जुलाई 22, 2012

नाट्यशाला ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

         नाट्यशाला ( कविता ) डॉ लोक सेतिया

मैंने देखे हैं
कितने ही
नाटक जीवन में
महान लेखकों की
कहानियों पर
महान कलाकारों के
अभिनय के।

मगर नहीं देख पाऊंगा मैं
वो विचित्र नाटक
जो खेला जाएगा
मेरे मरने के बाद
मेरे अपने घर के आँगन में।

देखना आप सब
उसे ध्यान से
मुझे जीने नहीं दिया जिन्होंने कभी
जो मारते  रहे हैं बार बार मुझे
और मांगते रहे मेरे लिये
मौत की हैं  दुआएं।

कर रहे होंगे बहुत विलाप
नज़र आ रहे होंगे बेहद दुखी
वास्तव में मन ही मन
होंगे प्रसन्न।

कमाल का अभिनय
आएगा  तुम्हें नज़र
बन जाएगा  मेरा घर
एक नाट्यशाला।

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