अप्रैल 30, 2024

POST : 1809 सांसद - विधायक बनने का मोल ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया

  सांसद - विधायक बनने का मोल ( हास-परिहास ) डॉ लोक सेतिया 

कितना सरल उपाय है पहले समझ क्यों नहीं आया सब मिल बैठ सोच रहे हैं , ये कुछ कुछ सर्वदलीय बैठक जैसा है । उन्होंने अपना नाम जगज़ाहिर नहीं करने की शर्त रखी है इक ऐसा तरीका खोज लिया है की नेता जनता दोनों का भला भी होगा और ख़ुश भी सभी लोग हो जाएंगे । सभी जनप्रतिनिधि निर्वाचित किये जाएंगे इसी ढंग से और अधिकांश समस्याओं का समाधान अपने आप निकल जाएगा । चुनाव का समय आने से पहले खुली बोली जैसा प्रावधान किया जाना संभव है , किसे क्या बनना है उसकी बढ़ चढ़ कर कीमत लगानी होगी । कौन कितने हज़ार करोड़ खर्च कर सांसद बनना चाहता है सबसे बड़ी बोली लगाने वाले को उतना धन साल भर में अपने क्षेत्र पर खर्च कर संसदीय क्षेत्र का कायाकल्प करना होगा । राजनीति जब व्यौपार बन चुका है तो लाज शर्म कैसी नंगा नाच होगा शादी पर दूल्हे वाले नोटों की बारिश करते हैं जैसे । बस एक साल में पहले जो करना है कर दिखाओ फिर चार साल मौज मनाओ । लोकतंत्र ही होगा मगर अग्रिम भुगतान से पहले देना होगा बाद की बात कौन याद रखता है । हां सिर्फ धनवान लोग ही सांसद विधायक से नगरपरिषद प्रतिनिधि बन सकेंगे तो कोई बात नहीं गरीब लोग ऐसा ख़्वाब नहीं देखते हैं उनको चांद भी रोटी लगता है । कोई खड़ा हुआ कहने लगा चुनाव आयोग इस की अनुमति देगा क्या , तब इक राज़ खोला गया की पहले इक प्रधानमंत्री का चुनाव किसी अदालत ने रद्द कर दिया था कभी लेकिन इक नेता ने प्रधानमंत्री बनने के बाद चुनाव आयोग को इक पत्र भेजा था जिस में ये उपाय किया गया था कि भविष्य में प्रधानमंत्री की चुनावी सभाओं का प्रबंध और खर्च सरकार अपने खज़ाने से किया करेगी । विकास की राह में जो भी बाधा आए उसे हटाया जा सकता है , ये नैतिकता आदर्श और मर्यादा की खोखली बातें किसी और ज़माने की हैं । चूहों की सभा ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया है लेकिन वही पुरानी पहेली बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा और कब ऐसा आधुनिक संविधान बनाकर लागू होगा । प्रयोजक तैयार हैं अब इलेक्टोरल बॉब्ड नहीं सीधा धंधा होगा जब नाचन लागी तो घूंघट काहे । 
 
आपको ये तौर तरीका पसंद नहीं आया तो क्या हुआ अभी तक जो रंग ढंग चलता रहा उसे कौन लोकतंत्र कहता है । सब ऐसा करते हैं उस ने किया तो क्यों हाय तौबा सभी समझाते हैं लगता है हमने मंज़ूर कर लिया है इसी को जीना कहते हैं घुट घुट कर अश्क़ पीना जनता का नसीब है । सरकार ने कब से हर काम अनुबंध पर ठेके पर किसी निजी क्षेत्र को सौंप जान छुड़ा ली है राजनेताओं अधिकारी वर्ग से पुलिस न्यायपालिका तो क्या अख़बार टीवी मीडिया वाले केवल एक ही विषय पर सारा ध्यान रखते हैं कि सरकार चल रही है चलती जा रही है । कोल्हू के बैल की तरह आंखों पर पट्टी बंधी है और सबको लगता है हमने कितना सफर तय कर लिया है जबकि देश वहीं का वहीं अटका हुआ है । आपको बात समझ नहीं आई ये नया बाज़ार का नया दस्तूर है जो खुद बिका हुआ हो वही कुछ भी खरीद सकता है , धनवान खरीदार लगते हैं मगर होते खुद बिके हुए हैं । लेबल से पता चलता है किस की डोर किस के हाथ है कठपुतली का नाच है देश की राजनीति । अब तो सभी सरकारें आदमी पर भरोसा नहीं करती मशीन ऐप्प पर पूरा विश्वास है जबकि तमाम सरकारी वेबसाइट अपने ही बोझ तले कब दम तोड़ देती है पता नहीं चलता उनकी सांस रुक रुक कर चलती है कभी थम भी जाती है तब सभी को इंतज़ार करना पड़ता है । भारत देश की व्यवस्था क्या जनतंत्र और आज़ादी तक सब जाने किस किस देश किस किस कंपनी के हाथ का खिलौना बन गई है । ठेकेदारी को लेकर मुझे अच्छी जानकारी है क्योंकि मेरे पिता दादा भाई बंधू सभी यही काम करते रहे हैं । मैं नाकाबिल साबित हुआ जो उनकी राह छोड़ इस लेखन और आयुर्वेदिक प्रणाली में जीवन भर खूब मेहनत की और नतीजा कभी इक धेला कमाई नहीं की खोटा सिक्का साबित हुआ पिताजी की तिजोरी का । अधिकांश लोग परिवार में कम पढ़े लिखे थे मैंने पढ़ाई की लेकिन किस काम की पढ़ाई जब नहीं की कमाई , ठेकेदारी समझ आई होती तो आज किसी बड़े पद पर बैठा सौदेबाज़ी कर मालामाल हो सकता है , लेकिन खुद को बेचना मुझे मंज़ूर नहीं अन्यथा दिल्ली कोई दूर नहीं ।  



 

2 टिप्‍पणियां:

Sanjaytanha ने कहा…

Bahut sahi sujhav h... Vyavastha se narazgi jhalakti h or jhalakni bhi chahiye...Jo hona tha wo ho nhi rha hai...Jo nhi hona wo sab ho rha h👍👌 bdhiya lekh...Bs kuch chhota lagaa..

Sanjaytanha ने कहा…

किस काम की पढ़ाई...जब नहीं की कमाई👌👍...