़रूरत हो तो शीतल पेय की तरह पिया जा सकता है। ऐसे जनता को जो भी चाहिये , रोटी , पानी , छत या वस्त्र सब मिल सकते है केवल इसी से। बड़े ही काम की चीज़ है क्रिकेट। दोस्त को दुश्मन बना सकता है ये खेल और दुश्मन को दोस्त भी यही बना सकता है। यहां तक कि किसी को भगवान बना सकता है क्रिकेट। क्रिकेट ने एक नया भगवान दिया है हमें , देने को सिनेमा ने भी दिया है दूसरा एक भगवान लेकिन जो बात क्रिकेट वाले भगवान की है वो और किसी की भला हो सकती है। क्रिकेट माया है और इक मायाजाल है क्रिकेट का। क्रिकेट जैसा और कुछ भी नहीं है। इसकी महिमा का बखान करना इस तुच्छ लेखक के बस की बात नहीं है। क्रिकेट तो क्रिकेट ही है।

                                     चोरियों के सुहाने मौसम में चौकीदार इलैवन का थानेदार इलैवन के साथ फ्रैंडली क्रिकेट मैच रखा गया है। ये बताने की ज़रूरत नहीं है कि प्रयोजक चोर सभा ही है और मामला चोरी के माल में बंदरबांट का भी है। दोनों ही टीमों में चोरों को शामिल किया गया है जीत की संभावना बढ़ाने के लिये। कौन सी टीम कितने रन बनाती है और कितने विकेट बचा पाती है इसी को आधार बनाया जायेगा ये तय करने का कि चोरी के माल में उसका कितना हिस्सा होगा। इसलिये बात खेल भावना से अधिक पापी पेट की बन गई है। कुछ पुराने समझदार चोरों ने चौकीदार इलैवन के कप्तान को समझाने का प्रयास किया कि थानेदार इलैवन को जीतने देने में ही सबकी भलाई है। लेकिन वो ज़िद पर अड़ गया है कि उनको हरा कर ही रहेगा ताकि अधिक हिस्सा हासिल कर सके। वो थानेदार इलैवन को कड़ी टक्कर देने की बात करने लगा है। अब वो ये नहीं होने देना चाहता कि सारा माल बंदर हड़प जायें और हम बिल्लियों की तरह आपस में झगड़ते रह जायें। थानेदार को भी आसार अच्छे नहीं नज़र आ रहे , उसे भी लग रहा है कि अब उसका रौब पहले जैसा नहीं चल रहा है। चोरों की बातों का असर चौकीदारों पर भी होने लगा है , उनको भी लगता है कि मेहनत हम करते हैं और फल कोई और खाता रहता है। मुकाबला शुरू होने से पहले दोनों टीमें अभ्यास में जुटी हुई हैं। जब थानेदार और चौकीदार टॉस करने लगे तब चोरों को एक सुनहरी अवसर मिल गया है।

                            अचानक चोरों ने ये घोषणा करके सनसनी पैदा कर दी है कि वे थानेदार या चौकीदार इलैवन में शामिल होकर नहीं खेलेंगे , बल्कि अपनी अलग टीम बना खेल में भाग लेंगे। उन्होंने मांग की है कि एक मैच न रख कर त्रिकोणीय मुकाबला करने को तीन मैच होने चाहियें ताकि सब को समान अवसर मिले अपनी प्रतिभा दिखाने का। खेल खेल न रह कर जंग बनता जा रहा है। मामला बिगड़ नहीं जाये इसलिये एक सर्वदलीय बैठक आयोजित की गई जिसमें कुछ वरिष्ठ लोगों की समिति का गठन किया गया खेल के नियम और रूपरेखा तय करने के लिये ताकि खेल को मित्रता की भावना से खेला जा सके। समिति ने विचार विमर्श करने के सब सुलझा दिया है। सब को ये बात समझा दी गई है कि हम सभी का हित जीत हार में नहीं बल्कि आपसी भाईचारा कायम रखने में है। एक प्रकार से मैच को पहले से फिक्स कर दिया गया है। सभी की भलाई इसी में है ये सब मान गये हैं। समिति का कहना है कि जब टीम इंडिया के खिलाड़ी खेल से अधिक ध्यान विज्ञापनों की आय पर रख सकते हैं तो चोरों , चौकीदारों को ही क्रिकेट की चिंता करने की क्या ज़रूरत है। सब को अपना अपना हिस्सा मिलता है और मिलता रहेगा। हमारा ध्येय आपसी प्यार को विश्वास को बढ़ाना है। थानेदार इलैवन की जीत ही चोरों और चौकीदारों की जीत है।

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